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बवासीर या पाइल्स और होम्योपैथिक उपचार ( Re post )

 

बवासीर को आधुनिक सभ्यता का विकार कहें तो कॊई अतिश्योक्ति न होगी । खाने पीने मे अनिमियता , जंक फ़ूड का बढता हुआ चलन और व्यायाम का घटता  महत्व , लेकिन और भी कई कारण हैं  बवासीर के रोगियों के बढने में । तो सबसे पहले जाने बवासीर और उसके मूल कारण :

आंतों के अंतिम हिस्से या मलाशय की धमनी शिराओंके फ़ैलने को बवासीर कहा जाता है ।

बवासीर तीन प्रकर की हो सकती है

  • बाह्य पाइल्स: फ़ैली हुई धमनी शिराओं का मल द्वार से बाहर आना
  • आन्तरिक पाइल्स : फ़ैली हुई धमनी शिराओं का मल द्वार के अन्दर रहना
  • मिक्सड पाइल्स: भीतरी और बाहरी मस्से

कारण :

  • बहुत दिनों तक कब्ज की शिकायत रहना
  • सिरोसिस आफ़ लिवर
  • ह्र्दय की कुछ बीमारियाँ
  • मध, मांस, अण्डा, प्याज , लहसुन, मिर्चा, गरम मसाले से बनी सब्जियाँ, रात्रि जागरण , वंशागत रोग ।
  • मल त्याग के समय या मूत्र नली की बीमारी मे पेशाब करते समय काँखना
  • गर्भावस्था मे भ्रूण का दबाब पडना
  • डिस्पेपसिया और किसी जुलाब की गोली क अधिक दिनॊ तक सेवन करना ।

लक्षण

  • मलद्वार के आसपास खुजली होना
  • मल त्याग के समय कष्ट का आभास होना
  • मलद्वार के आसपास पीडायुक्त सूजन
  • मलत्याग के बाद रक्त का स्त्राव होना
  • मल्त्याग के बाद पूर्ण रुप से संतुष्टि न महसूस करना

बवासीर से बचाव के उपाय

कब्ज के निवारण पर अधिक ध्यान दें । इसके लिये :

  • अधिक मात्रा मे पानी पियें
  • रेशेदार खाध पदार्थ जैसे फ़ल , सब्जियाँ और अनाज लें | आटे मे से चोकर न हटायें ।
  • मलत्याग के समय जोर न लगायें
  • व्यायाम करें और शारिरिक गतिशीलता को बनाये रखें ।

अगर बवासीर के मस्सों मे अधिक सूजन और दर्द हो तो :

गुनगुने पानी की सिकाई करें या ’सिट्स बाथ’ लें । एक टब मे गुनगुना पानी इतनी मात्रा मे लें कि उसमे नितंब डूब जायें  । इसमे २०-३० मि. बैठें ।

होम्योपैथिक उपचार :

किसी भी औषधि की सफ़लता रोगी की जीवन पद्दति पर निर्भर करती है । पेट के अधिकाशं रोगों मे रोगॊ अपने चिकित्सक पर सिर्फ़ दवा के सहारे तो निर्भर रहना चाहता है लेकिन  परहेज से दूर भागता है । अक्सर देखा गया है कि काफ़ी लम्बे समय तक मर्ज के दबे रहने के बाद मर्ज दोबारा उभर कर आ जाता है अत: बवासीर के इलाज मे धैर्य और संयम की आवशयकता अधिक पडती है ।

नीचे दी गई  औषधियाँ सिर्फ़ एक संकेत मात्र हैं , दवा पर हाथ आजमाने की कोशिश न करें , दवा के उचित चुनाव के लिये एक योग्य होम्योपैथिक चिकित्सक पर भरोसा करें  ।

फ़्लो चार्ट को साफ़ और बडॆ आकार मे  देखने के लिये चित्र पर किल्क करें ।

१. बवासीर के मस्सों मे तकलीफ़ और अधिक प्रदाह : aconite, ignatia,acid mur, aloes, chamomilla, bell,acid mur, paeonia

२. खुजलाहट : arsenic, carbo, ignatia, sulphur
३. स्ट्रैंगुलैशन : belladona,ignatia, nux

४.रक्तस्त्राव में : aconite, millifolium,haemmalis, cyanodon

५. मस्से कडॆ : sepia

६. बवासीर के मस्सों का बाहर निकलना पर आसानी से अन्दर चले जाना : ignatia

७. भीतर न जाना : arsenic, atropine, silicea, sulphur
८. कब्ज के साथ : alumina, collinsonia, lyco, nux, sulphur

९.अतिसार के साथ : aloes,podo,capsicum

१०. बच्चों मे बवासीर  : ammonium carb, borax, collinsoniia, merc

११. गर्भावस्था मे बवासीर : lyco,nux, collinsonia , lachesis, nux

१२.शराबियों मे बवासीर : lachesis, nux

१३. वृद्धों मे बवासीर : ammonium carb , anacardium

Homeopathy Covid 19 – India Today

डॉ. क्रिश्चियन फ्राइडरिक सैमुअल हैनिमेन- जन्म दिवस पर विशेष ( A Tribute to Dr Samuel Hahnemann )

१० अप्रेल २००९ में लिखी हुई यह पोस्ट कल भी सामायिक थी ,आज भी है और कल भी रहेगी। विषम परिस्थितयॊं मॆ होम्योपैथी का उद्‌गम और उसकी यात्रा न सिर्फ़ गर्व का अनुभव कराती है बल्कि उस महान चिकित्सक के प्रति नतमस्तक होने के लिये प्रेरित करती है । देखॆ पुरानी पोस्ट डॉ. क्रिश्चियन फ्राइडरिक सैमुअल हैनिमेन- जन्म दिवस पर विशेष ( A Tribute to Dr Samuel Hahnemann )


इतिहास के चन्द पन्नों को समटेने की कोशिश करते हुये आँखे नम सी हो जाती हैं । मेरे सामने ब्रैडफ़ोर्ड की ” लाइफ़ एन्ड लेटर आफ़ हैनिमैन ” और हैल की ” लाइफ़ एन्ड वर्कस आफ़ हैनिमैन ” के उडते हुये पन्ने मानों वक्त को एक बार फ़िर समेट सा  रहे हैं । यह पुस्तकें मैने शौकिया अपने कालेज के दिनों मे ली थी लेकिन कभी भी पढने की फ़ुर्सत न मिली  । पिछ्ले साल जब hpathy.com के डा. मनीष भाटिया की भावपूर्ण जर्मनी  यात्रा को पढने का अवसर मिला तब इस लेख को लिखने की सोची थी लेकिन फ़िर आलसवश टल गया । १० अप्रेल हैनिमैन की जन्म तिथि के रुप मे जाना जाता है । मुझे नही लगता कि किसी भी अन्य पद्दति मे चिकित्सक अपने सिस्टम के संस्थापकों से इतना नही जुडॆ  हैं जितना कि एक होम्योपैथ । बहुत से कारण हैं लेकिन सबसे बडा कारण है होम्योपैथी का विषम परिस्थियों मे उद्‌भव । हैनिमैन अपनी जिंदगी मे वह सब कुछ बहुत आसानी से पा सकते थे अगर वह वक्त के साथ समझौता कर लेते लेकिन उन्होने नही किया । किसी ने सही कहा है , “कीर्तियस्य स जीवति “ – आज कौन कह सकता है कि हैनिमैन इस जगत मे नही हैं ।

डॉ. क्रिश्चियन फ्राइडरिक सैमुअल हैनिमेन  का जन्म सन्‌ १७५५ ई. की १० अप्रेल को जर्मनी मे सेक्सनी प्रदेश के  माइसेन नामक छॊटे से गाँव मे हुआ था  । एक बेहद गरीब परिवार मे जन्मे हैनिमैन का बचपन अभावों और गरीबी  मे बीता । आपके पिता एक पोर्सीलीन पेन्टर थे ,  सीमित संस्धानों  को देखते हुये  हुये वह चाहते थे कि उनका पुत्र भी इस व्यवसायाय मे रुचि दिखाये । लेकिन अनेक प्रतिभाओं के धनी हैनिमैन को यह मन्जूर नही था । अनेक भाषाओं के ज्ञाता हैनिमैन ने जीवन संघर्ष की शुरुआत  रसायन और अन्य  ग्रन्थों के अंग्रेजी भाषा से जर्मन मे अनुवाद से प्रारम्म्भ  की । सन्‌ १७७५ मे हैनिमैन लिपिजिक मेडिकल की पढाई के लिये निकल पडे , लिपेजेक मेडिकल कालेज मे हैनिमैन को उनके प्रोफ़ेसर डा. बर्ग्रैथ का भरपूर साथ मिला जिसके कारण उनकी पढाई के कई साल पैसों की तंगी के बिना भी चलते रहे ।

हैनिमैन की जिदंगी का महत्वपूर्ण हिस्सा खानाबदोशों की जिदंगी की तरह से बीता । वियाना से हरमैन्स्ट्डट ( जो अब शीबू , रोमेनिया के नाम से जाना जाता है ) जहाँ डा. क्युंरीन ने हैनिमैन को मेडिकल की पढाई के बाद नौकरी  दिलाने मे मदद की । सन्‌ १७७९  मे   हैनिमैन ने मेडिकल की पढाई पूरी की और जर्मनी के कई छॊटे गाँवों मे प्रैक्टिस करनी आरम्भ की लेकिन पाँच साल की प्रैकिटस के बाद उन्होने उस समय के प्रचलित तरीकों से तंग आकर प्रैक्टिस छोड दी । उस समय की मेडिकल चिकित्सा पद्दति आज की तरह उन्नत  न थी । इसी दौरान १७८२ मे हैनिमैन का विवाह जोहाना लियोपोल्डाइन से हुआ जिससे बाद मे उनसे ११संताने हुयीं। सन्‌ १७८५ से १७८९ तक हैनिमैन की जीवका का मुख्य साधन अंग्रेजी से    जर्मनी मे अनुवाद और रसायन शास्त्र मे शोधकार्यों से रहा । इसी दौरान हैनीमैन ने आर्सेनिक पाइसिन्ग पर शोध पत्र  जारी किया  । सन्‌ १७८९ मे हैनिमैन एक बार फ़िर सपरिवार लिपिजिक की तरफ़ चल दिये । “मरकरी का  सिफ़लिस मे कार्य” हैनिमैन ने सालयूबल मरकरी के रोल को अपने नये शोध पत्र मे वर्णित किया ।

सन्‌ १७९१ , ४६ वर्षीय हैनिमैन के लिये महत्वपूर्ण रहा । उनके नये विचारों को नयॊ दिशा देने मे कलेन की मैटिया मेडिका का अनुवाद रहा । एक बार जब  डाक्‍टर कलेन की लिखी “कलेन्‍स मेटेरिया मेडिका” मे वर्णित कुनैन नाम की जडी के बारे मे अंगरेजी भाषा का अनुवाद जर्मन भाषा में कर रहे थे तब डा0 हैनिमेन का ध्‍यान डा0 कलेन के उस वर्णन की ओर गया, जहां कुनैन के बारे में कहा गया कि ‘’ यद्यपि कुनैन मलेरिया रोग को आरोग्य करती है, लेकिन यह स्वस्थ शरीर में मलेरिया जैसे लक्षण पैदा करती है।
हैनिमैन ने कलेन की यह बात पर तर्कपूर्वक विचार करके कुनैन जड़ी की थोड़ी थोड़ी मात्रा रोज खानीं शुरू कर दी। लगभग दो हफ्ते बाद इनके शरीर में मलेरिया जैसे लक्षण पैदा हुये। जड़ी खाना बन्द कर देनें के बाद मलेरिया रोग अपनें आप आरोग्य हो गया। इस प्रयोग को  हैनिमेन ने कई बार दोहराया और हर बार उनके शरीर में मलेरिया जैसे लक्षण पैदा हुये। क्विनीन जड़ी के इस प्रकार से किये गये प्रयोग का जिक्र डा0 हैनिमेन नें अपनें एक चिकित्‍सक मित्र से किया। इस मित्र चिकित्सक  नें भी  हैनिमेन के बताये अनुसार जड़ी का सेवन किया और उसे भी मलेरिया बुखार जैसे लक्षण पैदा हो गये।
हैनिमैन ने अपने प्रयोगों  को जारी रखा तथा  प्रत्येक जडी, खनिज , पशु उत्पादन, रासायनिक मिश्रण आदि का स्वयं पर प्रयोग किया। उन्होने  पाया कि दो तत्व समान लक्षण प्रदान नही करते हैं। प्रत्येक तत्व के अपने विशिष्ट लक्षण होते हैं। इसके अतिरिक्त लक्षणों को भौतिक अवस्था में परिष्कृत नही किया जा सकता है। प्रत्येक परीक्षित तत्व ने मस्तिष्क तथा शरीर की संवेदना को भी प्रभावित किया। उन्हे उस समय की चिकित्सा पद्घति ने विस्मित कर दिया तथा उन्होने रोग उपचार की एक पद्धति को विकसित किया जो सुरक्षित, सरल एवं प्रभावी थी। उनका विश्वास था कि मानव में रोगों से लडने की स्वतः क्षमता होती है तथा रोग मुक्त होने के लिए मानव के स्वयं के संघर्ष रोग लक्षणों को प्रतिबिम्बित करते हैं।

कुछ समय बाद उन्‍होंनें शरीर और मन में औषधियों द्वारा उत्‍पन्‍न किये गये लक्षणों, अनुभवो और प्रभावों को लिपिबद्ध करना शुरू किया। हैनिमेन की अति सूक्ष्म दृष्टि और ज्ञानेन्द्रियों नें यह निष्कर्ष निकाला कि और अधिक औषधियो को इसी तरह परीक्षण करके परखा जाय। हैनिमैन अब तक पहले की भाँति एलोपैथिक अर्थात स्थूल मात्रा मे ही दवाओं का प्रयोग करते थे । लेकिन उन्होने देखा कि रोग आरोग्य होने पर भी कुछ दिन बाद नये लक्षण उत्पन्न होते हैं । जैसे क्विनीन का सेवन करने पर ज्वर तो ठीक हो जाता है पर उसके बाद रोगी को रक्तहीनता , प्लीहा , यकृत , शोध , इत्यादि अनेक उपसर्ग प्रकट होकर रोगी को जर्जर बना डालते हैं । हैनिमैन ने दवा की मात्रा को घटाने का काम आरम्भ किया । इससे उन्होने निष्कर्ष निकाला कि दवा की परिमाण या मात्रा भले ही कम हो , आरोग्यदायिनी शक्ति पहले की तरह शरीर मे मौजूद रहती है और दवा के दुष्परिणाम भी पैदा नही  होते ।
इस प्रकार से किये गये परीक्षणों और अपने अनुभवों को डा0 हैनिमेन नें तत्कालीन मेडिकल पत्रिकाओं में ‘’ मेडिसिन आंफ एक्‍सपीरियन्‍सेस ’’ शीर्षक से लेख लिखकर प्रकाशित कराया । इसे होम्योपैथी के अवतरण का प्रारम्भिक स्वरुप कहा जा सकता है। होम्योपैथी शब्द यूनानी के दो शब्दों (Homois ) यानि सदृश (Similar ) और पैथोज ( pathos ) अर्थात रोग (suffering) से बना है । होम्योपैथी का अर्थ है सदृश रोग चिकित्सा । सदृश रोग चिकित्सा का सरल अर्थ है कि जो रोग लक्षण जिस औषध के सेवन से उत्पन्न होते हैं , उन्हीं लक्षणॊं की रोग मे सदृशता होने पर औषध द्वारा नष्ट किये जा सकते हैं । यह प्रकृति के सिद्दांत “ सम: समम शमयति ” यानि similia similbus curentur पर आधारित है । लेकिन हैनिमैन के शोध को तगडे विरोध का सामना करना पडा और हैनिमैन पर उनकॆ दवा बनाने के तरीको पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई ।

लेकिन सन्‌ १८०० मे हैनिमैन को अपने नये तरीको से सफ़लता मिलनी शुरु हुयी जब स्कारलैट फ़ीवर नाम के महामारी मे बेलोडोना का सफ़ल रोल पाया गया । एक बार फ़िर हैनिमैन अपने समकक्ष चिकित्सकों के तगडे विरोध का कारण बने ।

सन्‌  १८१० हैनिमैन ने आर्गेनान आफ़ मेडिसन का पहला संस्करण निकाला जो होम्योपैथी फ़िलोसफ़ी का महत्वपूर्ण स्तंभ था । १८१४ तक जाते-२ हैनिमैन ने अपने , अपने परिवार और कई मित्र चिकित्सकॊ जिनमे गौस , स्टैफ़, हर्ट्मैन और रुकर्ट प्रमुख थे ,  के ग्रुप पर दवाओं कॊ परीक्षण करना प्रारम्भ किया । इस समूह को हैनिमैन ने प्रूवर यूनियन का नाम दिया ।

सन्‌ १८१३ मे हैनिमैन को एक बार फ़िर सफ़लता हाथ लगी । जब नेपोलियन की सेना के जवानों के बीच टाइफ़स महामारी बन के उभरी । बहुत जल्द ही यह माहामारी जरमनी  मे भी आ गई , इस बार हैनिमैन को ब्रायोनिया और रस टाक्स से  सफ़लता हाथ लगी । सन्‌ १८२० मे  लिपिजक शहर की काउनसिल से हैनिमैन के कार्यों पर पूरी तरह से रोक लगा दी और सन १८२१ मे हैनिमैन को शहर से बाहर जाने का रास्ता दिखाया । हैनिमैन कोथन की तरफ़ चल दिये , यहाँ  के ड्यूक फ़रडनीनैन्ड जो हैनिमैन की दवा से लाभान्वित हो चुके थे , कोथन मे नये तरीको से प्रैकिटस और दवाओं को बनाने की इजाजत दी । कोथन मे हैनिमैन लगभग १२ साल तक रहे और यहाँ से होम्योपैथी को नया आधार मिला ।

इसी दौरान कोथन मे हैनिमैन  जटिल रोगों और मियाज्म पर किये कार्यों को सामने ले कर आये  । सन १८२८ मे हैनिमैन ने chronic diseases पर पहला संस्करण निकाला । हैनिमैन की विचारधारा के एक तरफ़ तो सहयोगी भी थे जिनमे बोनिगहसन , स्टाफ़ , हेरिग और गौस थे उधर दूसरी तरफ़ कुछ साथी चिकित्सक जिनमे डा. ट्रिन्क्स ने असहोयग का रास्ता अपनाते हुये उनके नये कार्यों को समय से प्रकाशन होने मे अडंगे लगाये ।

सन्‌ १८३१ मे होम्योपैथी को एक बार फ़िर से सफ़लता हाथ लगी , इस बार रुस के पशिचमी भाग से महामारी के रुप मे फ़ैलता  हुआ कालरा मे होम्योपैथिक औषधियों जिनमे कैम्फ़र , क्यूपरम और वेरटर्म ने न जाने कितने रोगियों की जान बचायी

कोथन मे हैनिमैन को डा. गोटफ़्रेट लेहमन का अभूतपूर्व सहयोग मिला ,। लेकिन लिपिजिक मे हैनिमैन नकली होम्योपैथों के रुप मे बढती भीड से काफ़ी खफ़ा हुये । सन्‌ १८३३ मे लिपिजिक मे पहला होम्योपैथिक अस्पताल डा. मोरिज मुलर के तत्वधान मे खुला ; सन्‌ १८३४ तक हैनिमैन बडे चाव से इस अस्पताल मे अपना सहयोग देते रहे । लेकिन सन्‌ १८३५ मे हैनिमैन के पैरिस के लिये रवाना होते ही जल्द ही अस्पताल पैसे की तंगी के कारण  १८४२ मे बन्द करना पडा ।

हैनिमैन  की जीवन के आखिरी क्षण कुछ रोमांन्टिक नावेल से कम नही थे । सन्‌ १८३४ मे ३२ वर्षीय  खूबसूरत मैरी मिलानी ८० साल के  हैनिमैन की जिंदगी मे आयी और  मात्र तीन महीने की मुलाकात के बाद उनकी जिंदगी के हमसफ़र हो गयी । मिलानी का रोल हैनिमैन की जिदगी मे बहुत ही विवादस्तमक रहा । उनका मूल  उद्देशय हैनिमैन के नयी चिकित्सा पद्दति मे था । इसके बाद की घटनाये इस बात का पुख्ता सबूत थी कि मिलानी किस उद्देशय से आयी थी ।

लेकिन यह भी सच था कि कई साल के संघर्ष, गरीबी और मुफ़लसफ़ी के बाद हैनिमैन ने अपनी खूबसूरत पत्नी के साथ फ़्रान्स की उच्च सोसयटिइयों मे जगह बनाई । जीवन के आखिरी सालों  मे मिलानी ने हैनिमैन को उनके पहली पत्नी से हुये  संतानों से दूर कर दिया और पैरिस मे हैनिमैन को अपने नये प्रयोगों को जारी रखने को कहा । फ़्रान्स मे हैनिमैन ने LM पोटेन्सी पर किये कार्यों को आखिरी जामा पहनाया । फ़्रान्स मे होम्योपैथी की शोहरत जर्मनी से अधिक फ़ैली , यहाँ‘ एक तो अंडगॆ कम थे और बाकी एलोपैथिक चिकित्सकॊ मे भी  नयी चिकित्सा पद्द्ति को अजमाने मे दिलचस्पी भी थी । आर्गेनान का छटा संस्करण फ़्रान्स मे ही हैनिमैन ने लिखा लेकिन मिलानी के रहते सन्‌ १८४३ मे हैनिमैन की मृत्यु के बाद भी उसका प्रकाशन न हो पाया । ८८ वर्षीय हैनिमैन सन्‌ १८४३ मे मृत्यु को प्राप्त हुये । लेकिन जाते-२ वह होम्योपैथिक जगत को आर्गेनान का छटा  बेशकीमती संस्करण देते गये । मिलानी के चलते यह महत्वपूर्ण संस्करण जिसमे हैनिमैन ने LM पोटेन्सी की जोरदार वकालत की , प्रकाशित न हो पाया । मिलानी इसके बदले मे प्रकाशक से मॊटी रकम चहती थी जिसका मोल भाव हैनिमैन के रहते न हो पाया । हैनिमैन की मृत्यु के कई साल के बाद सन्‌ १९२० मे इस संस्करण को विलियम बोरिक और सहयोगियों की मदद से प्रकाशित किया गया । लेकिन तब तक पूरे विश्व मे होम्योपैथिक चिकित्सकों के मध्य आर्गेनान का पाँचवा संस्करण लोकप्रिय हो चुका था और आज भी हम छटे संस्करण की और विशेष कर LM पोटेन्सी के लाभों से अन्जान ही रह गये ।

मिलानी का विवादों से भरा रोल हैनिमैन को दफ़नाने मे भी रहा । एक अनाम सी जगह मे हैनिमैन को उन्होने गोपनीय ढंग से दफ़नाया  । बाद मे विरोध के चलते हैनिमैन के पार्थिव शरीर को एक दूसरी कब्र मे दफ़नाया गया जिसके ऊपर वर्णित किया गया , ” Non inutilis vixi , ” I have not lived in a vain ” ” मेरी जिंदगी व्यर्थ  नही गयी ”

रसायन और मेडेसिन  मे ७० से ऊपर मौलिक कार्य, लगभग दो दर्जन से अधिक पुस्तकों का अंग्रेजी , फ़्रेन्च, लैटिन और ईटालियन से जर्मन भाषा मे अनुवाद , अपने दम और तमाम विरोधों के बीच पूरी पद्दति का बोझा उठाये हैनिमैन को कम कर के आँकना उनके साथ नाइन्साफ़ी होगी । और सब से से मुख्य बात वह मृदुभाषी थे , अपने मित्र स्टैफ़ को लिखे पत्र मे वह लिखते हैं , “ Be as sparing as possible with your praises . I do not like them . I feel that I am only an honest , straightforward man who does no more than his duty . ”

रात बहुत हो चुकी है , मुझे लगता है अब सो जाना चाहिये , कल फ़िर १० अप्रेल होगी , एक बार फ़िर हम किसी न किसी होम्योपैथिक कालेज के प्रांगण मे हैनिमैन को याद कर रहे होगें लेकिन होम्योपैथिक की शिक्षा प्रदान देने वाले संस्थान अपने आप से पूछ के देखें कि इतने सालों मे हम एक दूसरा हैनिमैन क्यूं नही बना पाये ? हमे इन्तजार है उस पल का , एक नये अवतरित होते हैनिमैन का और आर्गेनान के साँतवें संस्करण का भी …….
अलविदा …
शुभरात्रि ।

यह भी देखें :

Three Remedies I Have Used for COVID-2019 by Massimo Mangialavori

 

Massimo Mangialavori

Massimo Mangialavori

Massimo is a leading figure in the world of contemporary homeopathy. He lives and practices in Modena, Italy and he grew up in Milan. He qualified as a doctor in 1984.

Massimo is internationally known and respected for his deep and enquiring mind that penetrates beneath the surface and searches for the unifying pattern of the whole. For example when researching materia medica Mangialavori takes into account all the natural phenomena and synthesises this with anthropological, physical, psychological and esoteric points of view. His journey is to fathom the themes of the remedies and let them speak for themselves.

Dr. Massimo Mangialavori shares clinical symptoms of three remedies that he used recently in treating COVID-19. He presents this very preliminary information in the hope that it may be helpful to others during this difficult time.

What he writes in an article in hpathy

…….I do not want to write too much about the following 3 remedies: Chininum muriaticumGrindelia and Camphora. Hopefully, this simple categorization, based on the most common clinical symptoms, will suffice.

As of March 22, 2020, I have had telephone and video-conference contacts with 84 patients. 64 of these overcame their symptoms in no more than 3-4 days, followed by spontaneous declaration of clear improvement and no subsequent relapses.

Chininum muriaticum has been my first choice. ………………………….

followed by two others as Grindelia as second & Camphora as third choice .

Why He chooses the three medicines , Click on the link given below to read the article .

https://hpathy.com/homeopathy-papers/three-remedies-i-have-used-for-covid-2019/

अनिद्रा रोग और होम्योपैथी ( Insomnia and Homeopathy )

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अच्छी सेहत के लिए सिर्फ प्रॉपर डाइट लेना ही काफी नहीं है। अच्छी नींद भी हेल्दी रहने के लिए उतनी ही जरूरी है। आजकल कई प्रफेशन में डिफरेंट शिफ्ट्स में काम होता है। ऐसे में सबसे ज्यादा नींद पर असर पड़ता है। कई बार तो ऐसा होता है कि टुकड़ों में नींद पूरी करनी पड़ती है, लेकिन छोटी-छोटी नैप लेना सेहत के लिहाज से बेहद खराब होता है। एक रिसर्च के मुताबिक, खराब नींद यानि छोटे-छोटे टुकड़ों में ली गई नींद बिल्कुल न सोने से भी ज्यादा खतरनाक होती है। इससे कई तरह की बीमारियां शरीर को शिकार बना सकती हैं।

टुकड़ों में सोने वाले लोग सुबह उठकर भी फ्रेश नहीं फील करते हैं। रिसर्च में यह साबित हो चुका है। अमेरिका के जॉन हॉपकिंस विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने अपने शोध में दो तरह की नींद का अध्ययन किया है। इसमें रुकावट के साथ सोने वाली नींद और कम समय के लिए ही सही लेकिन शांति वाली नींद शामिल है। इन लोगों के मिजाज को जब कंपेयर किया गया तो पाया कि टुकड़ों में सोने वाले लोगों की तुलना में शांति से सोने वाले लोगों का मूड बेहतर था।

खराब नींद किडनी पर भी बुरा असर डालती है। शरीर में ज्यादातर प्रोसेस नैचरल डेली रिद्म (सरकाडियन क्लॉक या शरीर की प्राकृतिक घड़ी) के आधार पर होते हैं। ये हमारी नींद से ही कंट्रोल होता है। एक रिसर्च के मुताबिक जब सोने की साइकल बिगड़ती है तो किडनी को नुकसान होता है। इससे किडनी से जुड़ी कई बीमारियां हो सकती हैं।

आधी-अधूरी नींद दिल के लिए भी खतरे की घंटी है। इससे हार्ट डिजीज होने के चांस तो बढ़ते ही हैं, साथ ही दिल का दौरा भी पड़ सकता है। एक रिसर्च में खराब नींद की शिकायत करने वालों में अच्छी नींद लेने वालों के मुकाबले 20 फीसदी ज्यादा कोरोनरी कैल्शियम पाया गया।

कम नींद लेने से दिमाग सही तरह से काम नहीं कर पाता है। इसका सीधा असर हमारी याद‌्‌दाश्त पर पड़ता है। इसके अलावा, पढ़ने, सीखने व डिसीजन लेने की क्षमताएं भी इफेक्ट होती हैं। खराब नींद से स्ट्रेस लेवल भी बढ़ता है और इमोशनली वीक लोग डिप्रेशन के भी शिकार हो सकते हैं।

होम्योपैथिक उपचार में प्रयुक्त विभिन्न औषधियों से चिकित्सा

नींद लाने के लिए बार-बार कॉफिया औषधि का सेवन करना होम्योपैथी चिकित्सा नहीं है, हां यदि नींद न आना ही एकमात्र लक्षण हो दूसरा कोई लक्षण न हो तब इस प्रकार की औषधियां लाभकारी है जिनका नींद लाने पर विशेष-प्रभाव होता है- कैल्केरिया कार्ब, सल्फर, फॉसफोरस, कॉफिया या ऐकानाइट आदि।

1. लाइकोडियम-  दोपहर के समय में भोजन करने के बाद नींद तेज आ रही हो और नींद खुलने  के बाद बहुत अधिक सुस्ती महसूस हो तो इस प्रकार के कष्टों को दूर करने के लिए लाइकोडियम औषधि की 30 शक्ति का उपयोग करना लाभदायक होता है।

2. चायना-  रक्त-स्राव या दस्त होने के कारण से या शरीर में अधिक कमजोरी आ जाने की वजह से नींद न आना या फिर चाय पीने के कारण से अनिद्रा रोग हो गया हो तो उपचार करने के लिए चायना औषधि 6 या 30 शक्ति का उपयोग करना लाभदायक है।

3. कैल्केरिया कार्ब – इस औषधि की 30 शक्ति का उपयोग दिन में तीन-तीन घंटे के अंतराल सेवन करने से रात के समय में नींद अच्छी आने लगती है। यह नींद किसी प्रकार के नशा करने के समान नहीं होती बल्कि स्वास्थ नींद होती है।

4. कॉफिया – खुशी के कारण नींद न आना, लॉटरी या कोई इनाम लग जाने या फिर किसी ऐसे समाचार सुनने से मन उत्तेजित हो उठे और नींद न आए, मस्तिष्क इतना उत्तेजित हो जाए कि आंख ही बंद न हो, मन में एक के बाद दूसरा विचार आता चला जाए, मन में विचारों की भीड़ सी लग जाए, मानसिक उत्तेजना अधिक होने लगे, 3 बजे रात के बाद भी रोगी सो न पाए, सोए भी तो ऊंघता रहें, चौंक कर उठ बैठे, नींद आए भी ता स्वप्न देखें। इस प्रकार के लक्षण रोगी में हो तो उसके इस रोग का उपचार करने के लिए कॉफिया औषधि की 200 शक्ति का उपयोग करना चाहिए। यह नींद लाने के लिए बहुत ही उपयोगी औषधि है।  यदि गुदाद्वार में खुजली होने के कारण से नींद न आ रही हो तो ऐसी अवस्था में भी इसका उपयोग लाभदायक होता है। रोगी के अनिद्रा रोग को ठीक करने के लिए कॉफिया औषधि की 6 या 30 शक्ति का उपयोग करना लाभदायक होता है।

5. जेल्सीमियम –    यदि उद्वेगात्मक-उत्तेजना (इमोशनल एक्साइटमेंट) के कारण से नींद न आती हो तो जेल्सीमियम औषधि के सेवन से मन शांत हो जाता है और नींद आ जाती है। किसी भय, आतंक या बुरे समाचार के कारण से नींद न आ रही हो तो जेल्सीमियम औषधि से उपचार करने पर नींद आने लगती है। बुरे समाचार से मन के विचलित हो जाने पर उसे शांत कर नींद ले आते हैं। अधिक काम करने वाले रोगी के अनिंद्रा रोग को ठीक करने के लिए जेल्सीमियम औषधि का उपयोग करना चाहिए। ऐसे रोगी जिनकों अपने व्यापार के कारण से रात में अधिक बेचैनी हो और नींद न आए, सुबह के समय में उठते ही और कारोबार की चिंता में डूब जाते हो तो ऐसे रोगियों के इस रोग को ठीक करने के लिए जेल्सीमियम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

6. ऐकोनाइट –  बूढ़े-व्यक्तियों को नींद न आ रही हो तथा इसके साथ ही उन्हें घबराहट हो रही हो, गर्मी महसूस हो रही हो, चैन से न लेट पाए, करवट बदलते रहें। ऐसे बूढ़े रोगियों के इस प्रकार के कष्टों को दूर करने के लिए ऐकोनाइट औषधि की 30 का उपयोग करना लाभकारी है। यह औषधि स्नायु-मंडल को शांत करके नींद ले आती है। किसी प्रकार की बेचैनी होने के कारण से नींद न आ रही हो तो रोग को ठीक करने के लिए ऐकोनाइट औषधि का उपयोग करना फायदेमंद होता है।

7. कैम्फर – नींद न आने पर कैम्फर औषधि के मूल-अर्क की गोलियां बनाकर, घंटे आधे घंटे पर इसका सेवन करने से नींद आ जाती है।

8. इग्नेशिया – किसी दु:ख के कारण से नींद न आना, कोई सगे सम्बंधी की मृत्यु हो जाने से मन में दु:ख अधिक हो और इसके कारण से नींद न आना। इस प्रकार के लक्षण से पीड़ित रोगी को इग्नेशिया औषधि की 200 शक्ति का सेवन करना चाहिए। यदि किसी रोगी में भावात्मक या भावुक होने के कारण से नींद न आ रही हो तो उसके इस रोग का उपचार इग्नेशिया औषधि से करना लाभदायक होता है। हिस्टीरिया रोग के कारण से नींद न आ रही हो तो रोग का उपचार करने के लिए इग्नेशिया औषधि की 200 शक्ति का उपयोग करना फायदेमंद होता है। यदि रोगी को नींद आ भी जाती है तो उसे सपने के साथ नींद आती है, देर रात तक सपना देखता रहता है और रोगी अधिक परेशान रहता है। नींद में जाते ही अंग फड़कते हैं नींद बहुत हल्की आती है, नींद में सब-कुछ सुनाई देता है और उबासियां लेता रहता है लेकिन नींद नहीं आती है। ऐसे रोगी के इस रोग को ठीक करने के लिए इग्नेशिया औषधि का उपयोग करना उचित होता है।  मन में दु:ख हो तथा मानसिक कारणों से नींद न आए और लगातार नींद में चौक उठने की वजह से नींद में गड़बड़ी होती हो तो उपचार करने के लिए इग्नेशिया औषधि की 3 या 30 शक्ति का उपयोग करना लाभकारी है।

9. बेलाडोना –  मस्तिष्क में रक्त-संचय होने के कारण से नींद न आने पर बेलाडोना औषधि की 30 शक्ति का उपयोग करना चाहिए। रोगी के मस्तिष्क में रक्त-संचय (हाइपरमिया) के कारण से रोगी ऊंघता रहता है लेकिन मस्तिष्क में थाकवट होने के कारण से वह सो नहीं पाता। ऐसे रोगी के रोग का उपचार करने के लिए के लिए भी बेलाडोना औषधि उपयोगी है। रोगी को गहरी नींद आती है और नींद में खर्राटें भरता है, रोगी सोया तो रहता है लेकिन उसकी नींद गहरी नहीं होती। रोगी नींद से अचानक चिल्लाकर या चीखकर उठता है, उसकी मांस-पेशियां फुदकती रहती हैं, मुंह भी लगतार चलता रहता है, ऐसा लगता है मानो वह कुछ चबा रहा हो, दांत किटकिटाते रहते हैं। इस प्रकार के लक्षण होने के साथ ही रोगी का मस्तिष्क शांत नहीं रहता। जब रोगी को सोते समय से उठाया जाता है तो वह उत्तेजित हो जाता है, अपने चारों तरफ प्रचंड आंखों (आंखों को फाड़-फाड़कर देखना) से देखता है, ऐसा लगता है कि मानो वह किसी पर हाथ उठा देगा या रोगी घबराकर, डरा हुआ उठता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए बेलाडोना औषधि की 30 शक्ति का उपयोग करना लाभकारी है।  अनिद्रा रोग को ठीक करने के लिए कैमोमिला औषधि का उपयोग करने पर लाभ न मिले तो बेलाडोना औषधि की 30 शक्ति का उपयोग करें।

10. काक्युलस-  यदि रात के समय में अधिक जागने के कारण से नींद नहीं आ रही हो तो ऐसे रोगी के इस लक्षण को दूर करने के लिए काक्युलस औषधि की 3 से 30 शक्ति का उपयोग करना चाहिए।  जिन लोगों का रात के समय में जागने का कार्य करना होता है जैसे-चौकीदार, नर्स आदि, उन्हें यदि नींद न आने की बीमारी हो तो उनके के लिए कौक्युलस औषधि का उपयोग करना फायदेमंद है। यदि नींद आने पर कुछ परेशानी हो और इसके कारण से चक्कर आने लगें तो रोग को ठीक करने के लिए कौक्युलस औषधि का उपयोग करना उचित होता है।

11. सल्फर – रोगी की नींद बार-बार टूटती है, जारा सी भी आवाजें आते ही नींद टूट जाती है, जब नींद टूटती है तो रोगी उंघाई में नहीं रहता, एकदम जाग जाता है, रोगी की नींद कुत्ते की नींद के समान होती है। रोगी के शरीर में कहीं न कहीं जलन होती है, अधिकतर पैरों में जलन होती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के इस रोग को ठीक करने के लिए सल्फर औषधि की 30 शक्ति का प्रयोग करना फायदेमंद होता है।

12. नक्स वोमिका – रोगी का मस्तिष्क इतना कार्य में व्यस्त रहता है कि वह रात भर जागा रहता है, व्यस्त मस्तिष्क के कारण नींद न आ रही हो, मन में विचारों की भीड़ सी लगी हो, आधी रात से पहले तो नींद आती ही नहीं यादि नींद आती भी है तो लगभग तीन से चार बजे नींद टूट जाती है। इसके घंटे बाद जब वह फिर से सोता है तो उठने पर उसे थकावट महसूस होती है, ऐसा लगता है कि मानो नींद लेने पर कुछ भी आराम न मिला हो। ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए नक्स वोमिका औषधि का उपयोग कर सकते हैं।
किसी रोगी को आधी रात से पहले नींद नहीं आती हो, शाम के समय में नींद नहीं आती हो और तीन या चार बजे नींद खुल जाती हो, इस समय वह स्वस्थ अनुभव करता है लेकिन नींद खुलने के कुछ देर बाद उसे फिर नींद आ घेरती है और तब नींद खुलने पर वह अस्वस्थ अनुभव करता है, इस नींद के बाद तबीयत ठीक नहीं रहती। ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए नक्स वोमिका औषधि का उपयोग करना चाहिए।
कब्ज बनना, पेट में कीड़ें होना, अधिक पढ़ना या अधिक नशा करने के कारण से नींद न आए तो इस प्रकार के कष्टों को दूर करने के लिए नक्स वोमिका औषधि की 6 या 30 शक्ति का सेवन करने से अधिक लाभ मिलता है।

13.पल्स – रोगी शाम के समय में बिल्कुल जागे हुए अवस्था में होता है, दिमाग विचारों से भरा हो, आधी रात तक नींद नहीं आती, बेचैनी से नींद बार-बार टूटती है, परेशान भरे सपने रात में दिखाई देते हैं, गर्मी महसूस होती है, उठने के बाद रोगी सुस्त तथा अनमाना स्वभाव का हो जाता है। आधी रात के बाद नींद न आना और शाम के समय में नींद के झोकें आना, रोगी का मस्तिष्क व्यस्त हो अन्यथा साधारण तौर पर तो शाम होते ही नींद आती है और 3-4 बजे नींद टूट जाती है, इस समय रोगी रात को उठकर स्वस्थ अनुभव करता है, यह इसका मुख्य लक्षण है-शराब, चाय, काफी से नींद न आए। ऐसी अवस्था में रोगी को पल्स औषधि का सेवन कराना चाहिए।

14. सेलेनियम – रोगी की नींद हर रोज बिल्कुल ठीक एक ही समय पर टूटती है और नींद टूटने के बाद रोग के लक्षणों में वृद्धि होने लगती है। इस प्रकार के लक्षण होने पर रोगी का उपचार करने के लिए सेलेनियम औषधि का उपयोग कर सकते हैं।

15.  ऐम्ब्राग्रीशिया – रोगी अधिक चिंता में पड़ा रहता है और इस कारण से वह सो नहीं पाता है, वह जागे रहने पर मजबूर हो जाता है। व्यापार या कोई मानसिक कार्य की चिंताए होने से नींद आने में बाधा पड़ती है। सोने के समय में तो ऐसा लगता है कि नींद आ रही है लेकिन जैसे ही सिर को तकिए पर रखता है बिल्कुल भी नींद नहीं आती है। इस प्रकार की अवस्था उत्पन्न होने पर रोग को ठीक करने के लिए ऐम्ब्राग्रीशिया औषधि की 2 या 3 शक्ति का उपयोग करना लाभदायक होता है। इस औषधि का उपयोग कई बार करना पड़ सकता है।

16. फॉसफोरस –  रोगी को दिन के समय में नींद आती रहती है, खाने के बाद नींद नहीं आती लेकिन रात के समय में नींद बिल्कुल भी नहीं आती है। ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए फॉसफोरस औषधि की 30 शक्ति का उपयोग करना फायदेमंद होता है।
वृद्ध-व्यक्तियों को नींद न आ रही हो तो ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए सल्फर औषधि की 30 शक्ति का उपयोग करना चाहिए।
आग लगने या संभोग करने के सपने आते हों और नींद देर से आती हो तथा सोकर उठने के बाद कमजोरी महसूस होता हो तो इस प्रकार के कष्टों को दूर करने के लिए फॉसफोरस औषधि का उपयोग किया जा सकता है।
रोगी को धीरे-धीरे नींद आती है और रात में कई बार जाग पड़ता है, थोड़ी नींद आने पर रोगी को बड़ा आराम मिलता है, रोगी के रीढ़ की हड्डी में जलन होती है और रोग का अक्रमण अचानक होता है। ऐसे रोगी के इस रोग को ठीक करने के लिए फॉसफोरस औषधि की 30 शक्ति का प्रयोग करना अधिक लाभकारी है।

17. टैबेकम-  यदि स्नायविक-अवसाद (नर्वस ब्रेकडाउन) के कारण से अंनिद्रा रोग हुआ हो या हृदय के फैलाव के कारण नींद न आने के साथ शरीर ठंडा पड़ गया हो, त्वचा चिपचिपी हो, घबराहट हो रही हो, जी मिचलाना और चक्कर आना आदि लक्षण हो तो रोग को ठीक करने के लिए टैबेकम औषधि की 30 शक्ति का सेवन करने से अधिक लाभ मिलता है।

18.  ऐवैना सैटाइवा –   स्नायु-मंडल पर ऐवैना सैटाइवा औषधि का लाभदायक प्रभाव होता है। ऐवैना सैटाइवा जई का अंग्रेजी नाम है। जई घोड़ों को ताकत के लिए खिलाई जाती है जबकि यह मस्तिष्क को ताकत देकर अच्छी नींद लाती है। कई प्रकार की बीमारियां शरीर की स्नायु-मंडल की शक्ति को कमजोर कर देती है जिसके कारण रोगी को नींद नहीं आती है। ऐसी स्थिति में ऐवैना सैटाइवा औषधि के मूल-अर्क के 5 से 10 बूंद हल्का गर्म पानी के साथ लेने से स्नायुमंडल की शक्ति में वृद्धि होती है जिसके परिणाम स्वरूप नींद भी अच्छी आने लगती है। अफीम खाने की आदत को छूड़ाने के लिए भी ऐवैना सैटाइवा औषधि का उपयोग किया जा सकता है।

19. स्कुटेलेरिया – यदि किसी रोगी को अंनिद्रा रोग हो गया हो तथा सिर में दर्द भी रहता हो, दिमाग थका-थका सा लग रहा हो, अपनी शक्ति से अधिक काम करने के कारण उसका स्नायु-मंडल ठंडा पड़ गया हो तो ऐसे रोगी के इस रोग को ठीक करने के लिए स्कुटेलेरिया औषधि का प्रयोग आधे-आधे घंटे के बाद इसके दस-दस बूंद हल्का गर्म पानी के साथ देते रहना चाहिए, इससे अधिक लाभ मिलेगा।

20. सिप्रिपीडियम – अधिक खुशी का सामाचार सुनकर जब मस्तिष्क में विचारों की भीड़ सी लग जाए और इसके कारण से नींद न आए या जब छोटे बच्चे रात के समय में उठकर एकदम से खेलने लगते हैं और हंसते रहते हैं और उन्हें नींद नहीं आती है। ऐसे रोगियों के अनिद्रा रोग को ठीक करने के लिए सिप्रिपीडियम औषधि के मूल-अर्क के 30 से 60 बूंद दिन में कई बार हल्का गर्म पानी के साथ सेवन कराना चाहिए। रात में अधिक खांसी होने के कारण से नींद न आ रही हो तो सिप्रिपीडियम औषधि का प्रयोग करना चाहिए जिसके फलस्वरूप खांसी से आराम मिलता है और नींद आने लगती है।

21. कैमोमिला – दांत निकलने के समय में बच्चों को नींद न आए और जंहाई आती हो और बच्चा औंघता रहता हो लेकिन फिर भी उसे नींद नहीं आती हो, उसे हर वक्त अनिद्रा और बेचैनी बनी रहती है। ऐसे रोगियों के इस रोग को ठीक करने के लिए कैमोमिला औषधि की 12 शक्ति का सेवन कराने से अधिक लाभ मिलता है।

22. बेल्लिस पेरेन्नि स-  यदि किसी रोगी को  सुबह के तीन बजे के बाद नींद न आए तो बेल्लिस पेरेन्निस औषधि के मूल-अर्क या 3 शक्ति का उपयोग करना लाभकारी है।

23. कैनेबिस इंडिका-  अनिद्रा रोग (ओब्सीनेट इंसोम्निया) अधिक गंभीर हो और आंखों में नींद भरी हुई हो लेकिन नींद न आए। इस प्रकार के लक्षण यदि रोगी में है तो उसके इस रोग को ठीक करने के लिए कैनेबिस इंडिका औषधि के मूल-अर्क या 3 शक्ति का उपयोग करना फायदेमंद है। इस प्रकार के लक्षण होने पर थूजा औषधि से भी उपचार कर सकते हैं।

24. पल्सेटिला- रात के समय में लगभग 11 से 12 बजे नींद न आना। इस लक्षण से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए पल्सेटिला औषधि की 30 शक्ति का प्रयोग करना चाहिए।

25. सिमिसि-  यदि स्त्रियों के वस्ति-गन्हर की गड़बड़ी के कारण से उन्हें अनिद्रा रोग हो तो उनके इस रोग का उपचार करने के लिए सिमिसि औषधि की 3 शक्ति का उपयोग किया जाना चाहिए।

26. साइना-  पेट में कीड़ें होने के कारण से नींद न आने पर उपचार करने के लिए साइना औषधि की 2x मात्रा या 200 शक्ति का उपयोग करना लाभदाक है।

27. पैसिफ्लोरा इंकारनेट- नींद न आने की परेशानी को दूर करने के लिए यह औषधि अधिक उपयोगी होती है। उपचार करने के लिए इस औषधि के मल-अर्क का एक बूंद से 30 बूंद तक उपयोग में लेना चाहिए।

A short differential comparison of the Magnesium remedies : Guest post by Uta Mittelstadt

मेरी डायरी–बैच फ़्लावर रेमेडी–“ गौर्स–Gorse ”

Gorse

३८ बैच फ़्लावर औषधियों मे से मै  १२-१५  दवाओं का अकसर प्रयोग करता हूँ । अधिकतर बैच फ़्लावर औषधियों  का प्रयोग अभी किया नही है । गौर्स को प्रयोग करने का पहला अनुभव बहुत अधिक संतोषजनक रहा । १५ दिन पहले मुझे जिस रोगी को देखने जाना पडा वह मेरे  एक  साथी चिकित्सक के पिता का केस था । आयु ५६ वर्ष , पिछ्ले कई  सालो से कुवैत मे किसी अच्छी सरकारी पोस्ट पर थे । डायबीटिज थी और उच्च रक्तचाप से पीडित भी  । पहला पक्षाघात का अटैक कुवैत मे ही पडा । कुछ दिन वही अस्पताल मे रहने पर जाँचॊ द्वारा मालूम पडा कि उनकॊ Tubercular meningitis भी है । इलाज शुरु हुआ लेकिन टी.बी . पर वहाँ के चिकित्सकॊ की एक राय न बन सकी । एक पक्ष Neurocysticercosis  और दूसरा चिकित्सकों का समूह टी.बी. की डाय्गोनिसस पर विभाजित रहा । टी.बी. पर कुछ दिन इलाज चलने के बाद दूसरे पक्ष के चिकित्सकों ने टी. बी. पर इलाज बन्द कर के सीसस्टीसर्कोसिस पर इलाज शुरु किया । हाँलाकि पहले इलाज के दौरान मरीज को कुछ फ़ायदा दिख रहा था ।  इस बीच  एक राय न बनने के कारण मरीज को वापस भारत जाने के लिये कहा गया ।

रोगी की पत्नी के अनुसार लखनऊ आने पर वह बेहतर हालात मे थे । उन्होने उस समय की एयर्पोर्ट की मुझे जो फ़ोटॊ दिखाई उसमे वह काफ़ी प्रसन्नचित्त और स्वस्थ दिख रहे थे ।  लखनऊ मे भी चिकित्सकों की एक राय Tubercular meningitis  की ही बनी। फ़लस्वरुप इलाज के दौरान कुछ माह के अन्दर स्वास्थ लाभ तेज हुआ और रिकवरी पूरी तरह से दिखने लगी । लेकिन साल भर के अन्दर दूसरा अटैक फ़ालिज का पडा । और फ़िर उसके बाद वह इलाज चलने के बावजूद भी रिकवर न कर पाये । टी.बी , ब्लड शुगर और  उच्च रक्तचाप   की दवाईयाँ पहले से ही चल रही थी । और वह अब पक्षाघात ( Hemiplegia )  के लिये होम्योपैथिक राय मुझसे लेना चाहते थे ।

अधिकतर फ़ालिज ग्रस्त रोगियों मे सबसे बडी  समस्या उनके अवसादों को लेकर होती है । और यहाँ भी समस्या डिप्रेशन को लेकर ही थी । DPR ( deep plantar reflexes – Babsinki sign ) पाजीटिव दिखने के बावजूद  भी रोगी मे movements काफ़ी हद तक सामान्य थे । इन हालात को देखकर मुझे लगा कि शायद कुछ उम्मीद बन सकती है लेकिन रोगी के साथ मुख्य समस्या मानसिक अवसाद की थी । रोगी की पत्नी के अनुसार न तो वह उनको सहयोग देना चाहते थे और न ही अपने फ़िजियोथिरेपिस्ट को । रोना ,  बात –२ पर क्रोधित होना । जीबन के प्रति निराशा के भाव उनकी बातचीत से ; जो हाँलाकि पक्षाघात के कारण स्पष्ट न थी , साफ़ नजर आ रही थी ।

पहले से ही कई अति आवशयक दवायें चल रही थी और उनको बन्द करके होम्योपैथिक दवाओं को चलाने की कोई वजह नही थी । लेकिन क्या होम्योपैथिक और बैच फ़्लावर कार्य करेगी , यह अवशय संशय था । constitutional/ pathological सेलेक्शन मे से पैथोलोजिकल सेलेक्शन को अधिक मह्त्व दिया जो कि वर्तमान लक्षणॊं मे से प्रमुख थे ।

Opium LM पोटेन्सी पहली चुनाव बना  और अब बारी थी रोगी के अवसादॊ की । बैच फ़्लावर को एक बार फ़िर से अवसादों के लिये मुख्य जगह दी गई । और दवा का सेलक्शन गौर्स पर टिका | लगभग २ सप्ताह के बाद  रोगी की पत्नी और उनके घर के अन्य सद्स्यों ने रोगी की स्वास्थ की प्रगति , ( विशेषकर उनके अवसादों ) को काफ़ी अधिक संतोषजनक बताया । उनके अनुसार रोगी बेहतर हालात में है ,  प्रसन्नचित्त रहते हैं और अपने कार्यों को स्वंय करने की कोशिश करते हैं ,  जो पहले कभी न देखी गई । यह तो आगे आने वाला समय बतायेगा कि अन्य मुख्य लक्षणॊ मे कहाँ तक प्रगति आती है लेकिन Mind – Body connections मे बैच फ़्लावर के महत्व की भूमिका को  नंजर अंदाज नही किया जा सकता ।

आखिर गौर्स ने क्या कियागौर्स का मुख्य लक्षण है – पूर्ण नाउम्मीदी ( Hopelessness ) . रोगी को यह विशवास होता है कि वह अब ठीक नही हो सकता । और या तो वह चिकित्सक को बेमन से मिलता है या फ़िर मजबूरी मे । ( ऋण पक्ष ) ऐसे रोगियों को गौर्स दोबारा जिन्दगी से लडने के लिये संबल प्रदान करता है । ( धन पक्ष )

बात जब गौर्स की है तो बैच फ़्लावर दवाओं मे नाउम्मीदी ( Hopelessness ) की अन्य दवाये भी है , जैसे :

१. Gentian ( जैन्सियन) : इसमे शक और मायूसी तो होती है लेकिन नाउम्मीदी बिल्कुल नही होती ।

२. Sweet chest Nut ( स्वीट चेस्ट नट ) : इसमे पूर्ण निराशा , जैसे सब कुछ खो गया हो और बाकी कुछ रह न गया हो ।

३. Wild Rose ( वाइल्ड रोज ) : अपनी बीमारी के लिये वह अपने पिछ्ले कर्मॊ का फ़ल समझता है ।

४. गौर्स ( Gorse ) : किसी लम्बी बीमारी मे कई ईलाज कराने के बाद वह मायूस हो जाता है और अपनी उम्मीद छोड बैठता है ।

बैच फ़्लावर की कुछ विशेष खूबियाँ मुझे इस पद्द्ति की तरफ़ आकृष्ट करती हैं । जहाँ होम्योपैथिक दवाओं मे अन्य दवाओं के साथ चलाने का झमेला रहता है वही बैच को किसी भी पद्द्ति के साथ समावेशित किया जा सकता है ।

Gorse

Gorse
Scientific name: Ulex
Family Fabaceae.
Rank: Genus
Higher classification: Faboideae

Keyword – Hope | Bach Group – Uncertainty

Gorse is the remedy for those who suffer great uncertainty in the process of life, causing them to experience feelings of hopelessness and despair. This is a state sometimes found in those with a long-term illness who have lost all hope of recovery or in those whose experiences have caused them to view life ‘as a lost cause’. When this state is very deep rooted a person may have dark rings under the eyes or be prone to sigh a lot. Taken over a period of time Gorse will help to dispel these dark feelings and promote new hope and vision for the future.

Dr Bachs description of Gorse:-

“Very great hopelessness, they have given up belief that more can be
done for them. Under persuasion or to please others they may try
different treatments, at the same time assuring those around that
there is so little hope of relief”

From the Twelve Healers & Other Remedies – By Dr Edward Bach ( 1936 edition)

यह भी देखें :

सर्दियों में सीजनल एफेक्टिव डिसॉर्डर (सैड) – Seasonal Affective Disorder or Winter depression

Portrait of the beautiful thoughtful girl. Autumn, grief, dreams and tenderness.

सर्दियों के दिनों अवसाद या डिप्रेशन की एक आम समस्या है ।  अवसाद कॆ  कारणॊ के पीछे कई वजह  हो सकते हैं लेकिन अगर आप सर्दियों मे दूसरे मौसम की अपेक्षा आलस, थकान और उदासीन महसूस करते हैं तो हो सकता है कि आपको सीजनल एफेक्टिव डिसॉर्डर (सैड) की समस्या हो। सर्दियों में अक्सर दिन के समय सूर्य का प्रकाश हमें कम मिलता है जिससे कई बार हमारी दिनचर्या और सोने व उठने का चक्र प्रभावित होता है। ऐसे में हमारे मस्तिष्क में ‘सेरोटोनिन’ नामक केमिकल प्रभावित होता है जिससे हमारा मूड बिना वजह खराब ही रहता है। कई बार यह स्थिति हमें अवसाद का शिकार बना सकती है ।
सीजनल एफेक्टिव डिसॉर्डर (सैड)  का वर्णन   मेडिकल सांइस मे सबसे पहले १९८० के दशक से दिखता है हाँलाकि इसके पहले कई चिकित्सक और रोगी भी इस बात से वाकिफ़ थे कि सर्दी का मौसम शुरु होते ही स्वभाव मे बदलाव दिखना आरम्भ हो जाता है । इस तथ्य का वर्णन पांचवी सदी ईसा पूर्व हिप्पोक्रेट्स  के कुछ आलेखों मे भी देखा जा सकता है । कई देशॊ मे जहाँ दिन काफ़ी छॊटे होते है और धूप का सर्वथा अभाव रहता है वहाँ अवसाद के रोगियों का मिलना एक आम समस्या है । जैसे स्वीडेन के उत्तर  भाग मे जहाँ छ्ह महीने रात और छ्ह महीने दिन रहता है वहाँ आत्मह्त्या की दर सबसे अधिक है ।

SAD के बारे मे कुछ तथ्य

  • कोई आवशयक नही कि ठंड मे रहने वाले लोगों को ही यह समस्या हो , जो लोग उन जगहों पर रहते हैं जहां ठंड कम पड़ती हो और बहुत अधिक ठंड वाले इलाके में आ जाएं।
  • महिलाओं में इस बीमारी की आशंका अधिक रहती है।
  • 15 से 55 वर्ष की आयु वाले लोगों में इसकी आशंका अधिक रहती है।
    सीजनल एफेक्टिव डिसॉर्डर से पीड़ित व्यक्ति के बहुत अधिक संपर्क में रहने वाले व्यक्ति को भी यह बीमारी हो सकती है।

SAD के लक्षण

  • लगातार थकान महसूस हो और रोजमर्रा के कामो मे मन न लगे ।
  • मन मे नकारात्मक विचारों का बार बार आना ।
  • सही प्रकार नींद न आना या बहुत अधिक नींद आना ।
  • कार्बोहाइड्रेट युक्त चीजों जैसे रोटी, ब्रेड या पास्ता आदि खाने का हमेशा मन करना ।
  • वजन का तेजी से बढना ।

SAD से बचने के उपाय :

  • अपनी दिनचर्या निर्धारित करे ।
  • रोजाना योग , ध्यान , मार्निग वाक और एक्सर्साइज करें ।
  • थोडा खायें और बार –२ खायें लेकिन खाने मे हरी सब्जियों और फ़लों का सेवन अधिक करें ।
  • सुबह देर तक न सोयें ।
  • सर्दियों मे संभव हो तो दोपह्र का खाना धूप मे खायॆ ।
  • इतवार को और अधिक खुशगवार बनायें ,  धूप का आंनद लेने के किसी पार्क मे जायें ।
  • अगर घर मे ही काम करना पडे तो कोशिश करे कि ऐसी खिडकी के पास अपनी टॆबल रखें जहाँ प्रचुर मात्रा मे धूप उपलब्ध हो ।

मेडिकल उपचार
आमतौर पर डॉक्टर सैड के मरीजों का उपचार दो तरह की लाइट थेरेपी से करते हैं- ब्राइट लाइट ट्रीटमेंट और डॉन सिमुलेशन। ब्राइट लाइट ट्रीटमेंट के तहत रोगी को लाइटबॉक्स के सामने रोज सुबह आधे घंटे तक बैठाया जाता है।
दूसरी विधि में सुबह सोते वक्त रोगी के पास धीमी लाइट जलाई जाती है जो धीरे-धीरे तेज होती जाती है। सूर्योदय जैसा वातावरण तैयार किया जाता है। इसके अलावा योग, अवसाद हटाने वाली दवाओं और कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी से भी इस बीमारी का उपचार किया जाता है।

होम्योपैथिक उपचार

SAD के रोगियों को देखने के दौरान निम्म रुब्रिक्स  जो बहुतायात रोगियों मे पाये जाते है  :

  • *Sadness, melancholy
  • *Feelings of worthlessness
  • *Hopeless
  • *Despair
  • *Sleepiness
  • *Lethargy
  • *Craving for sweets
  • *Craving for carbohydrates
  • *Company aggravates
  • *Desire to be alone
  • *Music ameliorates
  • *Difficulty concentrating/focusing
  • *Thoughts of death or suicide.

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औरम मेट , फ़ास्फ़ोरस , सीपिया , रस टाक्स . इगनेशिया सर्दियों मे होने वाले अवसाद की मुख्य औषधियाँ है । हाँलाकि लक्षणॊ की सम्पूर्ण्ता ( Totallity of symptoms ) ही औषधि चुनाव का आधार है ।

लेकिन मुख्य औषधियों पर एक नजर :

Aurum metallicum is for those who sink into terrible depression in the dark of the winter feeling like the cloud is sitting over them. At their worst they feel that life isn’t worth living. They take solace in work and/or religion and hide themselves away listening to sad music until the sun returns the following spring.
Phosphorus has a really close relationship with the weather, loving the sun and sparkling with it – actually feeling invigorated by being out in the sunshine. They are deeply affected by cloudy weather – becoming miserable and gloomy the longer the sun stays away. In the deepest, darkest time of the winter they can slow right down, not wanting to do anything. Chocolate (especially chocolate ice cream) is their great source of comfort at those times – as are their friends. Even brief outbursts of sunshine on a winter’s day will lift their spirits, as can getting out with friends and going to a party or going dancing!
Rhus toxicodendron is useful for those who are particularly vulnerable to cloudy weather, who find that the cold, damp, wet and cloudy weather makes them feel just plain miserable. Their body reacts to the cloudy weather by stiffening up – especially the back and the joints – which makes them feel even worse. Getting up after sitting or lying down for a while is hard, and then continued movement eases the stiffness – unfortunately those joints start to hurt again if they are using them for a while so they have to rest – after which the whole maddening cycle starts again, thereby causing the restlessness that is a keynote for this remedy.
Sepia is for extremely chilly types who hate everything about winter: the damp, the rain, the frost, the snow, the clouds – everything. Their moods start to lift when they begin to get warm again in the late spring and early summer when they can get out in the fresh air and do some vigorous exercise. These people love to run much more than jog, and it is this kind of exercise – vigorous exercise in the fresh air – that makes them feel really well overall. If they can’t do it they sink into a depressed, irritable state where they want to be alone (and eventually, so does everyone else – want them to be alone that is!)

Mother Theresa Institute in Pondicherry to start 2-year D pharm courses in Ayurveda, Siddha, Homoeopathy

The Mother Theresa Post Graduate and Research
Institute of Health Sciences in Pondicherry will
start two-year diploma courses in Ayurveda
Pharmacy, Siddha Pharmacy and Homoeopathy
Pharmacy from this academic year onwards, said
Dr R Murali, dean of the Institute.
This is the first time a health educational
institution in Pondicherry is starting D Pharm
course in Ayush subjects. Gujarat Ayurveda
University in Ahmedabad and Aringar Anna
Hospital of ISM in Chennai are the other two
institutes in India conducting D Pharm course in
Ayurveda and in Siddha.
The dean said the department of ISM in the
college is conducting the course in collaboration
with the Ayush department of Pondicherry
government. Message about the commencement
of the course has been sent to the Ayush
department in New Delhi. On completion of the
course, the students will have one month
internship in the ISM PHCs and private clinics in
Pondicherry.
“We got the approval from the government for
starting the course. Now we are waiting for
affiliation from Board of Medical Education,
government of Pondicherry. The course will be
started from this academic year,” he added.
The syllabus of the course will include basic
anatomy, physiology, properties of medicine,
manufacturing process, pharmacology,
pharmacognozy and dispensing practice. Besides,
there will be special papers on drugs store
management, computer application in pharmacy
and health education, the dean said.
Dr K Gopal, principal of the College of Pharmacy
at the Institute said the first three batches will be
absorbed by the Pondicherry government as there
are a lot of vacancies for Ayush pharmacists in
the hospitals and PHCs in the union territory at
present. He said three of the twelve laboratories
in the college are set aside for practical purpose
of the students joining the course. The basic
qualification of the applicant is 10+2.
Dr T Thirunarayanan, secretary of the Centre for
Traditional Medicines and Research said,
previously there was a proposal to start the
diploma course in Siddha in Pondicherry,
subsequently discussion was held with Ayush
secretary. But later it was found that the job
opportunity for the course was very less there,
and the same situation is continuing still now. He
said after three years all the Siddha D Pharm
certificate holders will become jobless.
However, he suggested that the Pondicherry
government could send a minimum of ten
students each to the government Siddha colleges
at Palayamkottai in Thirunelveli and at
Arumbakom in Chennai for the same course and
on completion of the course they could be
appointed as ISM Pharmacists at the PHCs in
Pondicherry. Else, after five years, Pondicherry will
become a state of jobless Siddha pharmacists, he
added.
source : similima

वर्ष 2013-14 सहित बारहवीं पंच वर्षीय योजना के दौरान आयुष विभाग की प्राथमिकताएं

वर्ष 2013-14 सहित बारहवीं पंच वर्षीय योजना के दौरान आयुष विभाग की प्राथमिकताएं

देश के कोने-कोने में प्रत्येक व्यक्ति को पूर्ण स्वास्थ्य के दायरे में लाना बाहरवीं पंच वर्षीय योजना की एक प्राथमिकता है। इस दौरान आयुष चिकित्सा प्रणाली की विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए उसे आधुनिक चिकित्सा प्रणालियों के साथ-साथ प्रयोग में लाया जाएगा। रोगों से बचाव, विशेष रूप से महिलाओं, बच्चों, वरिष्ठ व्यक्तियों को ध्यान में रखते हुए नॉन कम्यूनिकेबल बीमारियों में, तनाव के प्रबंधन में, मानसिक रोगों की चिकित्सा में, बीमारियों से जूझते व्यक्तियों की देखभाल में और स्वस्थ्य लाभ में आयुष का प्रयोग किया जाएगा।

बारहवीं पंच वर्षीय योजना के महत्वपूर्ण उद्देश्य : –

बाहरवीं पंच वर्षीय योजनाओं में आयुष के लिए 10,044 करोड़ रूपये का प्रावधान रखा गया है। जबकी ग्यारहवीं पंच वर्षीय योजना में केवल 2994 करोड़ रूपये ही जिन उद्देश्यों के लिए खर्च किए गए वे हैः

1. स्वास्थ्य सेवाओं में आयुष के प्रयोग को बढ़ाया गया।

2. आयुष विभाग ने आयुष की विशेषताओं को चिकित्सा, विशेषतौर पर महिलाओं बच्चों और बुजुर्गों के लिए, मानसिक बीमारियों के चिकित्सा में, तनाव के प्रबन्धन में, बीमार व्यक्तियों की देखभाल में और पुनर्वास में किया।

बारहवीं पंच वर्षीय योजना के अंतर्गत जो सुझाव दिए गए हैं उनमें इन संस्थाओं को शुरू करने की सिफारिश की गई है : –

1. होमियोपैथी मेडिसिन फार्मास्यूटिकल कंपनी लिमिटेड

2. अखिल भारतीय योग संस्थान

3. अखिल भारतीय होमियोपैथी संस्थान

4. अखिल भारतीय यूनानी चिकित्सा संस्थान

5. राष्ट्रीय सोवा रिग्पा संस्थान

6. राष्ट्रीय औषधीय पौध संस्थान

7. राष्ट्रीय आयुष पुस्तकालय और अभिलेखागार

8. केंद्रीय सोवा रिग्पा अनुसंधान परिषद

9. आयुष संबंधित राष्ट्रीय मानव संसाधन आयोग

10. आयुष के लिए केंद्रीय दवा नियंत्रक

11. आयुष औषध प्रणाली का भारतीय संस्थान

12. राष्ट्रीय जराचिकित्सा संस्थान

13. मेटाबॉलिक तथा लाइफ-स्टाइल बीमारियों का राष्ट्रीय संस्थान

14. राष्ट्रीय ड्रग तंबाकू निवारण संस्थान

नए कार्यक्रम : आयुष के राष्ट्रीय मिशन के अंतर्गत कुछ और नए कार्यक्रमों की सिफारिश की गई है जो कि इस प्रकार हैः

1. आयुष ग्राम

2. फार्मेको विजिलेंश इनिशियेटिव फोर ए.एस.यू. ड्रग्स

3. शोध परिषद की इकाइयों को प्रभावी बनाना

4. राष्ट्रीय आयुष हैल्थ प्रोग्राम

5. अस्पताल और डिस्पेंसरी (आयुष के साथ-साथ राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन-एक फ्लेक्सिपूल)

source : http://www.pib.nic.in/newsite/hindirelease.aspx?relid=21511