Category Archives: फ़ालतू की बड-बड

कितना असुरक्षित है आपका ICICI Debit cum ATM card

आम तौर मै  ATM कार्ड  का  प्रयोग नही करता , क्रेडिट  कार्ड मेरे पास है नही , हाँ , इधर कुछ सालों से इन्टर्नेट  बैंकिग मुझे अधिक मुफ़ीद लगती है लेकिन कुछ दिन पहले एक दिक्कत आ पडी  जिसका अनुभव मेरा बहुत ही खराब रहा ।

कुछ दिन पहले गूगल प्ले पर एक एन्डॊरॆड एप्स मैने देखी थी जिसको लेने का मन  हुआ। Runtastic  pedometer नाम की  इस  एप्स की खरीद के लिये जब मैने किल्क किया तो मुझे इन्टेर्नेट बैंकिग को छोडकर बाकी सारे आपशन मिले  । वीजा / मास्टर डेबिट कम ATM कार्ड या फ़िर क्रेडिट कार्ड । क्रेडिट कार्ड न होने के कारण वीजा / मास्टर डेबिट कम ATM कार्ड ही अकेला आपशन था । स्टेट बैंक के मास्टर कार्ड को गूगल ने accept नही किया लेकिन ICICI के वीजा कार्ड को उसने एक बार मे ही ले लिया ।

google wallet

अब आवशकता  थी कुछ औपचाकरिकताओं की , जिसमें कार्ड नम्बर, कार्ड की expiry और security code और अपना नाम और पता को डालना था । इन सब स्टेज को पूरा कर के आगे बढे ही थे कि पेमन्ट अचानक हो गया । बिना कोई पासवर्ड माँगे , कोई भी O.T.P. ( One Time Password ) की सूचना मोबाईल पर नही आये बिना पेमेन्ट हो गया ।

One Time Password (OTP) has been introduced as an additional security feature by ‘ICICI Bank i-safe’ to protect your account from online fraud. OTP is a six digit code sent to resident customers on mobile and NRI customers on e-mail ID registered with ICICI Bank. OTP will be sent to you only when the system suspects unusual activity or change in your Internet Banking Access pattern and you will be asked to enter the OTP when you log in next.

OTP is confidential and should not be shared with anyone, even if the person claims to be an ICICI Bank official.

Please ensure that your mobile number and your email ID is updated with us to be able to transact online.

http://www.icicibank.com/online-services/otp-faq.html#1

मेरा दिमाग सन्न रह गया । यह कार्ड नम्बर अब गूगल पर स्टोर था , जाहिर है कोई भी इसका गलत इस्तेमाल कर सकता था । वह बात अलग कि बाद में गूगल वालट से हटाने का तरीका भी ढूँढना पडा ।

लेकिन बात आनलाइन बैंकिग की थी जिसका एक पक्ष ICICI bank था । अगले दिन मैं ICICI बैंक की महानगर – लखनऊ शाखा मे गया , बैक के मैनेजर और अन्य यह मानने को तैयार नही थे कि बिना पासवर्ड के या O.T.P. के यह कैसे संभव है । उन्होनें मुझे customer care को संपर्क करने के लिया कहा ।

customer care , ICICI bank का जबाब तो और भी निराला था ,पूरी जानकारी लेने के बाद उसका कहना था कि कुछ secured sites पर जैसे गूगल पर यह नियम लागू नही होता । मैं विवेक शून्य रह गया , उसका धन्यवाद किया और फ़ोन को रख दिया । लेकिन मुझे सबक मिल चुका था कि  डेबिट कार्ड का अब मै भविष्य मे प्रयोग न करुँ ।

मिर्च खाएं और मोटापा भूल जाएं …

 

आपको लगता होगा कि मिर्च खाकर सिर्फ मुंह में ही जलन होती है पर वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि इससे शरीर का फैट भी जलता है। यकीनन इससे अच्छी बात क्या हो सकती है क्योंकि मिर्च खाइए और मोटापे की चिंता भूल जाइए 🙂
टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक कैलिफॉर्निया यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने रिसर्च में पाया कि मिर्च खाने से शरीर में जो हीट बनती है, वह हमारे कैलरी उपभोग को बढ़ाती है और फैट की परतों को पतला करती है। और हां, अगर आप ज्यादा तीखी मिर्च नहीं खा पाते तो भी गुड न्यूज है।
रिसर्चरों ने पाया कि कैपसेइसिन नाम का मेन तत्व कुछ कम तीखी मिर्चों में भी होता है। रिसर्चरों ने 34 पुरुषों और महिलाओं पर 28 दिन तक परीक्षण के बाद यह नतीजा निकाला।

साभार : इकोनोमिक टाइम्स

क्या संगीत का सुनना अनिद्रा के रोगियों मे लाभ पहुँचा सकता है? (Does music improve sleep)

हंगरी के इन्संटीटूयट आफ़ बिहेवेरियल सांइस , बुडापोस्ट के शोधकर्ताओं ने यह पाया कि संगीत अनिद्रा के रोगियों मे अच्छी नीद लाने मे सहायक हो सकता है । लेकिन वह यह भी कहते हैं कि यह आप पर निर्भ्रर करता है कि आप किस प्रकार का संगीत सुनते हैं ।

सबसे पहले विवरण :

  • अनिद्रा के शिकार ९४ छात्रों को तीन  समूह मे तीन सप्ताह के अध्ययन के लिये बाँटा गया ।
  • एक समूह को ४५ मिनट का शास्त्रीय संगीत सुनने के लिये कहा गया ।
  • दूसरे समूह को आडियो पुस्तक पढने के लिये दी गई |
  • और तीसरे समूह को कोई भी सलाह नही दी गई ।
नीदं की गुणवता को माँपने के लिये Pittsburg Sleep Quality सूचांनाक और अवसादों को नापने के लिये Beck Depression Inventory की सहायता ली गई ।

 

और परिणाम :

  • संगीत ने नीद  की गुणवत्ता में महत्वपूर्ण सुधार की भूमिका दी ।
  • नीदं की गुणवत्ता मे आडियो पुस्तक और तीसरॆ समूह को दिये विकल्पों से कोई भी लाभ नही हुआ ।
  • अवसाद ( depression ) के लक्षण में भी संगीत सुनने वाले समूह को काफ़ी लाभ हुआ ।

निष्कर्ष :

अगली बार जब नींद न आये तो शास्त्रीय संगीत को सुनिये और मस्ती से सो जाइये । हाँ , अलबत्ता ब्लागिगं करने वालों के लिये इसमे कोई भी सलाह नही दी गई जो एक चिन्ता का विषय है । अनूप जी आप सुन रहे हैं , इतनी लम्बी-२ पोस्टे , देर रात तक जगना और भाभी जी की शिकायतें , सब चिट्ठाकरों के सामने सबूत के रुप मे है 🙂

स्त्रोत और साभार : Pub Med और CAM

दोहरी मार झेलती होम्योपैथिक दवायें

गत एक साल से होम्योपैथिक औषधियों पर दोहरी मार देखने  को मिली है । पहले शुगर आफ़ मिल्क मे अप्रत्याशित वृद्दि से बायोकेमिक और ट्राईट्यूरेशन औषधियों के दाम आसमान छूने लगे और अब माननीय उच्चतम न्यायालय ने पौंडं पैंकिंग ( ४५० मि.ली. ) की बिक्री पर रोक लगाकर रही सही कसर पूरी कर दी ।

लेकिन सबसे पहले शुगर आफ़ मिल्क के खेल को समझते हैं । सन २००७ की शुरुआत मे शुगर आफ़ मिल्क के रेट १८००/ बैग था अगले तीन महीने मे यह रेट ३०००-३५००/ बैग तक जा पहुँचा , दो महीने बीते ही नही थे कि इसकी कीमते ६०००-९००० / तक आसमान छूने लगी और दिसम्बर २००७ तक यह १२०००/ बैग तक जा पहुँचा । समझा जाता है कि  चीन की एक कम्पनी ने हालैंड की शुगर आफ़ मिल्क बनाने वाली कमपनी से अनुबंध करके शुगर आफ़ मिल्क को अपने कब्जे मे ले लिया , शायद इससे ही कीमतों मे वृद्दि दिखी । लेकिन कारण चाहे जो भी हो दवा बनाने वाली प्रमुख होम्योपैथिक कम्पनियों ने अपने स्वार्थ को साधते हुये बायोकैमिक दवाओं की कीमत  ३२/ से ६५/ तक और triturations की कीमत ५० से ८५/ तक पहुँचा दी  । लेकिन मजे की बात की मार्च २००८ के बाद रेट मे कमी आने के बावजूद २५ से ४५० ग्राम की पैकिंग मे रेट कम होने नही दिख रहे हैं ।

दिसम्बर २००७ मे माननीय उच्चतम न्यायालय ने पौंडं पैंकिंग ( ४५० मि.ली. ) की बिक्री पर रोक लगा कर रही सही कमर और तोड दी । केंद्र सरकार ने अल्कोहल की मात्रा वाली होम्योपैथिक दवाओं को रिटॆल मे ३० मि.ली. और अस्पताल सप्लाई हेतु १०० मि.ली. करने के निर्देश दिये । इसके विरुद्द प्रमुख कम्पनियों ने उच्च न्यायालय से स्थगन आदेश प्राप्त कर लिया लेकिन इस स्थगन आदेश को दिसम्बर २००७ मे उच्चतम न्यायालय ने   निरस्त कर दिया । पूरी रिपोर्ट नीचे देखें ।

केंद्र सरकार के ३० मि.ली. और  १०० मि.ली. करने के निर्देश पर प्रमुख होम्योपैथिक कम्पनियों की चुप्पी संशय मे डालने वाली रही । आज से करीब २० साल पहले कलकत्ता की अधिकांश कम्पनियों का होम्योपैथिक दवाओं मे होल्ड हुआ करता था । शारदा बोएरन ( SBL INDIA ) के आने के बाद से समीकरण बदले और कलकत्ता का होल्ड टूटता दिखाई दिया । इन २० सालों मे दिल्ली की अधिकाशं कम्पनियों ने मार्केट पर कब्जा जमा लिया लेकिन सबसे बडी हिस्सेदारी SBL  की रही जो प्रमुखत: फ़्रांस की कम्पनी थी । जरमनी की विल्मर शवाबे (  Willmar Scwabe India ) के आगमन से SBL और BAKSON जैसी कम्पनियों की मोनोपोली मे कोई कमी नही दिखाई दी और शवाबे को अपनी पहचान बनाने मे काफ़ी दिक्कत का सामना करना पडा । मजे की बात है कि शवाबे शुरु से ही ३० मिली और १०० मिली का निर्माण कर रहा था और ४५० मिली को उसने नही छुआ । Willmar Scwabe India के रेट शुरु से ही अन्य कम्पनियों के रेट से तिगुने ही थे ; जाहिर है कि सेल का प्रभाव सबसे अधिक इसी कम्पनी को झेलना पडा । केंद्र सरकार के निर्देश पर इन कम्पनी की चुप्पी कही मलाई खाने मे न लगी हो तो कोई ताज्जुब नही ।

आने वाले दिनो मे लगता है कई ऐलोपैथिक कम्पनियों का प्रवेश होम्योपैथिक दवा निर्माण मे होने वाला है । एक प्रमुख ऐलोपैथिक कम्पनी बूटस ( BOOTS) का  होम्योपैथिक दवा निर्माण मे प्रवेश इस शंका को बल देता है । जाहिर है कि इन मल्टीनेशनल कम्पनियों को लाभ ४५० मि.ली. मे नही बल्कि ३० मि.ली. और १०० मि.ली. मे ही दिखेगा ।

चार गुना महंगी हो गई होम्योपैथिक दवाएं

स्त्रोत : दैनिक जागरण -दिनांक २५-५-२००८
लखनऊ, 25 मई : सस्ते इलाज का दावा करने वाली होम्योपैथिक पद्धति अब कम से कम गरीबों की पहुंच से बाहर होने वाली है। कुछ माह पहले तक जुकाम-बुखार में काम आने वाली आर्सेनिक टिंचर नामक होम्योपैथिक दवा की 30 एमएल की फुटकर शीशी 10 से 12 रुपये में मिल जाती थी अब इसके लिए 40 रुपये से अधिक खर्च करना पड़ेगा। केंद्र सरकार ने अल्कोहल की मात्रा वाली होम्योपैथिक दवाओं को केवल 30 एमएल की पैकिंग वाली शीशी में ही बेचने का आदेश दिया है। इस आदेश की आड़ में कम्पनियों ने 30 एमएल दवा की सीलबंद शीशी का दाम फुटकर की तुलना में चार गुना से ज्यादा कर दिया है। गौरतलब है कि सभी होम्योपैथिक दवाओं में कम से कम 70 फीसदी अल्कोहल होता है। कम्पनियां इन दवाओं को एक पौंड (450 एमएल) की सीलबंद शीशी में बाजार में उपलब्ध कराती हैं। होम्योपैथिक दवा विक्रेता एक पौंड की शीशी से ही दवा निकाल कर मरीजों को फुटकर बेचते हैं। अल्कोहल की मात्रा वाली दवाओं पर नियंत्रण के लिए केंद्र सरकार ने दो वर्ष पूर्व औषधि एवं प्रसाधन अधिनियम-1945 में एक नियम 106(बी) जोड़ा था। इसके तहत कोई भी होम्योपैथिक दवा जिसमें 12 प्रतिशत या इससे अधिक अल्कोहल (या इथाईल अल्कोहल) हो, वह 30 मिलीलीटर (एमएल) से अधिक की पैकिंग में नहीं बेची जायेगी। अस्पतालों में सप्लाई के लिए 100 एमएल की शीशी में दवा बेची जा सकती है। यह नियम लागू हो पाता कि निर्माता कम्पनियों ने सभी बड़े राज्यों के उच्च न्यायालय से उक्त नियम के विरुद्ध स्थगन आदेश प्राप्त कर लिया। दिसम्बर 2007 में उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालयों के स्थगन आदेशों को निरस्त कर दिया। इसी आदेश के क्रम में ड्रग कन्ट्रोलर आफ इंडिया कार्यालय ने जनवरी माह में होम्योपैथिक दवा निर्माता कम्पनियों को अप्रैल माह से केवल 30 एमएल की पैकिंग में ही दवा बेचने के निर्देश जारी किये। ऐसे में कम्पनियों ने जब 30 एमएल की पैकिंग वाली दवाओं को बाजार में उतारा को उनका दाम फुटकर की तुलना में कई गुना अधिक था। एक दवा निर्माता कम्पनी के अधिकारी डा.नरेश अरोड़ा के मुताबिक दो वजहों से दवाओं के दाम बढ़ाये गये हैं, पहला 30 एमएल शीशी की पैकिंग में खर्चा बढ़ा है और दूसरा केंद्र सरकार ने निर्माता कम्पनियों को सब्सिडी में दिये जाने वाले अल्कोहल की मात्रा में कटौती की है। कारण कुछ भी हो इसका खमियाजा गरीब मरीजों को भुगतना पड़ेगा। होम्योपैथिक दवाओं के दाम में नियंत्रण कर पाने में औषधि नियंत्रक एके पांडेय अपनी लाचारी व्यक्त करते हैं। उनके अनुसार होम्योपैथिक दवाओं के मूल्य नियंत्रण सम्बन्धी कानून न होने से इसे रोक पाना फिलहाल संभव नहीं है। केंद्रीय होम्योपैथिक परिषद के सदस्य डा.अनुरुद्ध वर्मा कहते हैं कि अभी तक अल्कोहल युक्त होम्योपैथिक दवाओं के दुरुपयोग का कोई मामला सामने नहीं आया है ऐसे में उक्त नियम को लागू करना तर्कसंगत नहीं है। मरीजों के हित में इसे वापस लेना चाहिये।

शेएर मार्केट का कमाल

शेएर मार्केट ने क्या जमाना दिखाया है ,

आजकल सवेरा होते ही बीबी , सेकेर्ट्री,  गर्ल फ़्रेन्ड, धोबन और यहाँ तक के कामवाली भी सवाल पूछती है , “ आज ऊपर चढेगा क्या ………

विज्ञापन कैसे-२

आज सुबह दैनिक जागरण के मुख्य पृष्ठ पर परिवार नियोजन से संबधित एक प्रायोजित विज्ञापन ने बरबस ध्यान खींच लिया । ऐसा नही कि इस विज्ञापन मे कोई अशशीलता थी लेकिन यह कुछ अलग तरह का था जिसको आप देखें तो मुस्कराये बगैर न रह सकेगें । आज से कई साल पहले जब दूरदर्शन ने अपनी दस्तक घर-२ दी थी तब ऐसे विज्ञापनों को घर के बडे-बुजर्गों के बीच मे बैठ कर देखना अजीब सा लगता था । लेकिन अब माहौल बदल गया है , बढते हुये चैनलों मे परोसी जाने वाली अशशीलता अब इन विज्ञापनों के आगे कोई मायने नही रखती ।
birth control pills

एक नटखट बच्चे पर बनाया गया यह वीडियो देखने योग्य है :

आप चिट्ठाकारी के कितने आदी है ? ( How Addicted to Blogging Are You? )

है तो यह प्रश्न अटपटा लेकिन प्रश्न तो प्रश्न ही है और जबाब भी खोजना है । मेरा जबाब तो नीचे रहा और आपका क्या है ? तो देर किस बात की, थोडा सा यहाँ घूम आयें और अपने मन मे उमडते हुये सवालों का जबाब देखें । ( वैसे जब मै अपने आप को 70% की श्रेणी मे देखता हूँ तो अन्य दिग्गज ब्लागरस पर सोचने पर मजबूर हो जाता हूँ कि उनका प्रतिशत कितना होगा ?  🙂 )

 

खूबूसूरत दिखने की कीमत …….

 

 

cosmetics

पिछले हफ़्ते क्लीनिक मे दो केस गोदेरेज हेऐर डाई से उत्पन्न allergic reactions के आये । एक तो श्रीमान यूसफ़ जो इस साल पाँचवी बार इसी समस्या को लेकर आये और एक और जो मुझे बाराबंकी से किसी चिकित्सक ने refer किया था । यूसफ़ का केस सरल था , हाँलाकि लाख समझाने के बावजूद उनको अबकी ईद पर जवान दिखने के मोह ने मुसीबत मे डाल दिया था । लेकिन जो केस बाराबंकी से आया था , उस जैसा तगडा डाई से उत्पन्न reaction मैने पहले कभी न देखा । मैने भी वही किया जो आम चिकित्सक इन परिस्थितयों मे करते हैं , पहले मेडिकल कालेज रिफ़र किया और जब वहाँ से भी कन्ट्रोल न हुआ तो उसे लखनऊ मे प्रसिद्द्ध त्वचा रोग विशेषज्ञ डा सुरेश तलवार के पास रिफ़र कर दिया । रोग की तीब्रता इतनी अधिक थी कि डां तलवार ने भी उसे संजय गाँधीं पी.जी.आई रिफ़र कर दिया ।

पुरषों मे डाई और महिलाओं मे कास्मेटिक का मोह आम देखा जा सकता है । डेली टेलीग्राफ़ की इस रिपोर्ट की सत्यता पर विशवास करें तो औसतन एक महिला दो किलो कास्मेटिक हर वर्ष प्रयोग करती है और इनमे से अधिकतर कास्मेटिक क्रीम और eyeshadow में कैन्सर उत्पन्न करने वाले तत्व पाये गये हैं । यही नही एक औसत महिला एक साल मे लगभग पाँच लिपस्टिक हजम कर जाती है । जरा नजर दौडायें इन कास्मेटिक  मे पाये जाने वाले रसायनों की तरफ़ :

parabens : पैराबैन औरतों मे हार्मोन मे असंतुलन पैदा करते हैं और breast cancer के लिये उत्तरदायी होते हैं ।

triclosan : यह मूलत: ऐटींबैक्टिरियल और कीटनशक दोनों ही है और प्रमुख प्रयोग होने वाली वस्तुऐं जैसे दाँत सफ़ करने के पेस्ट , body washes, साबुन मे पाया जाता है ।

Sodium laureth sulphate : अधिकतर soap gel  और शैम्पू मे पाया जाता है ।

Arsenic : eye shadows मे पाया जाने वाला प्रमुख हानिकारक तत्व ।

डां बैली हैमिलटन का मानना है कि जो तत्व हम oral route यानि मुँह से लेते हैं वह सीधे त्वचा मे मिलने वाले तत्वों की अपेक्षा कम हानिकारक होते हैं । क्योंकि ऐसे तत्व वमन के रुप मे हमारा शरीर बाहर फ़ेंक देता है लेकिन सीधे रक्त मे घुलने वाले तत्व बरसों तक संबधित organs जैसे किडनी और लीवर मे पडे रहते हैं और धीरे-२ अपना घातक असर दिखाते हैं ।

डाई  प्रयोग करने से सबसे अधिक खतरा पेशाब की थैली  (urinary bladder) के कैन्सर होने का है जो डाई न प्रयोग करने वालों मे कम पाया जाता है ।

THE average woman absorbs two kilograms of chemicals from cosmetics every year – from cancer-causing compounds in face cream to arsenic in eyeshadow.

A  typical woman’s daily beauty regime may involve applying as many as 175 chemical compounds to their skin and hair.
Of course, the manufacturers would say these chemicals and resulting products are safe, but a growing school of thought begs to differ.

Cosmetics contain many different kinds of chemicals, but of particular concern are a group of preservatives called parabens, which by some estimates are found in 99 per cent of all ‘leave on’ cosmetics, and 77per cent of ‘rinse off’ cosmetics.
These are known hormone disruptors: evidence suggests they can mimic the female hormone oestrogen, and a lifetime of increased exposure to oestrogen is linked to a heightened risk of breast cancer.
One study found parabens present in 18 out of 20 breast cancer tissue samples (though it is important to note that the study did not prove they’d actually caused the breast cancer).
Parabens are also thought to adversely affect male reproductive functions.
Another troubling chemical is the antibacterial agent and pesticide triclosan, which is used in toothpastes, soaps, household cleaning products and body washes.
It belongs to the chlorophenol class of chemicals, which are suspected of causing cancer in humans and taken internally, even in small amounts, can cause cold sweats, circulatory problems and – in extreme cases – coma.
Also of concern are phthalates, a substance that gives our lotions that silky, creamy, texture, but which are also a ‘plasticiser’ used to make plastics flexible.
Certain phthalates are known carcinogens, and studies have suggested they damage the liver, kidneys, lungs and the reproductive system, as well as affecting the development of unborn baby boys.
The list goes on. Sodium laureth sulphate, a frequent ingredient in shower gels and shampoos, is a skin irritant; Propylene glycol, found in soap, blushers and make-up remover, has been shown in large quantities to depress the central nervous system to make it function less effectively, and aluminum in deodorants is linked to breast cancer by medical research.
And did you know that certain eye shadows contain arsenic?
One thing is for sure: few of us would want to rub any of these chemicals into our eyes, far less ingest them in liquids by drinking them.
Yet, every day, we rub them into our skin, and allow them to enter our bodies.
Given the facts, it’s hardly surprising that a growing number of experts believe these substances have a cumulative effect on our bodies.
They think the ‘chemical ########’ inside us is contributing to the increased frequency of a host of illnesses ranging from eczema to cancers as well as developmental problems such as autism and dyslexia.
“It’s difficult to see the link between chemicals in cosmetics and damage to health unless you stand back and look at the wider picture,” Dr Paula Baillie-Hamilton, author of Toxic Overload, told The Daily Mail.
“Man-made chemicals first emerged 100 years ago, and every decade since, the overall production of these synthetic chemicals has doubled.
“We are surrounded by chemicals: in the air, in our food, in our water and especially in our cosmetics, and the fact is that our bodies can’t break many of these substances down.”
Dr Baillie-Hamilton also thinks that absorbing chemicals through our skin is more dangerous than swallowing them.
“At least if you ingest chemicals through your mouth, your digestive system can do something towards dealing with them,” she says.
“If they go through your skin they hit your blood stream immediately and are then transported to vital organs such as kidney and liver, where they may be stored for many years.”
For instance, the average woman eats, albeit unwittingly, five lipsticks a year, which in her lifetime is the equivalent volume of 1.5 blocks of lard.
People who use permanent hair dye are more than twice as likely to develop bladder cancer as those that don’t.
Both ammonia and paraphenylenediamine (PPD) – chemical substances used in dyes – can cause allergic reactions, too.

बत्तीसी मे भी रोमांच

बत्तीसी संभाल गोरी , उडी चली जाये रे । ” यह बत्तीसी भी कमाल की हैं , कभी यह खो जाती हैं और कभी-२ इनको लगाने वाले इसको निगल तक जाते हैं । अब इन दादी अम्मा को देखिये , उत्साह मे कोई कमी नहीं , चली आसामान की सैर करने लेकिन कमबख्त यह बत्तीसी रास्ते मे टपक गयी । बत्तीसी निगलने और पाकाशय (oesophagus) की नली मे फ़ँसने के पहले भी कई केस सामने आ चुके हैं , देखें यहाँ ,  और  यहाँ

कैडबैरीज की चौकलेट मे सालमोनेला संक्रमण ( cadbury’s chocolate linked to salmonella infection)

cadbury chocalate

अगर आप वाकई मे जंक फ़ूड के खतरे को समझ रहे हैं और घर मे अपने बच्चों इसके खतरे को देखते हुये  नियत्रणं रखना चाहते हैं तो यह खबर शायद एक बार फ़िर से सचेत करने वाली हो । हरफ़र्ड्शायर मे कैडबैरीज की चौकलेट बनाने वाली ईकाई मे सीवेज के पानी के रिसाव होने से यह समस्या आई । करीब ५० से अधिक बच्चों मे इसका संक्रमण हुआ । इसके पहले भी कैडबरीज की यूनिट मे इस तरह की घटना प्रकाश मे आई थी ।

सालमोनेला  संक्रमण सालमोनेला  बैकटेरिया द्वारा  जानवरों के मल द्वारा संक्रमित खाद्य पद्धार्थों के खाने से   फ़ैलता है , इसके द्वारा उत्पन्न प्रमुख लक्षण १२-७२ घंटों के अन्दर दिखने लगते हैं जिनमें  आंत्रशोध , उल्टी , बुखार और पेट मे मरोड आदि प्रमुख हैं ।

They are microscopic living creatures that pass from the feces of people or animals, to other people or other animals. There are many different kinds of Salmonella bacteria. They were discovered by a American scientist named Salmon, for whom they are named.

And how do you know if you have been infected?

Most persons infected with Salmonella develop diarrhea, fever, and abdominal cramps 12 to 72 hours after infection. The illness usually lasts 4 to 7 days, and most persons recover without treatment. However, in some persons the diarrhea may be so severe that the patient needs to be hospitalized. In these patients, the Salmonella infection may spread from the intestines to the blood stream, and then to other body sites and can cause death unless the person is treated promptly with antibiotics. The elderly, infants, and those with impaired immune systems are more likely to have a severe illness.