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होम्योपैथिक औषधियों की न्यून मात्रा और एवोगेड्रो ( Avogadro’s ) की संख्या – क्या एवोगेड्रो की संख्या से होम्योपैथी का मूल्याकंन करना उचित है ?

homeopathy explained

होम्योपैथिक औषधियों के विरोध के प्रमुख कारणॊं मे एक प्रमुख कारण होम्योपैथिक औषधियों की न्यून मात्रा   है । होम्योपैथिक औषधियों की न्यून मात्रा को विस्तार मे समझने के लिये औषधि निर्माण की प्रक्रिया को समझना पडेगा । होम्योपैथिक औषधियों मे प्राय: दो प्रकार के स्केल प्रयोग किये जाते हैं ।

क) डेसीमल स्केल ( Decimal Scale )

ख) सेन्टीसमल स्केल ( Centesimal Scale )

क) डेसीमल स्केल मे दवा के एक भाग को vehicle ( शुगर आग मिल्क ) के नौ भाग से एक घंटॆ तक कई चरणॊं मे विचूर्णन ( triturate ) किया जाता है । इनसे बनने वाली औषधियों को X शब्द से जाना जाता है जैसे काली फ़ास 6x इत्यादि । 1X  बनाने के लिये दवा का एक भाग और दुग्ध-शर्करा का ९ भाग लेते हैं , 2X के लिये 1X का एक भाग और ९ भाग दिग्ध शर्करा का लेते हैं ; ऐसे ही आगे कई पोटेन्सी बनाने के लिये पिछली पोटेन्सी का एक भाग लेते हुये आगे की पावर को बढाते हैं । डेसीमल स्केल का प्रयोग ठॊस पदार्थॊं के लिये किया जाता है ।

ख) सेन्टीसमल स्केल मे दवा के एक भाग को vehicle ( एलकोहल) के ९९ भाग से सक्शन किया जाता है । इनकी इनसे बनने वाली औषधियों को दवा की शक्ति या पावर से जाना जाता है । जैसे ३०, २०० १००० आदि ।

सक्शन सिर्फ़ दवा के मूल अर्क को एल्कोहल मे मिलाना भर नही है बल्कि उसे सक्शन ( एक निशचित विधि से स्ट्रोक देना )  करना है । आजकल सक्शन के लिये स्वचालित मशीन का प्रयोग किया जाता है जब कि पुराने समय मे यह स्वंय ही बना सकते थे । पहली पोटेन्सी बनाने के लिये दवा के मूल अर्क का एक हिस्सा और ९९ भाग अल्कोहल लिया जाता है , इसको १० बार सक्शन कर के पहली पोटेन्सी तैयार होती है ; इसी तरह दूसरी पोटेन्सी के लिये पिछली पोटेन्सी का एक भाग और ९९ भाग अल्कोहल ; इसी तरह आगे की पोटेन्सी तैयार की जाती हैं ।

विरोध का मूल कारण और एवोगेड्रो ( Avogadro’s  ) की परिकल्पना

रसायन विज्ञान के नियम के अनुसार किसी भी वस्तु को तनु करने की एक परिसीमा है और इस परिसीमा मे रहते हुये यह आवशयक है कि उस तत्व का मूल स्वरुप बरकरार रहे । यह परिसीमा आवोग्राद्रो की संख्या ( 6.022 141 99 X 1023 ) से संबधित है जो होम्योपैथिक पोटेन्सी 12 C से या 24 x से मेल खाता है । यानि आम भाषा मे समझें तो होम्योपैथिक दवाओं की १२ वीं पोटेन्सी और 24 X पोटेन्सी मे दवा के तत्व विधमान रहते हैं उसके बाद नही । होम्योपैथिक के विरोधियों के हाथ यह एक तुरुप का पत्ता था और जाहिर है उन्होने इसको खूब भुनाया भी ।

यह बिल्कुल सत्य है कि रसायन शास्त्र के अनुसार होम्योपैथी समझ से बिल्कुल परे है । लेकिन पिछले २४ वर्षों  मे १८० नियंत्रित ( controlled ) और ११८  यादृच्छिक ( randomized )  परीक्षणों को अलग -२ ४ मेटा तरीकों  से होम्योपैथी का विश्लेषण करने के उपरांत प्रत्येक मामले में  शोधकर्ताओं ने यह निष्कर्ष निकाला कि होम्योपैथी दवाओं से मिलने वाले परिणाम प्लीसीबो से बढ कर हैं ।

होम्योपैथी के संबध मे प्राथमिक प्रशन उभरता है कि क्या सक्शन ( succession ) किये गये SAD ( serially agitated dilutes )  को तरल वाहनों जैसे एल्कोहल या जल  ( liquid vehicles e.g. alcohol , water etc )  से अलग कर के पहचान की जा सकती है जो होम्योपैथिक औषधि के रुप मे उपचार के लिये प्रयोग किये जाते हैं । हाँलाकि इससे प्लीसीबो के आरोपों से मुक्ति नही पा जा सकती लेकिन इससे पता अवशय चलता है कि हर औषधि की अपनी विशेषता क्या है ।

एक सदी से  मेडिकल साहित्य की समीक्षा करने से पता चलता है कि ऐसे कई रिपोर्ट उपलब्ध हैं जिससे यह पहचान की जा सकती है कि इन उच्च  potentised  dilutes का प्रभाव जीवाणु , प्राणि विषयों , वनस्पति और यहाँ तक कि जन्तुओं पर भी असरदारक है । इनके लिये भौतिकी और बायोकेमिस्ट्री दोनों का ही समय-२ पर प्रमाण स्वरुप सहायता ली गई । हाँलाकि इन रिपोर्टों से SAD की आणविक संरचना समझ मे नही आती लेकिन यह बिल्कुल तय है कि यह SAD  तरल वाहनों ( liquid vehicles ) से हटकर हैं ।

इस विषय पर पहल्रे भी चर्चा हो चुकी है । देखें होम्योपैथी -तथ्य एवं भ्रान्तियाँ ” प्रमाणित विज्ञान या केवल मीठी गोलियाँ “( Is Homeopathy a trusted science or a placebo )  लेकिन नवीनतम शोघॊं मे  रसायन शास्त्री श्री बिपलब चक्र्वर्ती और डा. मो. रुहल अमीन के शोध होम्योपैथी औषधियों और एवोगेड्रो  संख्या पर प्रकाश डालने वाले हैं । उनके ब्लाग http://www.aminchakraborty.blogspot.in/  नवीन संभवनाओं को जन्म देता है । बिपलब चक्र्वती एक समय होम्योपैथिक के बडे आलोचक रहे हैं  लेकिन पिछ्ले १० सालॊ से बिपलब और डा. अमीन होम्योपिथिक दवाओं के सांइनटैफ़िक पहलू पर कार्य कर रहे हैं । आपके कई शोध पत्र विभिन्न शोध संस्थानों द्वारा सराहे गये है ।

आवाग्रादो की परिकल्पना और होम्योपैथी के विवाद मे अमीन लिखते है :

How and Why Avogadro’s Number does not Limit efficacy of the Homeopathic Remedies.
#       Homeopathic dilutions have been used since 1800 and remained unchallenged until determination of Avogadro’s number.
#       Homeopathic remedies were challenged only after the determination of Avogadro’s number by Millikan in 1910, a number of years after homeopathy came into use.
#       A mathematical calculation based on Avogadro’s Number led to the conclusion that homeopathic dilution must be nothing but placebo after homeopathy had already been used for 109 years !!
#       It is not proper to discount homeopathy simply on the basis of Avogadro’s number without clarifying the existing fundamental contradictions in science as detailed above.
#       In conventional medicines the molecules are believed to convey the medicinal power in the living body but in homeopathic dilutions it is not the molecules of medicine but the  electrical strain induced in the vehicle, by the  substance, that conveys the medicinal power of a substance in the living body.
#       When preparing serial homeopathic dilutions the electrical strain of the latter differs from the former dilution in regards to difference in molecular orientations of water  but cannot be determined due to non-availability of any such scientific instruments and for which the homeopathic dilution cannot be held responsible.
Source : How and why Homeopathy is Scientific

डा. रुहल अमीन और श्री बिपलब चक्रवर्ती के अन्य शोध लेखों को देखने के लिये निम्म लिंक पर जायें:

मेरी डायरी–बैच फ़्लावर रेमेडी–“ गौर्स–Gorse ”

Gorse

३८ बैच फ़्लावर औषधियों मे से मै  १२-१५  दवाओं का अकसर प्रयोग करता हूँ । अधिकतर बैच फ़्लावर औषधियों  का प्रयोग अभी किया नही है । गौर्स को प्रयोग करने का पहला अनुभव बहुत अधिक संतोषजनक रहा । १५ दिन पहले मुझे जिस रोगी को देखने जाना पडा वह मेरे  एक  साथी चिकित्सक के पिता का केस था । आयु ५६ वर्ष , पिछ्ले कई  सालो से कुवैत मे किसी अच्छी सरकारी पोस्ट पर थे । डायबीटिज थी और उच्च रक्तचाप से पीडित भी  । पहला पक्षाघात का अटैक कुवैत मे ही पडा । कुछ दिन वही अस्पताल मे रहने पर जाँचॊ द्वारा मालूम पडा कि उनकॊ Tubercular meningitis भी है । इलाज शुरु हुआ लेकिन टी.बी . पर वहाँ के चिकित्सकॊ की एक राय न बन सकी । एक पक्ष Neurocysticercosis  और दूसरा चिकित्सकों का समूह टी.बी. की डाय्गोनिसस पर विभाजित रहा । टी.बी. पर कुछ दिन इलाज चलने के बाद दूसरे पक्ष के चिकित्सकों ने टी. बी. पर इलाज बन्द कर के सीसस्टीसर्कोसिस पर इलाज शुरु किया । हाँलाकि पहले इलाज के दौरान मरीज को कुछ फ़ायदा दिख रहा था ।  इस बीच  एक राय न बनने के कारण मरीज को वापस भारत जाने के लिये कहा गया ।

रोगी की पत्नी के अनुसार लखनऊ आने पर वह बेहतर हालात मे थे । उन्होने उस समय की एयर्पोर्ट की मुझे जो फ़ोटॊ दिखाई उसमे वह काफ़ी प्रसन्नचित्त और स्वस्थ दिख रहे थे ।  लखनऊ मे भी चिकित्सकों की एक राय Tubercular meningitis  की ही बनी। फ़लस्वरुप इलाज के दौरान कुछ माह के अन्दर स्वास्थ लाभ तेज हुआ और रिकवरी पूरी तरह से दिखने लगी । लेकिन साल भर के अन्दर दूसरा अटैक फ़ालिज का पडा । और फ़िर उसके बाद वह इलाज चलने के बावजूद भी रिकवर न कर पाये । टी.बी , ब्लड शुगर और  उच्च रक्तचाप   की दवाईयाँ पहले से ही चल रही थी । और वह अब पक्षाघात ( Hemiplegia )  के लिये होम्योपैथिक राय मुझसे लेना चाहते थे ।

अधिकतर फ़ालिज ग्रस्त रोगियों मे सबसे बडी  समस्या उनके अवसादों को लेकर होती है । और यहाँ भी समस्या डिप्रेशन को लेकर ही थी । DPR ( deep plantar reflexes – Babsinki sign ) पाजीटिव दिखने के बावजूद  भी रोगी मे movements काफ़ी हद तक सामान्य थे । इन हालात को देखकर मुझे लगा कि शायद कुछ उम्मीद बन सकती है लेकिन रोगी के साथ मुख्य समस्या मानसिक अवसाद की थी । रोगी की पत्नी के अनुसार न तो वह उनको सहयोग देना चाहते थे और न ही अपने फ़िजियोथिरेपिस्ट को । रोना ,  बात –२ पर क्रोधित होना । जीबन के प्रति निराशा के भाव उनकी बातचीत से ; जो हाँलाकि पक्षाघात के कारण स्पष्ट न थी , साफ़ नजर आ रही थी ।

पहले से ही कई अति आवशयक दवायें चल रही थी और उनको बन्द करके होम्योपैथिक दवाओं को चलाने की कोई वजह नही थी । लेकिन क्या होम्योपैथिक और बैच फ़्लावर कार्य करेगी , यह अवशय संशय था । constitutional/ pathological सेलेक्शन मे से पैथोलोजिकल सेलेक्शन को अधिक मह्त्व दिया जो कि वर्तमान लक्षणॊं मे से प्रमुख थे ।

Opium LM पोटेन्सी पहली चुनाव बना  और अब बारी थी रोगी के अवसादॊ की । बैच फ़्लावर को एक बार फ़िर से अवसादों के लिये मुख्य जगह दी गई । और दवा का सेलक्शन गौर्स पर टिका | लगभग २ सप्ताह के बाद  रोगी की पत्नी और उनके घर के अन्य सद्स्यों ने रोगी की स्वास्थ की प्रगति , ( विशेषकर उनके अवसादों ) को काफ़ी अधिक संतोषजनक बताया । उनके अनुसार रोगी बेहतर हालात में है ,  प्रसन्नचित्त रहते हैं और अपने कार्यों को स्वंय करने की कोशिश करते हैं ,  जो पहले कभी न देखी गई । यह तो आगे आने वाला समय बतायेगा कि अन्य मुख्य लक्षणॊ मे कहाँ तक प्रगति आती है लेकिन Mind – Body connections मे बैच फ़्लावर के महत्व की भूमिका को  नंजर अंदाज नही किया जा सकता ।

आखिर गौर्स ने क्या कियागौर्स का मुख्य लक्षण है – पूर्ण नाउम्मीदी ( Hopelessness ) . रोगी को यह विशवास होता है कि वह अब ठीक नही हो सकता । और या तो वह चिकित्सक को बेमन से मिलता है या फ़िर मजबूरी मे । ( ऋण पक्ष ) ऐसे रोगियों को गौर्स दोबारा जिन्दगी से लडने के लिये संबल प्रदान करता है । ( धन पक्ष )

बात जब गौर्स की है तो बैच फ़्लावर दवाओं मे नाउम्मीदी ( Hopelessness ) की अन्य दवाये भी है , जैसे :

१. Gentian ( जैन्सियन) : इसमे शक और मायूसी तो होती है लेकिन नाउम्मीदी बिल्कुल नही होती ।

२. Sweet chest Nut ( स्वीट चेस्ट नट ) : इसमे पूर्ण निराशा , जैसे सब कुछ खो गया हो और बाकी कुछ रह न गया हो ।

३. Wild Rose ( वाइल्ड रोज ) : अपनी बीमारी के लिये वह अपने पिछ्ले कर्मॊ का फ़ल समझता है ।

४. गौर्स ( Gorse ) : किसी लम्बी बीमारी मे कई ईलाज कराने के बाद वह मायूस हो जाता है और अपनी उम्मीद छोड बैठता है ।

बैच फ़्लावर की कुछ विशेष खूबियाँ मुझे इस पद्द्ति की तरफ़ आकृष्ट करती हैं । जहाँ होम्योपैथिक दवाओं मे अन्य दवाओं के साथ चलाने का झमेला रहता है वही बैच को किसी भी पद्द्ति के साथ समावेशित किया जा सकता है ।

Gorse

Gorse
Scientific name: Ulex
Family Fabaceae.
Rank: Genus
Higher classification: Faboideae

Keyword – Hope | Bach Group – Uncertainty

Gorse is the remedy for those who suffer great uncertainty in the process of life, causing them to experience feelings of hopelessness and despair. This is a state sometimes found in those with a long-term illness who have lost all hope of recovery or in those whose experiences have caused them to view life ‘as a lost cause’. When this state is very deep rooted a person may have dark rings under the eyes or be prone to sigh a lot. Taken over a period of time Gorse will help to dispel these dark feelings and promote new hope and vision for the future.

Dr Bachs description of Gorse:-

“Very great hopelessness, they have given up belief that more can be
done for them. Under persuasion or to please others they may try
different treatments, at the same time assuring those around that
there is so little hope of relief”

From the Twelve Healers & Other Remedies – By Dr Edward Bach ( 1936 edition)

यह भी देखें :

सर्दियों में सीजनल एफेक्टिव डिसॉर्डर (सैड) – Seasonal Affective Disorder or Winter depression

Portrait of the beautiful thoughtful girl. Autumn, grief, dreams and tenderness.

सर्दियों के दिनों अवसाद या डिप्रेशन की एक आम समस्या है ।  अवसाद कॆ  कारणॊ के पीछे कई वजह  हो सकते हैं लेकिन अगर आप सर्दियों मे दूसरे मौसम की अपेक्षा आलस, थकान और उदासीन महसूस करते हैं तो हो सकता है कि आपको सीजनल एफेक्टिव डिसॉर्डर (सैड) की समस्या हो। सर्दियों में अक्सर दिन के समय सूर्य का प्रकाश हमें कम मिलता है जिससे कई बार हमारी दिनचर्या और सोने व उठने का चक्र प्रभावित होता है। ऐसे में हमारे मस्तिष्क में ‘सेरोटोनिन’ नामक केमिकल प्रभावित होता है जिससे हमारा मूड बिना वजह खराब ही रहता है। कई बार यह स्थिति हमें अवसाद का शिकार बना सकती है ।
सीजनल एफेक्टिव डिसॉर्डर (सैड)  का वर्णन   मेडिकल सांइस मे सबसे पहले १९८० के दशक से दिखता है हाँलाकि इसके पहले कई चिकित्सक और रोगी भी इस बात से वाकिफ़ थे कि सर्दी का मौसम शुरु होते ही स्वभाव मे बदलाव दिखना आरम्भ हो जाता है । इस तथ्य का वर्णन पांचवी सदी ईसा पूर्व हिप्पोक्रेट्स  के कुछ आलेखों मे भी देखा जा सकता है । कई देशॊ मे जहाँ दिन काफ़ी छॊटे होते है और धूप का सर्वथा अभाव रहता है वहाँ अवसाद के रोगियों का मिलना एक आम समस्या है । जैसे स्वीडेन के उत्तर  भाग मे जहाँ छ्ह महीने रात और छ्ह महीने दिन रहता है वहाँ आत्मह्त्या की दर सबसे अधिक है ।

SAD के बारे मे कुछ तथ्य

  • कोई आवशयक नही कि ठंड मे रहने वाले लोगों को ही यह समस्या हो , जो लोग उन जगहों पर रहते हैं जहां ठंड कम पड़ती हो और बहुत अधिक ठंड वाले इलाके में आ जाएं।
  • महिलाओं में इस बीमारी की आशंका अधिक रहती है।
  • 15 से 55 वर्ष की आयु वाले लोगों में इसकी आशंका अधिक रहती है।
    सीजनल एफेक्टिव डिसॉर्डर से पीड़ित व्यक्ति के बहुत अधिक संपर्क में रहने वाले व्यक्ति को भी यह बीमारी हो सकती है।

SAD के लक्षण

  • लगातार थकान महसूस हो और रोजमर्रा के कामो मे मन न लगे ।
  • मन मे नकारात्मक विचारों का बार बार आना ।
  • सही प्रकार नींद न आना या बहुत अधिक नींद आना ।
  • कार्बोहाइड्रेट युक्त चीजों जैसे रोटी, ब्रेड या पास्ता आदि खाने का हमेशा मन करना ।
  • वजन का तेजी से बढना ।

SAD से बचने के उपाय :

  • अपनी दिनचर्या निर्धारित करे ।
  • रोजाना योग , ध्यान , मार्निग वाक और एक्सर्साइज करें ।
  • थोडा खायें और बार –२ खायें लेकिन खाने मे हरी सब्जियों और फ़लों का सेवन अधिक करें ।
  • सुबह देर तक न सोयें ।
  • सर्दियों मे संभव हो तो दोपह्र का खाना धूप मे खायॆ ।
  • इतवार को और अधिक खुशगवार बनायें ,  धूप का आंनद लेने के किसी पार्क मे जायें ।
  • अगर घर मे ही काम करना पडे तो कोशिश करे कि ऐसी खिडकी के पास अपनी टॆबल रखें जहाँ प्रचुर मात्रा मे धूप उपलब्ध हो ।

मेडिकल उपचार
आमतौर पर डॉक्टर सैड के मरीजों का उपचार दो तरह की लाइट थेरेपी से करते हैं- ब्राइट लाइट ट्रीटमेंट और डॉन सिमुलेशन। ब्राइट लाइट ट्रीटमेंट के तहत रोगी को लाइटबॉक्स के सामने रोज सुबह आधे घंटे तक बैठाया जाता है।
दूसरी विधि में सुबह सोते वक्त रोगी के पास धीमी लाइट जलाई जाती है जो धीरे-धीरे तेज होती जाती है। सूर्योदय जैसा वातावरण तैयार किया जाता है। इसके अलावा योग, अवसाद हटाने वाली दवाओं और कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी से भी इस बीमारी का उपचार किया जाता है।

होम्योपैथिक उपचार

SAD के रोगियों को देखने के दौरान निम्म रुब्रिक्स  जो बहुतायात रोगियों मे पाये जाते है  :

  • *Sadness, melancholy
  • *Feelings of worthlessness
  • *Hopeless
  • *Despair
  • *Sleepiness
  • *Lethargy
  • *Craving for sweets
  • *Craving for carbohydrates
  • *Company aggravates
  • *Desire to be alone
  • *Music ameliorates
  • *Difficulty concentrating/focusing
  • *Thoughts of death or suicide.

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औरम मेट , फ़ास्फ़ोरस , सीपिया , रस टाक्स . इगनेशिया सर्दियों मे होने वाले अवसाद की मुख्य औषधियाँ है । हाँलाकि लक्षणॊ की सम्पूर्ण्ता ( Totallity of symptoms ) ही औषधि चुनाव का आधार है ।

लेकिन मुख्य औषधियों पर एक नजर :

Aurum metallicum is for those who sink into terrible depression in the dark of the winter feeling like the cloud is sitting over them. At their worst they feel that life isn’t worth living. They take solace in work and/or religion and hide themselves away listening to sad music until the sun returns the following spring.
Phosphorus has a really close relationship with the weather, loving the sun and sparkling with it – actually feeling invigorated by being out in the sunshine. They are deeply affected by cloudy weather – becoming miserable and gloomy the longer the sun stays away. In the deepest, darkest time of the winter they can slow right down, not wanting to do anything. Chocolate (especially chocolate ice cream) is their great source of comfort at those times – as are their friends. Even brief outbursts of sunshine on a winter’s day will lift their spirits, as can getting out with friends and going to a party or going dancing!
Rhus toxicodendron is useful for those who are particularly vulnerable to cloudy weather, who find that the cold, damp, wet and cloudy weather makes them feel just plain miserable. Their body reacts to the cloudy weather by stiffening up – especially the back and the joints – which makes them feel even worse. Getting up after sitting or lying down for a while is hard, and then continued movement eases the stiffness – unfortunately those joints start to hurt again if they are using them for a while so they have to rest – after which the whole maddening cycle starts again, thereby causing the restlessness that is a keynote for this remedy.
Sepia is for extremely chilly types who hate everything about winter: the damp, the rain, the frost, the snow, the clouds – everything. Their moods start to lift when they begin to get warm again in the late spring and early summer when they can get out in the fresh air and do some vigorous exercise. These people love to run much more than jog, and it is this kind of exercise – vigorous exercise in the fresh air – that makes them feel really well overall. If they can’t do it they sink into a depressed, irritable state where they want to be alone (and eventually, so does everyone else – want them to be alone that is!)

Homoeopathic therapy for lower urinary tract symptoms in men with Benign Prostastic Hyperplasia: An open randomized multicentric placebo controlled clinical trial

Benign Prostatic Hyperplasia (BPH) is the most common condition in ageing men, associated with Lower Urinary Tract Symptoms (LUTS). Being a cause of significant morbidity in ageing man, various observational studies were conducted by the Council with a positive outcome. This protocol has been prepared to further ascertain the usefulness of constitutional/organ remedies in LUTS for men with BPH in a randomized control setting.

Objectives: The primary objective is to compare the changes in IPSS (International Prostate Symptom Score) within the three groups enrolled for the study (Constitutional remedy/Constitutional + Organ remedy/Placebo). The secondary objectives are to compare the changes in Prostate volume, Post Void Residual Urine (PVRU), Uroflowmetry and in WHOQOL-BREF.

Material and Methods: It is an open randomized placebo controlled clinical trial. The prescription of the constitutional remedies/organ remedies/placebo is done as per the randomization chart and the selection of these remedies is done as per the guidelines laid in the Organon of Medicine. The outcome measures including IPSS (monthly), prostate volume, post void residual urine, uroflowmetry and the WHOQOL-BREF are assessed at baseline, three and six months interval.

Discussion:Results from this trial will help in constructing treatment strategy for BPH patients with lower urinary tract symptoms in improving their quality of life.

Trial Registration: Clinical Trial Registry – India: CTRI/2012/05/002649.

Keywords: Homoeopathy, Prostate, Post void residual urine, Prostate volume, Uroflowmetry

Download link : https://app.box.com/s/x2uj1sn304k867fo0exd

वर्ष 2013-14 सहित बारहवीं पंच वर्षीय योजना के दौरान आयुष विभाग की प्राथमिकताएं

वर्ष 2013-14 सहित बारहवीं पंच वर्षीय योजना के दौरान आयुष विभाग की प्राथमिकताएं

देश के कोने-कोने में प्रत्येक व्यक्ति को पूर्ण स्वास्थ्य के दायरे में लाना बाहरवीं पंच वर्षीय योजना की एक प्राथमिकता है। इस दौरान आयुष चिकित्सा प्रणाली की विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए उसे आधुनिक चिकित्सा प्रणालियों के साथ-साथ प्रयोग में लाया जाएगा। रोगों से बचाव, विशेष रूप से महिलाओं, बच्चों, वरिष्ठ व्यक्तियों को ध्यान में रखते हुए नॉन कम्यूनिकेबल बीमारियों में, तनाव के प्रबंधन में, मानसिक रोगों की चिकित्सा में, बीमारियों से जूझते व्यक्तियों की देखभाल में और स्वस्थ्य लाभ में आयुष का प्रयोग किया जाएगा।

बारहवीं पंच वर्षीय योजना के महत्वपूर्ण उद्देश्य : –

बाहरवीं पंच वर्षीय योजनाओं में आयुष के लिए 10,044 करोड़ रूपये का प्रावधान रखा गया है। जबकी ग्यारहवीं पंच वर्षीय योजना में केवल 2994 करोड़ रूपये ही जिन उद्देश्यों के लिए खर्च किए गए वे हैः

1. स्वास्थ्य सेवाओं में आयुष के प्रयोग को बढ़ाया गया।

2. आयुष विभाग ने आयुष की विशेषताओं को चिकित्सा, विशेषतौर पर महिलाओं बच्चों और बुजुर्गों के लिए, मानसिक बीमारियों के चिकित्सा में, तनाव के प्रबन्धन में, बीमार व्यक्तियों की देखभाल में और पुनर्वास में किया।

बारहवीं पंच वर्षीय योजना के अंतर्गत जो सुझाव दिए गए हैं उनमें इन संस्थाओं को शुरू करने की सिफारिश की गई है : –

1. होमियोपैथी मेडिसिन फार्मास्यूटिकल कंपनी लिमिटेड

2. अखिल भारतीय योग संस्थान

3. अखिल भारतीय होमियोपैथी संस्थान

4. अखिल भारतीय यूनानी चिकित्सा संस्थान

5. राष्ट्रीय सोवा रिग्पा संस्थान

6. राष्ट्रीय औषधीय पौध संस्थान

7. राष्ट्रीय आयुष पुस्तकालय और अभिलेखागार

8. केंद्रीय सोवा रिग्पा अनुसंधान परिषद

9. आयुष संबंधित राष्ट्रीय मानव संसाधन आयोग

10. आयुष के लिए केंद्रीय दवा नियंत्रक

11. आयुष औषध प्रणाली का भारतीय संस्थान

12. राष्ट्रीय जराचिकित्सा संस्थान

13. मेटाबॉलिक तथा लाइफ-स्टाइल बीमारियों का राष्ट्रीय संस्थान

14. राष्ट्रीय ड्रग तंबाकू निवारण संस्थान

नए कार्यक्रम : आयुष के राष्ट्रीय मिशन के अंतर्गत कुछ और नए कार्यक्रमों की सिफारिश की गई है जो कि इस प्रकार हैः

1. आयुष ग्राम

2. फार्मेको विजिलेंश इनिशियेटिव फोर ए.एस.यू. ड्रग्स

3. शोध परिषद की इकाइयों को प्रभावी बनाना

4. राष्ट्रीय आयुष हैल्थ प्रोग्राम

5. अस्पताल और डिस्पेंसरी (आयुष के साथ-साथ राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन-एक फ्लेक्सिपूल)

source : http://www.pib.nic.in/newsite/hindirelease.aspx?relid=21511

मुसीबत में है होम्योपैथी चिकित्सक …बना सर दर्द क्लीनिकल प्रतिष्ठान (पंजीकरण और नियमन) अधिनियम,2010 – The Clinical Establishments (Registration and Regulation) Act

आयुष पद्दतियों में से होम्योपैथी के लिये एक और बुरी खबर !! पिछ्ले कुछ सालों से अटपटे फ़ैसलों ने चिकित्सकों को सरदर्दी मे डल दिया है । सबसे पहली मार माननीय उच्चतम न्यायालय ने पौंडं पैंकिंग ( ४५० मि.ली. ) की बिक्री पर रोक लगाकर लगाई , छोटी पैंकिग का चलन बढा , राज्य सरकारों को अधिक रेवन्यू की प्राप्ति हुई लेकिन होम्योपैथॊम्के लिये यह सरदद बन के रह गया , उसके बाद कुछ ही सालों के अब्न्दर केन्द्र ने   G.M.P. ( Good Manufacturing Practices ) के   अन्तर्गत होम्योपैथिक दवाओं पर expiry date  को अंकित करना आवशयक कर दिया । एक और बेतुका नियम , जब expiry होती ही नही तो इस चलन को क्यूं लागू किया !!

Do you want such act ?

लेकिन हाल मे ही उत्तर प्रदेश मे २८ फ़रवरी २०१३ से लागू भारत सरकार के  क्लीनिकल प्रतिष्ठान (पंजीकरण और नियमन) अधिनियम, 2010 ने रही सही कसर पूरी कर दी । लेकिन यह सरदर्द मात्र होम्योपैथों के लिये नही बल्कि मेडिकल सेवा मे आने वाले हर उस प्रतिषठान की है जिसमॆ एलोपैथिक चिकित्सक , डेन्टल चिकित्सक, डाइगनोस्टिक सेन्टर  और आयुष पद्दतियों के सभी चिकित्सक शामिल हैं । एक बार राज्यों द्वारा अपनाने पर इस अधिनियम के अनुसार, राज्य सरकारें क्लीनिकल प्रतिष्ठानों के पंजीकरण के लिए प्रत्येक जिले में पंजीकरण प्राधिकरण की स्थापना करेंगी। किसी भी चिकित्सक  को क्लीनिकल प्रतिष्ठान चलाने के लिए इस अधिनियम के प्रावधानों का पालन करना होगा।

अधिक जानकारी के लिये http://clinicalestablishments.nic.in/ पर जायें । हिन्दी में प्रारुप को डाऊनलोड करने के लिये हाँ जायें और अंग्रेजी मे डाउनलोड करें यहाँ से ।

एक्ट की नयी व्यवस्थाओं इतनी अधिक जटिल हैं कि इस के  अनुसार चिकित्सीय स्थापनों  को चलाना अब आसान नही रहा । उत्तर प्रदेश मे दम तोडती चिकित्सा आने वाले दिनों मे किस मोड पर होगी इसका अनुमान लगाना कोई मुशिकिल नही दिखता  । पहले से ही CPMT  मे अरुचि लेते छात्रों का मनूबल नयी व्यवस्था के चलते और भी घटॆगा । कुछ साल पहले जहाँ लाखों छात्र- छात्र्यें CPMT मे शरीक होते थे कुछ सालॊ मे यह प्रतिशत चन्द हजारों तक पहुँच चुका है ।

आखिर देखते है  कि क्या है यह अधिनियम और क्यूं इस एक्ट के लागू होने से आयुष चिकित्सकॊ को कठिनाईयों का सामना करना पडेगा ।

एक्ट क्या  है :

संक्षिप्त रुप मे समझें कि अब सरकार यह तय करेगी कि क्लीनिक चलाने के लिये आपके पास पर्याप्त जगह हो , प्रक्षिक्षत स्टाफ़ हो , क्लीनिक में शौचालय की व्यवस्था हो , आपातकालीन परिस्थितियों में अगर रोगी का इलाज क्लीनिक मे नही हो सकता है तो उसे पास के अस्पताल तक पहुँचाने के लिये एम्बुलेसं हो , आदि-२ ।

C.M.O. के पास यह अधिकार होगा कि अगर चिकित्सक एक्ट का पालन नही करता है तो उस पर पहली बार १०००० रु. , दूसरी बार ५०००० रु और तीसरी और अन्तिम बार ५ लाख रु तक का जुर्माना लगाया जाय ।

एक्ट के अनुसार यदि चिकित्सक मेडिकल सेवा के अलावा और किसी कार्य /कारोबार मे लिप्त पाया जायेगा तो उसे दुराचार ( misconduct ) की संज्ञा दी जायेगी 🙂 section 68 part 1

What Is Clinical establishmentAct?

  • This bill makes it mandatory for each and every clinical establishment including every individual clinic, consulting chamber, laboratory or any other investigative or treatment place without indoor beds, nursing homes, hospital etc. by whatever name it may be called to register and follow minimum standards of infrastructure i.e. of space / equipment and qualified para medical staff.
  • It provides for mandatory registration of all clinical establishments, including diagnostic centers and  single-doctor clinics across all recognized systems of medicine both in the public and private sector  except those run by the Defense forces
  • As-is-where-is Initially, provisional registration would be granted within 10 days of application on ‘as- is-where-is basis upon receiving the application filed with supporting documents. Once standards have been notified, permanent registration would be provided to all those conforming to the notified standards.
  • To stabilize the emergencypatient (with its grammatical variations and cognate expressions) means, with respect to an emergency medical condition specified in clause (f), to provide such medical treatment of the condition as may be necessary to assure, within reasonable medical probability, that no material deterioration of the condition is likely to result from or occur during the transfer of the individual from one clinical establishment to other.
  • The registering authoritycan impose fines for non-compliance and if aclinical establishmentfails to pay the same, itwould be recovered as anarrear of land revenue.
  • Penalties for non registration :There are stringent and huge monitory penalties for non registration by any professional, which are more than many criminal penalties of IPC.For First Offence, 10,00 FOR SECOND 50,000,subsequent offenses Rs.5 Lakhs.
  • Any person serving in non registered establishment 25,000/-Disobeying any direction or obstruction to inspection Rs. 5 Lakhs.
  • Rajasthan and UttarPradesh have alreadyadopted the Act.
  • The state government is making an all out effort to crack the whip on private clinics and hospitals with an Act which would require them to declare the amount of fees they charge, the number of services they offer and get registration from the medical authorities to set up a health facility.
  • clinics and private hospitals will have to mention on a display board about the services they are providing and the fees they are charging for that.
  • The proposed Act envisages to have district level committees, which would include district collector, chief medical health officer and superintendent of police.
  • Act would also prescribe minimum quality standards of services at the private clinical establishments. A medical department official said under the Act, no one can open clinics and hospitals without applying for registration. For the first two years, the department would issue temporary registration and after two years, permanent registration would be provided.

होम्योपैथिक चिकित्सकों  के लिये एक्ट के ऋण पक्ष और कुछ सुझाव :

( केन्द्रीय होम्योपैथिक परिषद के सदस्य डां अनुरुद्ध वर्मा से बातचीत के आधार पर )

  • होम्योपैथी में अधिकतर क्लीनिक एकल चिकित्सकॊ द्वारा संचालित किये जाते हैं जिसमें से अधिकतर में चिकित्सक स्वंय ही औषधियों की डिस्पेन्सिंग करते हैं । ऐसी दशा में जब मानक तय किये जाये तब इन्हें एलोपैथी के मानकों पर न कसा जाये क्योंकि होम्योपैथी में कम स्थान , कम उपकरण , कम संसाधन आदि की जरुरत पडती है और चिकत्सक अपने क्लीनिक  से रोगी को औषधि उपलब्ध कराता है ।ऐसे मे होम्योपैथी के लिये क्लीनिक स्थापित करने के लिये अलग मानक तय करना चाहिये । यदि होम्योपैथी क्लीनिक पर एलोपैथी के मानक तय किये जायेगें तो क्लीनिक खोलना और चलाना कठिन हो जायेगा।
  • इस एक्ट मे होम्योपैथिक के अधिकारियों एवं संस्थाओं तथा प्रतिनिधियों को समुचित स्थान नही दिया गया है तथा जिला स्तर पर भी पर्याप्त प्रतिनिधित्व नही है जिससे होम्योपैथिक चिकित्सकों के हितों की अनदेखी हो सकती है । एक्ट के अंतर्गत गठित होने वाली नेशनल कांउनसिल एवं जिला कमेटियों में एलोपैथी की प्रोफ़ेशनल संन्स्थाओं , अधिकारियों एवं प्रतिनिधियों को अधिक प्रतिनिधित्व दिया गया है परतुं नेशनल कांउनसिल मे भारतीय चिकित्सा पद्धतियों के तीन सदस्यों को स्थान दिया गया है जबकि केन्द्रीय होम्योपैथिक परिषद के मात्र एक प्रतिनिधि को स्थान मिला है ।
  • होम्योपैथिक चिकित्सक के लिये प्रशिक्षित स्टाफ़ उपब्ध हो पाना भी संभव नही है क्योंकि होम्योपैथी मे फ़ार्मासिस्ट का कोई अधिकृत प्रशिक्षण नही है ।

मौजूदा हाल मे यह एक्ट होम्योपैथिक चिकित्सकों के लिये एक आधात से कम नही है । अधिक्तर मध्यम वर्गों से आने वाले छात्र / छात्रायें और उनके अभिवावक क्या इस बोझ को सह पायेगें ? आगे क्या होगा यह तो समय ही बतायेगा !!

केन्द्रीय होम्योपैथी परिषद ने होम्योपैथी में M.D. करने के नये विकल्प दिये …

केन्द्रीय होम्योपैथी परिषद (CCH ) ने चार नये विषयों में स्नातकोत्तर डिग्री पाठ्यक्रम के मसौदे को मंजूरी दे दी और साथ ही मे सभी राज्य /संघ राज्य क्षेत्र सरकारों और विशवविधालयों से होम्योपैथी स्नातकोत्तर विनियम में प्रस्तावित संशोधनों पर अपनी टिप्पणी भेजने का अनुरोध भी किया है ।

चार नए पाठ्यक्रम

  • Anatomy
  • Physiology
  • Pathology
  • Forensic Medicine

सीसीएच के पीजी समिति ने उपरोक्त विषयों के लिए एक विस्तृत स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम तैयार किया है जो संभावित नये सत्र से लागू किया जायेगा ।

गौरतलब है कि जो पूर्व पाठयक्रम पहले से ही चल रहे हैं उनके अलावा इन पाठक्रमों का समावेश किया गया है ।

मौजूदा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम

  • Materia Medica
  • Organon of Medicine
  • Repertory
  • Practice of Medicine
  • Pediatrics
  • Homeopathic Pharmacy
  • Psychiatry

साभार : डां मन्सूर अली : http://www.similima.com/four-new-postgraduate-courses-in-homoeopathy

संबधित पोस्ट :

मेरी डायरी से – रोडोडेंड्रॉन ( Rhododendron)

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उत्तराखंड के कुमांयु मण्डल की मेरी सपरिवार यह दूसरी यात्रा थी । पिछ्ली बार नैनीताल, मुक्तेशवर , भवाली को कवर किया था और  इस बार  कौसानी लक्ष्य था । नैनीताल से कौसानी जाते समय कुछ पल रानीखेत मे बिताये । पिछ्ली बार भवाली की मार्केट मे चेस्टनेट  को देखकर उसके होम्योपैथिक और बैचफ़्लावर दवाओं मे प्रयोगों का स्मरण आ गया था ( देखें यहाँ) और इसबार  रानीखेत मे रोडोन्डून ( बुरांश ) का स्थानीय उपयोगों और उसके होम्योपैथिक प्रयोगों को देखकर यह पोस्ट लिखने का विचार आया ।

रानीखेत में अगर आप चौबटिया गार्डेन घूमने  जा रहे हो तो यहाँ पहाडी फ़ूल बुरांश का शरबत अवशय खरीदें और पीयें । यह स्वादिष्ट खट्टा मीठा स्वाद वाला शरबत है और यह हृदय रोगियों के लिए बेहद लाभकारी माना जाता है। चौबटिया गार्डेन में सेब का बगीचा है जिसे सरकार चलाती है । यहाँ फ़ैले जंगलो में  सेब , अलूचे, और आडु जैसे फ़लों की खेती की जाती है ।

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रोडोडेंड्रॉन की कई प्रजातियाँ बागवानी और औषधि के रुप में प्रयोग की जाती हैं । हिमालयी क्षेत्रों में 1500 से 3600 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाने वाला बुरांस मध्यम ऊंचाई पर पाया जाने वाला सदाबहार वृक्ष है। बुरांस के पेड़ों पर मार्च-अप्रैल माह में लाल सूर्ख रंग के फूल खिलते हैं। बुरांस के फूलों का इस्तेमाल दवाइयों में किया जाता है, वहीं पर्वतीय क्षेत्रों में पेयजल स्त्रोतों को यथावत रखने में बुरांस महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बुरांस या बुरुंश (रोडोडेंड्रॉन / Rhododendron ) सुन्दर फूलों वाला एक वृक्ष है। बुरांस का पेड़ जहां उत्तराखंड का राज्य वृक्ष है, वहीं नेपाल में बुरांस के फूल को राष्ट्रीय फूल घोषित किया गया है। गर्मियों के दिनों में ऊंची पहाडिय़ों पर खिलने वाले बुरांस के सूर्ख फूलों से पहाडिय़ां भर जाती हैं।

रोडोडेंड्राँन (Rhododendron), झाड़ी अथवा वृक्ष की ऊँचाईवाला पौधा है, जो एरिकेसिई कुल (Ericaceae) में रखा जाता है। इसकी लगभग 300 जातियाँ उत्तरी गोलार्ध की ठंडी जगहों में पाई जाती हैं। अपने वृक्ष की सुंदरता और सुंदर गुच्छेदार फूलों के कारण यह यूरोप की वाटिकाओं में बहुधा लगाया जाता है। भारत में रोडोडेंड्रॉन की कई जातियाँ पूर्वी हिमालय पर बहुतायत से उगती हैं। रोडोडेंड्रॉन आरबोरियम (Rhododendron arboreum ) अपने सुंदर चमकदार गाढ़े लाल रंग के फूलों के लिए विख्यात है। पश्चिम हिमालय पर कुल चार जातियाँ इधर उधर बिखरी हुई, काफी ऊँचाई पर पाई जाती हैं। दक्षिण भारत में केवल एक जाति रोडोडेंड्रॉन निलगिरिकम (R. nilagiricum) नीलगिरि पर्वतपर पाई जाती है। इस वृक्ष की सुंदरता के कारण इसकी करीब 1,000 उद्यान नस्लें (horticultural forms) निकाली गई हैं।

सामान्यत: प्रयोग होने वाली रोडोन्ड्रोन की प्रजातियाँ हैं :

1. Rhododendron anthopogon Family: Ericaceae (Heath Family)
2. Rhododendron arboreum Family: Ericaceae (Heath Family)
3. Rhododendron aureumRosebay Synonym: Rhododendron chrysanthum, Family: Ericaceae (Heath Family)
4. Rhododendron campanulatum Family: Ericaceae (Heath Family)
5. Rhododendron ferrugineumAlpenrose Family: Ericaceae (Heath Family)
6. Rhododendron griersonianum Family: Ericaceae (Heath Family)
7. Rhododendron indicumRhododendron Synonym: Azalea indica, Family: Ericaceae (Heath Family)
8. Rhododendron japonicum Synonym: Rhododendron metternichii, Family: Ericaceae (Heath Family)
9. Rhododendron kaempferi Family: Ericaceae (Heath Family)
10. Rhododendron lapponicumLapland Rosebay Family: Ericaceae (Heath Family)
11. Rhododendron lutescens Family: Ericaceae (Heath Family)
12. Rhododendron luteumHoneysuckle Azalea Synonym: Azalea pontica, Rhododendron flavum, Family: Ericaceae (Heath Family)
13. Rhododendron maximumRosebay Rhododendron Synonym: Rhododendron procerum, Family: Ericaceae (Heath Family)
14. Rhododendron molleChinese Azalea Synonym: Azalea mollis, Azalea sinensis, Rhododendron sinense, Family: Ericaceae (Heath Family)
15. Rhododendron mucronulatum Family: Ericaceae (Heath Family)
16. Rhododendron ‘PJM’ Family: Ericaceae (Heath Family)
17. Rhododendron ponticumRhododendron Synonym: Rhododendron lancifolium, Rhododendron speciosum, Family: Ericaceae (Heath Family)
18. Rhododendron x praecox Family: Ericaceae (Heath Family)

रोडोडेंड्रॉन का आयुर्वेदिक पद्द्ति मे उपयोग :

प्राचीन काल से ही बुरांश को आयुर्वेद में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। रोडोडेन्ड्रोन प्रजाति के इस पेड़ में सीजनल बुरांश के लाल, सफेद, नीले फूल लगते हैं। लाल फूल औषधि गुणों से भरपूर हैं। खास कर हृदय रोग से पीड़ित लोग के लिये यह वरदान है । जबकि शारीरिक विकास व खूनी की कमी में बुरांश का जूस व इससे तैयार उत्पाद अचूक औषधि का काम करती है। खांसी, बुखार जैसी बीमारियों में भी बुरांश का जूस दवा का काम करता है

रोडोडेंड्रॉन का  होम्योपैथिक मैटेरिया मेडिका मे प्रयोग :

होम्योपैथिक उपयोग के लिये रोडोन्ड्रोन फ़ेरूजीनीम (Rhododendron ferrugineum )  से बनाई जाती है । यह अधिकाशंतया साइबेरिया के पर्वत शिखरों पर उगती है ।  इस वनस्पति की शुष्क पत्तियों से इसका मूल अर्क तैयार किया जाता है ।

यह औषधि आमवाती ( rheumatic ) तथा गठियाबाती रोगों ( osteoarthritis )  रोगों मे व्यापक प्रयोग की जाती है ।रोडोडेंड्रॉनके लिये सार्वाधिक चारित्रिक संकेत गरज वाले तूफ़ान से पूर्व इसकी वृद्धि से है । यह वृद्धि नम मौसम से उतनी अधिक नही होती जितनी वातावरण मे विद्धुतीय परिवर्तनों के कारण । migratory rhematic सूजन में और अधिकतर लघु ( small joints ) को अधिक प्रभावित करती है । arthritic nodes पर इसका व्यापक असर है । विश्राम के दौरान वृद्धि और गति मे सुधार इसकी मुख्य modalities है ।

रोडोडेंड्रॉन बहुत अधिक स्मृति ह्वास से चारित्रिक है । वह लिखते हुये शब्दों को छोड देता है । हम इसको विचारों का लुप्त होना भी पाते  हैं । यह बोलने की क्रिया मे अचानक रुकावट से स्पष्ट होता है , रोगी प्राय: अचानक वार्तालाप बन्द कर देता है ताकि वह अपनई विचारधारा को स्मरण करने मे समर्थ हो सके ।

रोडोडेंड्रॉन  Tinnitus Aurum ( कानोंमे आवाज के साथ चक्कर ) मे भी यह प्रयोग की जाती है । बिस्तर पर लेटनेसे अचानक सिर मे चक्कर शुरु हो जाता है

रोडोन्ड्रोन का अन्य  मुख्य उपयोग अंडकोष ( Orchitis )  की नई और पुरानी सूजन के लिये भी है । मुख्यत यह बाये अडंकोष को प्रभावित करती है । अडंकोष लगता है कि जैसे खिचे हुये हों , ग्रंथि मे ऐसी अनूभूति होती है जैसे कुचल दी गई हो । Hydrocoele की आरंभिक स्थति में इसका प्रयोग सार्थक है ।

रोडोडेंड्रॉन आरबोरियम (Rhododendron arboreum )  का होम्योपैथिक परीक्षण नही किया गया है । लेकिन इसके तमाम गुणॊं को देखते हुये इसकी भी प्रूविगं CCRH को करवानी चाहिये ।

लेकिन अगली बार अगर आपका प्रोग्राम रानीखेत का बने तो रोडोडेंड्रॉन आरबोरियम (Rhododendron arboreum )  या बुरांश के शरबत का स्वाद लेना न भूलें Smile

एन्ड्रोएड स्मार्ट्फ़ोन्स और टैबलैट के लिये होम्योपैथिक एपलीकेशन( Homeopathic apps for Android Smart phones and tablets )

पिछ्ले दिनों अपने इलेक्ट्रोनिक गैजैडस मे एक और इजाफ़ा किया । अब कि  बारी थी टैबलेट की । बाजार मे कई आप्शन  सर्च किये किसी का प्रोसेसर  धीमा था , किसी मे ग्राफ़िक कार्ड की कमी थी और किसी मे calling की सुविधा नही थी आदि –२ । लेकिन सबसे बडी बात जो थी कि जेब भी मै बहुत अधिक ढीली नही करना चाहता था “Smile  बात फ़िर आकर  रुकी एक नानब्रान्डन्ड टैबलैट I Berrry की जिसमे मुझे वह सारे आप्शन मिल गये जिसको मै ढूँढ रहा था । अपने अनुज मित्रों मो. तल्हा और फ़जले रहीम का आभारी हूँ जिन्होने इस सर्च को और भी अधिक आसान  बनाने मे मदद की ।

The Auxus AX03G has the following specifications:

SYSTEM PROCESSOR
• CPU: 1.0 GHz ARM Cortex A8
• GPU: Dual Mali-400 OpenGL 2.0
• VPU: Dedicated Full HD Video processing
OPERATING SYSTEM
Android 4.0 Ice-Cream Sandwich
• Official Google Play Store supported
MEMORY
1GB RAM DDR3
• 24GB Storage Memory (Internal 8GB NAND Flash + External 16GB MicroSD memory)
• Expandable MicroSD slot upto 32GB
DISPLAY
• 7.0″ Capacitive Multitouchscreen
• 800×480 WVGA-Widescreen
NETWORK
Inbuilt SIM slot, GSM (2G/3G) 900/1800/2100MHz with Phone Function
• WiFi 802.11 b/g and Bluetooth
VIDEO OUTPUT
Mini HDMI, v1.3, Type C
(Full HD 1080p Supported)
CAMERA
• Back 2 MP, Front 0.3 MP
GAMES
• Dual Mali 400 GPU with OpenGL 2.0 support
• Accelerometer, Gravity & Motion Sensor
INPUT/OUTPUT
• 3.5 mm earphone jack, built-in Microphone
• Stereo Speakers, Mini USB Port
• Mini HDMI, MicroSD slot
BATTERY
• Rechargeable Li-poly 4000MAh

Sony-Ericsson-XPERIA-X10-01 Samsung-Galaxy-Tab-Price

एन्ड्रोएड फ़ोन्स के लिये होम्योपैथी एपलीकेशन

Auxus की 3  G टैबलेट की चर्चा करना इस पोस्ट का उद्देशय नही है बल्कि उन फ़्री होम्योपैथिक एपलिकेशन्श के बारे मे जानकारी देना है जिनको होम्योपैथिक यूजर एन्ड्रोएड फ़ोन्स और टैबलेट मे  जानकारी और फ़ायदे के लिये प्रयोग कर सकता है ।

गूगल प्ले ( एन्ड्रोएड मार्केट )  पर अगर सर्च करें तो कई एपलिकेशन्श नजर आयेगें । जिन दो एपलिकेशन्श की मै यहाँ चर्चा कर रहा हूँ वह निस्संन्देह उच्चकोटि के हैं ।

१. मैटिरिया मेडिका लाइट ( Materia Medica Lite )

materia medica lite

मनोहर नागिहा ने इसका सृजन किया है । गूगल प्ले पर होम्योपैथी का सबसे बढिया एपलिकेशन है । बोरिक , केन्ट , एलेन , नैश और क्लार्क की मैटिरिया मेडिका के अलावा इस नये वर्जन  में केन्ट की रेपर्टिरी का भी श्री नागिया ने समावेश किया है । आर्गेनान का छ्टा संस्करण भी है और साथ में होम्योपैथिक मैटिरिया मेडिका से संम्बधित लेक्चर भी है ।

डाउनलोड और इन्सटाल करने के लिये जायेंhttp://tinyurl.com/cctgtnw

. Bach Remedy Resource (New)

bach remedy resource

बैच फ़्लावर की ३८ दवायें , उनके लक्षण , और संक्षिप्त रिपर्टरी पर आधारित यह एपलिकेशन है ।

डाउनलोड लिंक : http://tinyurl.com/9qllxft

इन दो एपलिकेशनके अतिरिक्त आसिलो ( iSilo) और एलडिको (Aldiko ) को भी इन्सटाल करना न भूलें । विशेषकर  आइसलो क्योंकि अधिकांश  डाक्यूमेन्ट और पुस्तकें पी.डी.बी.  ( PDB ) फ़ार्मेट मे उपलब्ध हैं ।  एलडिको एडोप रीडर की तरह का ही है जो पीडी.फ़. ( PDF) फ़ार्मेट की फ़ाइलों को खोलने के लिये मोबाईल और टैबलेट मे उच्च  कोटि का एपलिकेशन है ।

१. iSilo

isilo

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आसलो एक उच्च कोटि का PDB e reader है । यह विन्डोज पर भी चलता है और मोबाइल और टैबलेट मे भी ।जो होम्योपैथिक पुस्तकें PDB फ़ार्मेट मे आसलो के द्वारा खोलने और पढने मे समर्थ हैं , उनके नाम और लिंक नीचे दिये हैं ।

isilo for androidhttp://tinyurl.com/9enawu3

Download Link for books in PDB format : http://tinyurl.com/9lmekbo

1. THE ENCYCLOPEDIA OF PURE MATERIA MEDICA By TIMOTHY F. ALLEN, A.M., M.D.

2. Keynotes And Characteristics With Comparisons of some of the Leading Remedies of the Materia Medica Henry C. Allen, M. D.

3.First Lessons in the Symptomatology of Leading Homœopathic Remedies by H. R. Arndt, M. D.

4.BONNINGHAUSEN’S CHARACTERISTICS MATERIA MEDICA & REPERTORY. by C. M. BOGER, M.D.

5. How To Use The Repertory with A Practical Analysis of Forty Homeopathic Remedies by Glen Irving Bidwell, M.D.

6. BŒNNINGHAUSEN’S CHARACTERISTICS MATERIA MEDICA by C. M. BOGER, M.D.

7. HOMŒOPATHIC MATERIA MEDICA by William BOERICKE, M.D

8. REPERTORY by Oscar E. BOERICKE, M.D

9. Studies in the Philosophy of Healing and others writing including The study of materia medica and taking the case
C. M. BOGER

10. A SYNOPTIC KEY OF THE MATERIA MEDICA By Cyrus Maxwell BOGER

11. A DICTIONARY OF PRACTICAL MATERIA MEDICA By John Henry CLARKE, M.D.

12. The Genius of Homeopathy Lectures and Essays on Homeopathic Philosophy By Dr Stuart M. CLOSE

13. Practice of Homoeopathy By Paul F. Curie, M. D.

14. DECACHORDS  by A. Gladstone Clarke.

15. A DICTIONARY OF PRACTICAL MATERIA MEDICA By John Henry CLARKE, M.D.

16. KEY-NOTES TO THE MATERIA MEDICA by HENRY N. GUERNSEY, M.D

17. Chronic Diseases – Samuel Hahnemann

18. ORGANON OF MEDICINE by Hahnemann Samuel

19. SEVEN-HUNDRED RED LINE SYMPTOMS from COWPERTHWAITE’S MATERIA MEDICA Rewritten by J. W. Hutchison, M. D.

20. The Mnemonic Similiad by Stacy Jones

21. Kent’s Aphorisms and Precepts from extemporaneous lectures

22. CLINICAL CASES By Pr James Tyler Kent

23. LECTURES ON HOMOEOPATHIC PHILOSOPHY BY James Tyler KENT, A.M., M.D.

24. LECTURES ON HOMŒOPATHIC MATERIA MEDICA by JAMES TYLER KENT, A.M., M.D.

25. What the doctor needs to know in order to make a successful prescription By Dr James Tyler Kent

26. KENT’S NEW REMEDIES

27. KENT’S REPERTORY

28. LESSER WRITINGS by Dr J. T. KENT

29. Keynotes Of The Homoeopathic Materia Medica by Dr. Adolph VON LIPPE

30. Regional Leaders by E. B. Nash, M. D.

31. Leaders In Homoeopathic Therapeutics by E. B. NASH

32. The principles and Art of Cure by Homœopathy by HERBERT A. ROBERTS, M.D.

33. Compendium Mental diseases and their modern treatment By Professor Selden Haines Talcott (A.M., M.D., Ph.D)

34. THE PRESCRIBER  by John Henry Clarke

35. ISILO: application to open the pdb books

२. एलडिको (Aldiko)

aldiko

 

PDF  फ़ाइलों को पढने के लिये एलडिको को इन्सटाल करना न भूलें

डाउनलोड लिंक : http://tinyurl.com/cdz958t

Treating Acute infections in Homeopathy – एक्यूट संक्रमणॊं का होम्योपैथी मे उपचार

जुलाई से लेकर सितम्बर तक के ज्वरों मे लगभग एक तरह की  समानता देखी जाती है । ज्वर की प्रवृति मे तेज बुखार, ठंड लगने के साथ, तेज सरदर्द ,वमन , बदन का टूटना आदि प्रमुख्ता से रहते हैं . लेकिन कुछ विशेष अन्तर भी रहते हैं जिनके आधार पर इनकी पहचान की जा सकती है , विशेषकर उन इलाकों मे जहाँ महँगे जाँच करवाना संभव नही होता .

क्रं. मलेरिया डेगूं चिकिनगुनिया
1. ठँड से काँपना, जिसकी पहचान डाइगोनिस्टिक किट और ब्लड स्मीर से की जाती है . डॆगूं मे अधिकतर रक्त से संबधित समस्यायें होती हैं जैसे त्वचा पर छॊटॆ लाल दाग जो WBC और platelet की कमी से होते हैं . चिकिनगुनिया में जोडॊं ( संधिस्थलों ) मे दर्द और सूजन अधिक रहती है .
2.   डॆगूं का बढना जो WBC और PLatelet ( < 100000/L ) की संख्या मे कमी से लगाया जाता है . चिकनगुनिया में WBC और platelet की संख्या मे विशेष फ़र्क नही पडता.
3.   Positive Torniquet Test : Blood pressure cuff को पांच मिनटॊं तक systolic और diastolic blood pressure के बीच के अंक पर फ़ुलाये रखें . यदि प्रति स्कैवेर इंच मे दस से अधिक छॊटॆ लाल चकत्ते दिखाई दें तो जाँच का परिणाम निशिचित रुप से positive है .  

लेकिन अगर इस बार देखें तो ज्वर की प्रकृति अलग सी देखी गई है । गत वर्ष जहाँ  डॆगूं और चिकिनगुनिया का संक्रमण अधिक था वहीं इस बार मलेरिया के केस बहुतायात मे पाये गये । आम तौर से यह समझा जाता है कि होम्योपैथी चिकित्सा पद्दति सिर्फ़ लक्ष्णॊं पर आधारित चिकित्सा पद्द्ति है और उसमे डाइगोनिसस का विशेष स्थान नही है । लेकिन यह सच नही है , विशेषकर एक्यूट रोगों मे डाइगोसिस आधारित चिकित्सा दवा के सेलेकशन मे मदद करती है और व्यर्थ  का कनफ़्यूजन  नही खडा करती । एक्यूट रोगों मे सेलेक्शन के विकल्प कई हैं ( नीचे देखें ) , इनमें क्लासिकल होम्योपैथी भी है , काम्बीनेशन  भी , मदर टिन्चर भी , क्या सही या या क्या गलत यह पूर्ण्तया चिकित्सक के विवेक पर निर्भर है , लेकिन अगर लक्षण स्पष्ट हों तो क्लासिकल को पहली पंसद बनायें नही तो और तरीके तो हैं ही 🙂

एक्यूट रोगों में सेलेकशन के विकल्प :

१. disease specific औषधियाँ:

specifics का रोल न होते हुये भी इस सच को नजरांदाज करना असंभव है कि कई एक्यूट रोगों मे इलाज disease specific ही होता है जैसे टाइफ़ायड मे baptisia , Echinacea , infective hepatitis में chelidonium , kalmegh  , Dengue  मे eup perf  , acute diarrhoea मे alstonia , cyanodon , आम वाइरल बुखार में Euclayptus  ,Canchalgua ,  मलेरिया के लिये  विभिन्न एर्टेमिसिआ (कोम्पोसिटी) प्रजातियां जैसे कि एर्टेमिसिआ एब्रोटनुम (एब्रोटनुम), एक मारिटिमा (सिना), एक एब्सिनठिअम (एब्सिनठिअम) , chinum sulph, china , china ars आदि ।

२. सम्पूर्ण लक्षण के आधार पर: (Totality of symptoms )

अक्सर होमियोपैथी चिकित्सा नीचे लिखे गए लक्षणो को ध्यान में रखकर दी जाती है –

  • ठंड और बुखार के प्रकट होने का समय
  • शरीर का वह भाग, जहां से ठंड की शुरूआत हुई और बढी।
  • ठंड या बुखार की अवधि
  • ठंड, गर्म और पसीना आने के चरणों की क्रमानुसार वृद्धि
  • प्यास/ प्यास लगना/ प्यास की मात्रा/ अधिकतम परेशानी का समय
  • सिरदर्द का प्रकार और उसका स्थान
  • यह जानना कि लक्षणों के साथ साथ जी मतलाना/ उल्टी आना/ या दस्त जुडा हुआ है या नहीं।

३. NWS ( Never well since ) :

अगर रोग का कारण specific हो जैसे रोगी का बारिश के पानी मे भीगना ( Rhus tox ) , दिन गर्म लेकिन रातें ठंडी ( Dulcamara ), ठंडी हवा लगने से (aconite ), अपच खाना खाने से ( antim crud , pulsatilla आदि )

४. रोगी की गतिविधि ( Activity ) , ठंडक और गर्मी से सहिषुण्ता/असहिषुणता ( Thermal  ), प्यास (Thirst )और मानसिक लक्षण में  बदलाव ( changes in mental attitude of the patient ) ;

डां प्रफ़ुल्ल विजयरकर का यह वर्गीकरण एक्यूट रोगों में संभवत: दवा सेलेकशन का सबसे अधिक कारगर तरीका है । लेकिन यह सिर्फ़ एक्यूट इन्फ़ेशन के लिये ही है , जैसा नीचे दिये चार्ट १ से स्पष्ट है कि यह indispositions और Acute Exacerbations of Chronic diseases  मे इसका कोई रोल नही है । प्रफ़ुल्ल के सूत्र आसान है , गणित की गणनाओं की तरह , रोग के दौरान रोगी की गतिविधि ( decreased , increased or no change ) , ठंडक और गर्मी से सहिषुण्ता/असहिषुणता ( Thermal : chilly / hot ) ,  प्यास (Thirst ( increased or decreased )  और मानसिक लक्षण में  बदलाव ( changes in mental attitude of the patient : diligent or non diligent ) पर गौर करें , और यह तब संभव है जब मैटेरिया मैडिका पर पकद मजबूत हो । उदाहारणत: एक रोगी जो तेज बुखार की हालत में सुस्त और ठंडक को सहन नही कर पा रहा है , प्यास बिल्कुल भी नही है और आस पास के वातावरण मे उसका intrest बिल्कुल् भी  नही है , उसका सूत्र  DCTL   (Axis : Dull +Chilly+thirstless ) होगा । इस ग्रुप में Sepia ,Gels ,Ac. Phos ,Ignatia ,Staph ,Ipecac ,Nat-Carb ,China  प्रमुख औषधियाँ हैं , चूँकि स्वभावत: वह किसी भी कार्य को करने मे अरुचि दिखा रहा है इस ग्रेड मे सीपिया प्रमुख औषधि होगी । जो चिकित्सक प्रफ़ुल्ल का अनुकरण करते हैं वह अच्छी तरह से जानते हैं कि उनके सूत्र कितने प्रभावी हैं ।

DCTL   (Axis : Dull +Chilly+thirstless )
4)Sepia 5)Gels 6)Ac. Phos 7)Ignatia 8)Staph 9)Ipecac 10)Nat-Carb 11)China

DCT (Axis : Dull+chilly+thirsty)
12)Nux-vom 13)Eup-per 14)Phos 15)Calc-c 16)Bell 17)China 18)Silicea 19)Hyos

DHTL (Axis : Dull+hot+thirstless)
20)Puls 21)Bry 22)Apis 23)Lach 24)Sulph 25)Lyc 26)Thuja 27)Opium 28)Carbo-v

DHT ( Axis : Dull+hot+thirsty)
29)Bry 30)Nat. Mur 31)Sulph 32)Lyc 33)    Merc. S. 34)Apis   

विस्तार से यहाँ बताना संभव नही है लेकिन अधिक जानकारी के लिये यहाँ और यहाँ देखें ।

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                           चित्र १ : Dr Praful Vijayakar’s Acute system :

            साभार : http://www.hompath.com/VFeatures.html

 

 

S. No Acute Infection  Indisposition Acute Exacerbations of Chronic disease
1 Viral  fevers, Influenza, tonsilitis ,Sore Throat, Typhoid,  Pneumonia, Pneumonitis, Lung Abscess , Septicaemia, Food poisoning,Infective diarrhoea, Dysentry,Urinary tract colics,  Pleurisy. Treatment not required

constitutional
required

 

 

                 ्चित्र २

flow chart of acute cases

                                                  चित्र३ ( Flow chart of Acutes by Dr Praful Vijarkar )

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                                      चित्र ४ साभार : http://www.hompath.com/VFeatures.html

     

किसी भी एक्यूट केस और विशेषकर संक्रमण रोगों मे हैनिमैन द्वारा प्रतिपादित आर्गेनान के तीन सूत्र  १०० -१०२ को पढने  से हैनिमैन की विचारधारा का स्पष्ट मूलाकंन किया जा सकता है । यह भी अजीब इत्फ़ाक है कि जिस आर्गेनान को डिग्री लेने के लिये सिर्फ़ पढा जाता हो उसका सही मूल्याकंन प्रैक्टिस के दौरान अधिक बेहतर तरीके से किया जा सकता है । 🙂

हैनिमैन लिखते है :

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सूत्र १०० – महामारी और संक्रामक रोगों का उपचार

महामारी और बडे पैमाने पर फ़ैलने वाले संक्रामक रोगों की चिकित्सा करने के सिलसिले मे चिकित्सक को इस जाँच पडताल के चक्कर मे नहीं पडना चाहिये कि उस नाम की या उस प्रकार की बीमारी का प्रकोप पहले हो चुका है या नही । इस प्रकार की जिज्ञासा व्यर्थ है क्योंकि उस जानकारी को आधार बना कर वर्तमान महामारी या रोग की चिकित्सा करना जरुरी नही । चिकित्सक को तो उसे एक नया रोग मान लेना चाहिये और यही मानकर उसे रोग का सम्पूर्ण चित्र अपने मस्तिष्क मे बैठाने का प्रयास करना चाहिये । इसी प्रकार किसी भी औषधि  का  वैज्ञानिक आधार करने के लिये यह जरुरी है कि वह उस औषधि को जाने और भली भाँति परीक्षण कर ले । चिकित्सक को अपने मन मे यह धारण कभी भी न बन्ननी चाहिये कि रोग बहुत कुछ पिछ्ले रोग से मिलता हुआ है तथा रोगी मे लगभग वही लक्षण विधमान है जो पहले किसी रोग मे हो चुके हों । यदि चिकित्सक सावधानी से रोगी का परीक्षण करेगे तो यह पायेगे कि कि यह नई माहमारी पिछली माहमारी से सर्वथा भिन्न्न है और लोगों ने भ्रम वश उसे एक ही नाम दिया है । यह भिन्नता संक्रामक रोगों के अतिरिक्त बडे पैमाने पर होने वाले अन्य रोगों मे भी पायी जाती है । परन्तु खसरा , चेचक आदि संक्रामक रोगों पर यह नियम नही लागू होता ।

§ 100

In investigating the totality of the symptoms of epidemic and sporadic diseases it is quite immaterial whether or not something similar has ever appeared in the world before under the same or any other name. The novelty or peculiarity of a disease of that kind makes no difference either in the mode of examining or of treating it, as the physician must any way regard to pure picture of every prevailing disease as if it were something new and unknown, and investigate it thoroughly for itself, if he desire to practice medicine in a real and radical manner, never substituting conjecture for actual observation, never taking for granted that the case of disease before him is already wholly or partially known, but always carefully examining it in all its phases; and this mode of procedure is all the more requisite in such cases, as a careful examination will show that every prevailing disease is in many respects a phenomenon of a unique character, differing vastly from all previous epidemics, to which certain names have been falsely applied – with the exception of those epidemics resulting from a contagious principle that always remains the same, such as smallpox, measles, etc.

सूत्र १०१- महामारी का निदान

बहुधा ऐसा होता है कि चिकित्सक किसी संक्रामक रोग से पीडित व्यक्ति  को पहली बार देखने पर समझ न पाये । लेकिन उसी प्रकार के कई रोगियों को देखने के बाद चिकित्सक को रोग के सभी लक्षण और चिन्ह याद हो जायेगें । यदि चिकित्सक  तीक्ष्ण निरीक्षण वाला है तो एक या दो रोगी को देखने के बाद ही रोग के लक्षण उसके मन मे अंकित हो जायेगें और अपनी इस  जानकारी के आधार पर वह सामान लक्षण वाली दवा का चुनाव कर सकेगा ।

§ 101

It may easily happen that in the first case of an epidemic disease that presents itself to the physician’s notice he does not at once obtain a knowledge of its complete picture, as it is only by a close observation of several cases of every such collective disease that he can become conversant with the totality of its signs and symptoms. The carefully observing physician can, however, from the examination of even the first and second patients, often arrive so nearly at a knowledge of the true state as to have in his mind a characteristic portrait of it, and even to succeed in finding a suitable, homoeopathically adapted remedy for it.

सूत्र १०२ – माहामारियों के ल्क्षण

महामारियों से पीडित रोगियों के लक्षण  लिखते-२ चिकित्सकों के मस्तिष्क मे रोग का चित्र और भी अधिक स्पष्टता से उभर आता है । इस प्रकार लिखे गये विवरण से रोग की और ही विशेषतायें उभर कर आ जाती हैं परन्तु इसके साथ ही कुछ लक्षण ऐसे भी प्रकाश मे आते हैं जो केवल कुछ रोगियों मे प्रकट होते हैं और सभी रोगियों मे नही पाये जाते । अत: विभिन्न प्रकृति के अनेक रोगियों को देख कर रोग की यथार्थ जानकरी प्राप्त की जा सकती है ।

§ 102

In the course of writing down the symptoms of several cases of this kind the sketch of the disease picture becomes ever more and more complete, not more spun out and verbose, but more significant (more characteristic), and including more of the peculiarities of this collective disease; on the one hand, the general symptoms (e.g., loss of appetite, sleeplessness, etc.) become precisely defined as to their peculiarities; and on the other, the more marked and special symptoms which are peculiar to but few diseases and of rarer occurrence, at least in the same combination, become prominent and constitute what is characteristic of this malady.1 All those affected with the disease prevailing at a given time have certainly contracted it from one and the same source and hence are suffering from the same disease; but the whole extent of such an epidemic disease and the totality of its symptoms (the knowledge whereof, which is essential for enabling us to choose the most suitable homoeopathic remedy for this array of symptoms, is obtained by a complete survey of the morbid picture) cannot be learned from one single patient, but is only to be perfectly deduced (abstracted) and ascertained from the sufferings of several patients of different constitutions.

आर्गेनान के इन तीन सूत्रॊं को पढने के बाद हैनिमैन के “Genus Epidemics ‘ की परीभाषा को आसानी से समझा जा सकता है । संक्रामक रोगों मे एक ही सत्र मे चुनी गई औषधि जो कई रोगियों मे व्याप्त लक्षणॊं को कवर करती है  , जीनस इपीडिमिकस कहलाती है । यही कारण था कि पिछ्ले कई महामरियों मे होम्योपैथिक दवाओं ने अपना सर्वष्रेष्ठ असर दिखलाया ।