Category Archives: सैमुएल हैनिमैन

डॉ. क्रिश्चियन फ्राइडरिक सैमुअल हैनिमेन- जन्म दिवस पर विशेष ( A Tribute to Dr Samuel Hahnemann )

१० अप्रेल २००९ में लिखी हुई यह पोस्ट कल भी सामायिक थी ,आज भी है और कल भी रहेगी। विषम परिस्थितयॊं मॆ होम्योपैथी का उद्‌गम और उसकी यात्रा न सिर्फ़ गर्व का अनुभव कराती है बल्कि उस महान चिकित्सक के प्रति नतमस्तक होने के लिये प्रेरित करती है । देखॆ पुरानी पोस्ट डॉ. क्रिश्चियन फ्राइडरिक सैमुअल हैनिमेन- जन्म दिवस पर विशेष ( A Tribute to Dr Samuel Hahnemann )


इतिहास के चन्द पन्नों को समटेने की कोशिश करते हुये आँखे नम सी हो जाती हैं । मेरे सामने ब्रैडफ़ोर्ड की ” लाइफ़ एन्ड लेटर आफ़ हैनिमैन ” और हैल की ” लाइफ़ एन्ड वर्कस आफ़ हैनिमैन ” के उडते हुये पन्ने मानों वक्त को एक बार फ़िर समेट सा  रहे हैं । यह पुस्तकें मैने शौकिया अपने कालेज के दिनों मे ली थी लेकिन कभी भी पढने की फ़ुर्सत न मिली  । पिछ्ले साल जब hpathy.com के डा. मनीष भाटिया की भावपूर्ण जर्मनी  यात्रा को पढने का अवसर मिला तब इस लेख को लिखने की सोची थी लेकिन फ़िर आलसवश टल गया । १० अप्रेल हैनिमैन की जन्म तिथि के रुप मे जाना जाता है । मुझे नही लगता कि किसी भी अन्य पद्दति मे चिकित्सक अपने सिस्टम के संस्थापकों से इतना नही जुडॆ  हैं जितना कि एक होम्योपैथ । बहुत से कारण हैं लेकिन सबसे बडा कारण है होम्योपैथी का विषम परिस्थियों मे उद्‌भव । हैनिमैन अपनी जिंदगी मे वह सब कुछ बहुत आसानी से पा सकते थे अगर वह वक्त के साथ समझौता कर लेते लेकिन उन्होने नही किया । किसी ने सही कहा है , “कीर्तियस्य स जीवति “ – आज कौन कह सकता है कि हैनिमैन इस जगत मे नही हैं ।

डॉ. क्रिश्चियन फ्राइडरिक सैमुअल हैनिमेन  का जन्म सन्‌ १७५५ ई. की १० अप्रेल को जर्मनी मे सेक्सनी प्रदेश के  माइसेन नामक छॊटे से गाँव मे हुआ था  । एक बेहद गरीब परिवार मे जन्मे हैनिमैन का बचपन अभावों और गरीबी  मे बीता । आपके पिता एक पोर्सीलीन पेन्टर थे ,  सीमित संस्धानों  को देखते हुये  हुये वह चाहते थे कि उनका पुत्र भी इस व्यवसायाय मे रुचि दिखाये । लेकिन अनेक प्रतिभाओं के धनी हैनिमैन को यह मन्जूर नही था । अनेक भाषाओं के ज्ञाता हैनिमैन ने जीवन संघर्ष की शुरुआत  रसायन और अन्य  ग्रन्थों के अंग्रेजी भाषा से जर्मन मे अनुवाद से प्रारम्म्भ  की । सन्‌ १७७५ मे हैनिमैन लिपिजिक मेडिकल की पढाई के लिये निकल पडे , लिपेजेक मेडिकल कालेज मे हैनिमैन को उनके प्रोफ़ेसर डा. बर्ग्रैथ का भरपूर साथ मिला जिसके कारण उनकी पढाई के कई साल पैसों की तंगी के बिना भी चलते रहे ।

हैनिमैन की जिदंगी का महत्वपूर्ण हिस्सा खानाबदोशों की जिदंगी की तरह से बीता । वियाना से हरमैन्स्ट्डट ( जो अब शीबू , रोमेनिया के नाम से जाना जाता है ) जहाँ डा. क्युंरीन ने हैनिमैन को मेडिकल की पढाई के बाद नौकरी  दिलाने मे मदद की । सन्‌ १७७९  मे   हैनिमैन ने मेडिकल की पढाई पूरी की और जर्मनी के कई छॊटे गाँवों मे प्रैक्टिस करनी आरम्भ की लेकिन पाँच साल की प्रैकिटस के बाद उन्होने उस समय के प्रचलित तरीकों से तंग आकर प्रैक्टिस छोड दी । उस समय की मेडिकल चिकित्सा पद्दति आज की तरह उन्नत  न थी । इसी दौरान १७८२ मे हैनिमैन का विवाह जोहाना लियोपोल्डाइन से हुआ जिससे बाद मे उनसे ११संताने हुयीं। सन्‌ १७८५ से १७८९ तक हैनिमैन की जीवका का मुख्य साधन अंग्रेजी से    जर्मनी मे अनुवाद और रसायन शास्त्र मे शोधकार्यों से रहा । इसी दौरान हैनीमैन ने आर्सेनिक पाइसिन्ग पर शोध पत्र  जारी किया  । सन्‌ १७८९ मे हैनिमैन एक बार फ़िर सपरिवार लिपिजिक की तरफ़ चल दिये । “मरकरी का  सिफ़लिस मे कार्य” हैनिमैन ने सालयूबल मरकरी के रोल को अपने नये शोध पत्र मे वर्णित किया ।

सन्‌ १७९१ , ४६ वर्षीय हैनिमैन के लिये महत्वपूर्ण रहा । उनके नये विचारों को नयॊ दिशा देने मे कलेन की मैटिया मेडिका का अनुवाद रहा । एक बार जब  डाक्‍टर कलेन की लिखी “कलेन्‍स मेटेरिया मेडिका” मे वर्णित कुनैन नाम की जडी के बारे मे अंगरेजी भाषा का अनुवाद जर्मन भाषा में कर रहे थे तब डा0 हैनिमेन का ध्‍यान डा0 कलेन के उस वर्णन की ओर गया, जहां कुनैन के बारे में कहा गया कि ‘’ यद्यपि कुनैन मलेरिया रोग को आरोग्य करती है, लेकिन यह स्वस्थ शरीर में मलेरिया जैसे लक्षण पैदा करती है।
हैनिमैन ने कलेन की यह बात पर तर्कपूर्वक विचार करके कुनैन जड़ी की थोड़ी थोड़ी मात्रा रोज खानीं शुरू कर दी। लगभग दो हफ्ते बाद इनके शरीर में मलेरिया जैसे लक्षण पैदा हुये। जड़ी खाना बन्द कर देनें के बाद मलेरिया रोग अपनें आप आरोग्य हो गया। इस प्रयोग को  हैनिमेन ने कई बार दोहराया और हर बार उनके शरीर में मलेरिया जैसे लक्षण पैदा हुये। क्विनीन जड़ी के इस प्रकार से किये गये प्रयोग का जिक्र डा0 हैनिमेन नें अपनें एक चिकित्‍सक मित्र से किया। इस मित्र चिकित्सक  नें भी  हैनिमेन के बताये अनुसार जड़ी का सेवन किया और उसे भी मलेरिया बुखार जैसे लक्षण पैदा हो गये।
हैनिमैन ने अपने प्रयोगों  को जारी रखा तथा  प्रत्येक जडी, खनिज , पशु उत्पादन, रासायनिक मिश्रण आदि का स्वयं पर प्रयोग किया। उन्होने  पाया कि दो तत्व समान लक्षण प्रदान नही करते हैं। प्रत्येक तत्व के अपने विशिष्ट लक्षण होते हैं। इसके अतिरिक्त लक्षणों को भौतिक अवस्था में परिष्कृत नही किया जा सकता है। प्रत्येक परीक्षित तत्व ने मस्तिष्क तथा शरीर की संवेदना को भी प्रभावित किया। उन्हे उस समय की चिकित्सा पद्घति ने विस्मित कर दिया तथा उन्होने रोग उपचार की एक पद्धति को विकसित किया जो सुरक्षित, सरल एवं प्रभावी थी। उनका विश्वास था कि मानव में रोगों से लडने की स्वतः क्षमता होती है तथा रोग मुक्त होने के लिए मानव के स्वयं के संघर्ष रोग लक्षणों को प्रतिबिम्बित करते हैं।

कुछ समय बाद उन्‍होंनें शरीर और मन में औषधियों द्वारा उत्‍पन्‍न किये गये लक्षणों, अनुभवो और प्रभावों को लिपिबद्ध करना शुरू किया। हैनिमेन की अति सूक्ष्म दृष्टि और ज्ञानेन्द्रियों नें यह निष्कर्ष निकाला कि और अधिक औषधियो को इसी तरह परीक्षण करके परखा जाय। हैनिमैन अब तक पहले की भाँति एलोपैथिक अर्थात स्थूल मात्रा मे ही दवाओं का प्रयोग करते थे । लेकिन उन्होने देखा कि रोग आरोग्य होने पर भी कुछ दिन बाद नये लक्षण उत्पन्न होते हैं । जैसे क्विनीन का सेवन करने पर ज्वर तो ठीक हो जाता है पर उसके बाद रोगी को रक्तहीनता , प्लीहा , यकृत , शोध , इत्यादि अनेक उपसर्ग प्रकट होकर रोगी को जर्जर बना डालते हैं । हैनिमैन ने दवा की मात्रा को घटाने का काम आरम्भ किया । इससे उन्होने निष्कर्ष निकाला कि दवा की परिमाण या मात्रा भले ही कम हो , आरोग्यदायिनी शक्ति पहले की तरह शरीर मे मौजूद रहती है और दवा के दुष्परिणाम भी पैदा नही  होते ।
इस प्रकार से किये गये परीक्षणों और अपने अनुभवों को डा0 हैनिमेन नें तत्कालीन मेडिकल पत्रिकाओं में ‘’ मेडिसिन आंफ एक्‍सपीरियन्‍सेस ’’ शीर्षक से लेख लिखकर प्रकाशित कराया । इसे होम्योपैथी के अवतरण का प्रारम्भिक स्वरुप कहा जा सकता है। होम्योपैथी शब्द यूनानी के दो शब्दों (Homois ) यानि सदृश (Similar ) और पैथोज ( pathos ) अर्थात रोग (suffering) से बना है । होम्योपैथी का अर्थ है सदृश रोग चिकित्सा । सदृश रोग चिकित्सा का सरल अर्थ है कि जो रोग लक्षण जिस औषध के सेवन से उत्पन्न होते हैं , उन्हीं लक्षणॊं की रोग मे सदृशता होने पर औषध द्वारा नष्ट किये जा सकते हैं । यह प्रकृति के सिद्दांत “ सम: समम शमयति ” यानि similia similbus curentur पर आधारित है । लेकिन हैनिमैन के शोध को तगडे विरोध का सामना करना पडा और हैनिमैन पर उनकॆ दवा बनाने के तरीको पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई ।

लेकिन सन्‌ १८०० मे हैनिमैन को अपने नये तरीको से सफ़लता मिलनी शुरु हुयी जब स्कारलैट फ़ीवर नाम के महामारी मे बेलोडोना का सफ़ल रोल पाया गया । एक बार फ़िर हैनिमैन अपने समकक्ष चिकित्सकों के तगडे विरोध का कारण बने ।

सन्‌  १८१० हैनिमैन ने आर्गेनान आफ़ मेडिसन का पहला संस्करण निकाला जो होम्योपैथी फ़िलोसफ़ी का महत्वपूर्ण स्तंभ था । १८१४ तक जाते-२ हैनिमैन ने अपने , अपने परिवार और कई मित्र चिकित्सकॊ जिनमे गौस , स्टैफ़, हर्ट्मैन और रुकर्ट प्रमुख थे ,  के ग्रुप पर दवाओं कॊ परीक्षण करना प्रारम्भ किया । इस समूह को हैनिमैन ने प्रूवर यूनियन का नाम दिया ।

सन्‌ १८१३ मे हैनिमैन को एक बार फ़िर सफ़लता हाथ लगी । जब नेपोलियन की सेना के जवानों के बीच टाइफ़स महामारी बन के उभरी । बहुत जल्द ही यह माहामारी जरमनी  मे भी आ गई , इस बार हैनिमैन को ब्रायोनिया और रस टाक्स से  सफ़लता हाथ लगी । सन्‌ १८२० मे  लिपिजक शहर की काउनसिल से हैनिमैन के कार्यों पर पूरी तरह से रोक लगा दी और सन १८२१ मे हैनिमैन को शहर से बाहर जाने का रास्ता दिखाया । हैनिमैन कोथन की तरफ़ चल दिये , यहाँ  के ड्यूक फ़रडनीनैन्ड जो हैनिमैन की दवा से लाभान्वित हो चुके थे , कोथन मे नये तरीको से प्रैकिटस और दवाओं को बनाने की इजाजत दी । कोथन मे हैनिमैन लगभग १२ साल तक रहे और यहाँ से होम्योपैथी को नया आधार मिला ।

इसी दौरान कोथन मे हैनिमैन  जटिल रोगों और मियाज्म पर किये कार्यों को सामने ले कर आये  । सन १८२८ मे हैनिमैन ने chronic diseases पर पहला संस्करण निकाला । हैनिमैन की विचारधारा के एक तरफ़ तो सहयोगी भी थे जिनमे बोनिगहसन , स्टाफ़ , हेरिग और गौस थे उधर दूसरी तरफ़ कुछ साथी चिकित्सक जिनमे डा. ट्रिन्क्स ने असहोयग का रास्ता अपनाते हुये उनके नये कार्यों को समय से प्रकाशन होने मे अडंगे लगाये ।

सन्‌ १८३१ मे होम्योपैथी को एक बार फ़िर से सफ़लता हाथ लगी , इस बार रुस के पशिचमी भाग से महामारी के रुप मे फ़ैलता  हुआ कालरा मे होम्योपैथिक औषधियों जिनमे कैम्फ़र , क्यूपरम और वेरटर्म ने न जाने कितने रोगियों की जान बचायी

कोथन मे हैनिमैन को डा. गोटफ़्रेट लेहमन का अभूतपूर्व सहयोग मिला ,। लेकिन लिपिजिक मे हैनिमैन नकली होम्योपैथों के रुप मे बढती भीड से काफ़ी खफ़ा हुये । सन्‌ १८३३ मे लिपिजिक मे पहला होम्योपैथिक अस्पताल डा. मोरिज मुलर के तत्वधान मे खुला ; सन्‌ १८३४ तक हैनिमैन बडे चाव से इस अस्पताल मे अपना सहयोग देते रहे । लेकिन सन्‌ १८३५ मे हैनिमैन के पैरिस के लिये रवाना होते ही जल्द ही अस्पताल पैसे की तंगी के कारण  १८४२ मे बन्द करना पडा ।

हैनिमैन  की जीवन के आखिरी क्षण कुछ रोमांन्टिक नावेल से कम नही थे । सन्‌ १८३४ मे ३२ वर्षीय  खूबसूरत मैरी मिलानी ८० साल के  हैनिमैन की जिंदगी मे आयी और  मात्र तीन महीने की मुलाकात के बाद उनकी जिंदगी के हमसफ़र हो गयी । मिलानी का रोल हैनिमैन की जिदगी मे बहुत ही विवादस्तमक रहा । उनका मूल  उद्देशय हैनिमैन के नयी चिकित्सा पद्दति मे था । इसके बाद की घटनाये इस बात का पुख्ता सबूत थी कि मिलानी किस उद्देशय से आयी थी ।

लेकिन यह भी सच था कि कई साल के संघर्ष, गरीबी और मुफ़लसफ़ी के बाद हैनिमैन ने अपनी खूबसूरत पत्नी के साथ फ़्रान्स की उच्च सोसयटिइयों मे जगह बनाई । जीवन के आखिरी सालों  मे मिलानी ने हैनिमैन को उनके पहली पत्नी से हुये  संतानों से दूर कर दिया और पैरिस मे हैनिमैन को अपने नये प्रयोगों को जारी रखने को कहा । फ़्रान्स मे हैनिमैन ने LM पोटेन्सी पर किये कार्यों को आखिरी जामा पहनाया । फ़्रान्स मे होम्योपैथी की शोहरत जर्मनी से अधिक फ़ैली , यहाँ‘ एक तो अंडगॆ कम थे और बाकी एलोपैथिक चिकित्सकॊ मे भी  नयी चिकित्सा पद्द्ति को अजमाने मे दिलचस्पी भी थी । आर्गेनान का छटा संस्करण फ़्रान्स मे ही हैनिमैन ने लिखा लेकिन मिलानी के रहते सन्‌ १८४३ मे हैनिमैन की मृत्यु के बाद भी उसका प्रकाशन न हो पाया । ८८ वर्षीय हैनिमैन सन्‌ १८४३ मे मृत्यु को प्राप्त हुये । लेकिन जाते-२ वह होम्योपैथिक जगत को आर्गेनान का छटा  बेशकीमती संस्करण देते गये । मिलानी के चलते यह महत्वपूर्ण संस्करण जिसमे हैनिमैन ने LM पोटेन्सी की जोरदार वकालत की , प्रकाशित न हो पाया । मिलानी इसके बदले मे प्रकाशक से मॊटी रकम चहती थी जिसका मोल भाव हैनिमैन के रहते न हो पाया । हैनिमैन की मृत्यु के कई साल के बाद सन्‌ १९२० मे इस संस्करण को विलियम बोरिक और सहयोगियों की मदद से प्रकाशित किया गया । लेकिन तब तक पूरे विश्व मे होम्योपैथिक चिकित्सकों के मध्य आर्गेनान का पाँचवा संस्करण लोकप्रिय हो चुका था और आज भी हम छटे संस्करण की और विशेष कर LM पोटेन्सी के लाभों से अन्जान ही रह गये ।

मिलानी का विवादों से भरा रोल हैनिमैन को दफ़नाने मे भी रहा । एक अनाम सी जगह मे हैनिमैन को उन्होने गोपनीय ढंग से दफ़नाया  । बाद मे विरोध के चलते हैनिमैन के पार्थिव शरीर को एक दूसरी कब्र मे दफ़नाया गया जिसके ऊपर वर्णित किया गया , ” Non inutilis vixi , ” I have not lived in a vain ” ” मेरी जिंदगी व्यर्थ  नही गयी ”

रसायन और मेडेसिन  मे ७० से ऊपर मौलिक कार्य, लगभग दो दर्जन से अधिक पुस्तकों का अंग्रेजी , फ़्रेन्च, लैटिन और ईटालियन से जर्मन भाषा मे अनुवाद , अपने दम और तमाम विरोधों के बीच पूरी पद्दति का बोझा उठाये हैनिमैन को कम कर के आँकना उनके साथ नाइन्साफ़ी होगी । और सब से से मुख्य बात वह मृदुभाषी थे , अपने मित्र स्टैफ़ को लिखे पत्र मे वह लिखते हैं , “ Be as sparing as possible with your praises . I do not like them . I feel that I am only an honest , straightforward man who does no more than his duty . ”

रात बहुत हो चुकी है , मुझे लगता है अब सो जाना चाहिये , कल फ़िर १० अप्रेल होगी , एक बार फ़िर हम किसी न किसी होम्योपैथिक कालेज के प्रांगण मे हैनिमैन को याद कर रहे होगें लेकिन होम्योपैथिक की शिक्षा प्रदान देने वाले संस्थान अपने आप से पूछ के देखें कि इतने सालों मे हम एक दूसरा हैनिमैन क्यूं नही बना पाये ? हमे इन्तजार है उस पल का , एक नये अवतरित होते हैनिमैन का और आर्गेनान के साँतवें संस्करण का भी …….
अलविदा …
शुभरात्रि ।

यह भी देखें :

A German Train Named Samuel Hahnemann

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The founder of homeopathy have been set many monuments, streets were named after him and stamps printed in his honor and now Hahnemann will be honored with the naming of a modern train

On August 27, 2015 has baptized a train the Elbe-Saale-Bahn in the name of Samuel Hahnemann- Father of Homoeopathy –  in Köthen (Anhalt) station. Central Association of Homeopathic Doctors paid tribute in their speeches the merits of Samuel Hahnemann.

Hahnemann laid the foundation that Köthen is today associated with homeopathy worldwide.

Thomas Webel , Minister of Transport of Saxony-Anhalt, Werner Sobetzko, President of the Municipal of Köthen, Henriette Hahn, German Railways, and Monika Kölsch, Chief Financial Officer of the German Central Association of Homeopathic Doctors (DZVhÄ) paid tribute in their speeches the merits of Samuel Hahnemann.

To appoint a train to Samuel Hahnemann, a wonderful idea.Hrdly a worthier namesake provides for a train that is traveling in the home of the founder of homeopathy.

The new double-deck coaches are air-conditioned and designed for a speed of up to 160 kilometers per hour. Its features include comfortable seats with plenty of leg room and tables, generous luggage racks and large panoramic windows. The vehicles are geared to the needs of mobility impaired traveler. They feature low entrances and spacious multi-purpose compartments with shelves for wheelchairs, bicycles or prams. Modern passenger information systems facilitate orientation.

This indeed is a great respect to true master of healing. Another reason for all homeopaths to celebrate. Looking forward to travel in the train during next visit to Germany.

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From here his teaching went out into the whole world. Both took place in Germany and around the world teaching his ardent supporters, who the pugnacious scholar Hahnemann set many monuments. 1851 one in Leipzig, 1897, another in Köthen, 1900 probably the most monumental statue in Washington, in 1906 a street in Leipzig was named after him in 1955 and 1996 stamps were printed in his honor and now he is 2015, with the baptism of a modern train Elbe Saale Bahn honored to Samuel Hahnemann. That pleases us as the German Central Association of Homeopathic Doctors course especially.

http://ilovehomoeopathy.com/a-train-named-samuel-hahnemann/

source : http://www.homeobook.com/a-german-train-named-samuel-hahnemann/

मेरी डायरी – ईथूजा साइनाएपियम (Aethusa Cyanapium )

क्या  एक रोगी की केस हिस्ट्री  एक कन्सलटेशन मे पूरी हो जाती है ?  बहुधा यह संभव नही हो पाता । पहली बार आया हुआ नया रोगी बहुधा उन लक्षणॊं को तरजीह  नही देता जिसको उसको लगता है कि उनकी महत्ता कम है । लेकिन २-३ कन्सलटेशन और रोगी के परिवार जनों के साथ वार्तालाप के बाद कै नये लक्षण प्रकाश मे आते हैं जिनसे आगे के केस को संभालना आसान हो जाता  है । हाँ , अलबत्ता उन रोगियों या उनके परिवार के लोगों मे जहाँ होम्योपैथिक की समझ होती है वहाँ परेशानी नही आती । यह चर्चा मै इस लिये कर रहा हूँ क्योंकि कई बार मुझे नये रोगियों के साथ इस तकलीफ़ से गुजरना पडा है । कुछ इसी तरह ६ वर्षीय सानिया के साथ हुआ । epileptic convulsions  या आक्षेपॊं  से पीडित सानिया का इलाज फ़रवरी २०१० से सितंबर २०१० के मध्य चला और इस के दौरान कई बार केस हिस्ट्री के आधार पर सही सिमिलमम को बदलना पडा और आखिरकार कुछ अप्रत्याशित से आक्षेपों मे कम इस्तेमाल होने वाली औषधि ईथूजा साइनाएपियम से वह पूरी तरह से स्वस्थ हुयी ।

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सम्पूर्ण केस को रखने  के पहले ईथूजा साइनाएपियम को स्मरण करना एक बार उचित होगा ।  यूरोप मे पायी जानी वाली एक साधारण सी घास  फ़ूल्स पार्सली ( fools parsley ) से यह औषधि तैयार की जाती है । नन्हें-२  बच्चॊ की यह सच्ची मित्र है क्योंकि यह उनकी बहुत सी समस्याओं से छुट्कारा दिलाती है विशेषकर दूध की उल्टी करने वाले शिशुऒं मे । शिशु जैसे ही दूध पीता है वह या तो वमन से भारी मात्रा मे निकल जाता है और अगर कुछ देर के लिये वह पॆट मे ठहर गया तो वमन जैसे जमे हुये दही के रुप मे होती है । प्यास न के बराबर और निद्रा का आवेश बहुत अधिक इसके प्रधान लक्षण हैं ।

aethusa intolerance of milk

इसके अलावा ईथूजा  ऐसे आक्षेपों मे भी उपयोगी रहती है निनमे अगूंठॆ भिंच जाते हैं और आँखे नीचे झुक जाती हैं । रोगी का हाव भाव एक खास पहचान लिये होता है । उसकी आखॆं धँसी होती हैं तथा नथूनॊ से मुख के कोणॊं तक खिंची दो स्पष्ट रेखाओं और ऊपरी ओंठ से घरे भाग मे मोती जैसी सफ़ेदी रहती है । इसे नासिका रेखायें  कहते हैं ।

 aethusa dullness during examination ईथूजा का प्रयोग ध्यान केंद्रित करने की शक्ति के अभाव मे भी रहता है और यही कारण है कि यह औषधि अकसर उन शिक्षार्थियों मे भी प्रयोग की जाती है जहाँ अवससन्नता , ध्यान केद्रितं करने का अभाव और एक खास तरह की गमगीनता रहती है ।

 love for animals लेकिन एक और लक्षण  भी है जिसकी नजर मेरी इस केस को लेते और repertorise करते हुये पडी । और वह है जानवरॊं से अथाह प्रेम । और यही इस रोगी कॊ ठीक करने प्रधान लक्षण साबित हुआ |

सानिया को जब उसके पिता दिखाने के लिये  पहली बार लाये तो वह अन्य बच्चॊ से अलग सी दिखी । अगस्त २००९ मे पहला आक्षेप पडा और उसके बाद यह सिलसिला लगातार ३-४ दिनों के अन्तराल पर चलता रहा । इस दौरान ऐलोपैथिक इलाज का सहारा लिया लेकिन आक्षेपों मे कमी न आयी । अन्तर अवशय बढ गया लेकिन इसके बावजूद आक्षेप  पडते रहे । ५ भाई बहनॊ मे ४ नम्बर मे यह लडकी का चेहरा और  स्वभाव कुछ अजीब सा दिखा । चेहरा तमतमाया हुआ जैसे लडने मे मूड मे हो , सन्तुष्ट किसी से भी नही , अकेले रहना पसन्द और अन्य भाई बहनों से पटरी बिल्कुल भी नही । ऐसा भी नही था कि परिवार मे उसके साथ कोई भेद भाव रखा जाता रहा हो । उसके पिता के अनुसार रोज नई –२ तरह की डिमांड , कभी नये मोजों की फ़रमाईश और कभी मुर्गी के बच्चॊ की । एक डिमाडं पूरी की जाती तो नयॊ डिमाडं खडी हो जाती । लडाई झगडा पडॊसियों के बच्चॊ से तो था ही लेकिन अपने भाई बहनों से भी पटरी नही खाती थी । घर मे किसी का समझाना तो मानो आफ़त सी खडी कर देता । और कम से कम मेरे किसी भी सवाल का जबाब उसने कभी भी ठीक से नही दिया ।

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रिपर्टर्जेशन के आधार पर Chamomilla ,  Staphysagria , Sepia , Carcinocin और Cina मे से कैमोमिला सबसे उपयुक्त औषधि के रुप मे ऊभरी । अत: पहला प्रिसक्र्पशन कैमोमिला २०० और pl  से किया गया । लेकिन १० दिन की समाप्ति पर न तो मानसिक लक्षणॊं मे और न ही आक्षेपों मे अपेक्षित परिणाम दिखाई दिये । आक्षेप पूर्वत: की तरह ४ दिन पर पडॆ । दूसरे सप्ताह की समाप्ति पर कैमोमिला के साथ Oenanthus crocata  Q और Artemesia vulgaris Q को जोडा गया । इस बार आक्षेप पहले की तुलना मे कम रहे लेकिन मानसिक लक्षण वैसे ही रहे |  इस १५ दिन के दौरान आक्षेप घट कर २ बार पर आ गये । यह क्रम अप्रैल मध्य तक चला , कभी आक्षेप कम और कभी अधिक ।

अप्रेल के महीने के अंत मे मुझे अचानक उसके घर पर उसकी माँ को देखने जाना पडा . जब मै उसकी माँ को देख कर कमरे से बाहर निकल रहा था तो मेरी नजर उस लडकी पर पडी . दरवाजे  के पास बैठी वह  दो बिल्ली के बच्चों को अपनी गोदी मे लेकर  सुलाने की कोशिश कर रही थी । मै एक क्षण  के लिये रुका और  एक  पल उसको  देखता रहा . कम से कम इतनी अवधि मे उसके चेहरे पर इतना भोलापन और सौम्यता कभी न देखी । वह बिल्कुल अबोध बच्चॊ की तरह शांत नजर आ रही थी । मुझे देखकर वह मुस्कराई और धीरे से मुझे सलाम किया । मै अपलक उसको देखता रहा और  वापस पल्टा और उसकी माँ से उसके इस व्यवहार के बारे मे पूछ्ने लगा । ’यही इसका स्वभाव है ,  कबूतरॊं , बिल्ली और अन्य जानवरों  के बच्चॊ को छॊडकर इसकी निभती किसी से नही  है ’, उसकी माँ बोली

मैं क्लीनिक वापस आया और सिन्थीसस रिपर्ट्री मे love for animals रुब्रिक को तलाशने लगा ।

MIND – ANIMALS – love for animals
aeth. ambr. bar-c. bufo calc. calc-p. carc. caust. lac-del. lac-f. lac-leo. limest-b. med. nat-m. nuph. phos. psor. puls. sulph. tarent.
MIND – ANIMALS – love for animals – talking to animals
aeth.

ईथूजा हर लक्षण को तो नही लेकिन  प्रमुखता से दिखने वाले rare, striking  और  characteristic लक्षणॊं को कवर कर रही थी  , वह आक्षेपों और विशेष मानसिक लक्षण love for animals को कवर कर रही थी लेकिन क्या ईथूजा वाकई मे उसकी दवा थी , थोडी सी और तलाश मे ईथूजा के मानसिक लक्षणॊं पर वृहद लेख Alexander Gothe and Julia Drinnenberg की Homeopathic Remedy Pictures में मिला । एक नजर :

    • patients requiring Aehusa are often loners who live a withdrawnlife , together with one or several animals.
    • This reclusion into solitude develops slowly, fuelled by personal dissapontments and a feeling of not being able to understand the society with its manifold ideas , opinions and trends . They feel different.
    • they find it hard to build up contacts and relationship with other people , to communicate with or show an intrest in others.
    • These patients have their own intense thoughts and feelings, but they timidily keep them to themselves because they think that no one understands them or wants to know.
    • Thus their  emotions are bottled up; they are unable to express them, and this unconscious conflict results in these people withdrawing further and further.
    • Eventually they avoid people . they become outsiders, compensate by acquiring many animals and dedicate their whole life to them.
    • In this way they construct a substitute world in which the company and affection of the animals render any need for contact with human beings superfluous.
    • Through their sensitive communication with the animals , these patients release their pent up emotions and achieve the kind of pleasure which they were not able to find with humans.
    • If they do not suceed in building this kind of community in order to relax emotionally , their emotional affections begin to emerge in the form of soliloquies or illnesses.

अप्रेल २०१० के मध्य मे चल रहे औषधियों को हटा कर ईथूजा १००० और pl दी गई और परिणाम अविस्मर्णीय रहे । मई तक आते –२ आक्षेप लगभग  बन्द हो गये और मुख्य बात कि रोगी के व्यवहार मे असाधारण परिवर्तन दिखाई दिया , अब तो न वह आक्रामक थी , न ही उसकी कोई अनावशयक  डिमाडं थी । अक्टूबर २०१० तक ईथूजा १००० को २ बार रिपीट करना पडा । सानिया आज पूर्ण्तया स्वस्थ है । अक्टुबर मे उसका इलाज बन्द कर दिया और उसके पिता को खासकर ताकीद दी कि अगर कोई व्यवहार मे कोई  परिवर्तन दिखे तो फ़िर तुरन्त मिले ।

मानसिक लक्षणॊं का आधार होम्योपैथिक प्रेसक्राइबिग  का प्रमुख घटक है ।

आर्गेर्नान आफ़ मेडिसेन मे हैनिमैन ने लिखते  हैं :

§ 5

HAHNEMANN Useful to the physician in assisting him to cure are the particulars of the most probable exciting cause of the acute disease, as also the most significant points in the whole history of the chronic disease, to enable him to discover its fundamental cause, which is generally due to a chronic miasm. In these investigations, the ascertainable physical constitution of the patient (especially when the disease is chronic), his moral and intellectual character, his occupation, mode of living and habits, his social and domestic relations, his age, sexual function, etc., are to be taken into consideration.

सूत्र ५-रोग के मूल कारण की खोज

रोग नया हो या पुराना चिकित्सक को बीमारी के मूल कारणॊं की खोज करना नितान्त आवशयक  है । नये रोगों मे रोग उत्पन्न करने और रोग को उत्तेजना देने वाले कारणॊं पर तथा पुरानी बीमारियों मे रोग के इतिहास पर चिकित्सकों को बहुत अधीरता और सावधानी से विचार करना चाहिये क्योंकि ऐसा करने पर ही रोग के मूल कारण का पता लग सकता है । वस्तुत: चिकित्सक को रोगी की शरीर रचना और प्रकृति – गठन , शक्ति , स्वभाव , आचरण , च्यवसाय , रहन सहन , आदतें , समाजिक तथा परिवारिक संबन्ध , आयु, ज्ञान्निद्र्यों के व्यवाहार पर पूरी तरह से विचार कर लेना चाहिये ।

    § 213

    We shall, therefore, never be able to cure conformably to nature – that is to say, homoeopathically – if we do not, in every case of disease, even in such as are acute, observe, along with the other symptoms, those relating to the changes in the state of the mind and disposition, and if we do not select, for the patient’s relief, from among the medicines a disease-force which, in addition to the similarity of its other symptoms to those of the disease, is also capable of producing a similar state of the disposition and mind.1

    1 Thus aconite will seldom or never effect a rapid or permanent cure in a patient of a quiet, calm, equable disposition; and just as little will nux vomica be serviceable where the disposition is mild and phlegmatic, pulsatilla where it is happy, gay and obstinate, or ignatia where it is imperturbable and disposed neither to be frightened nor vexed.

सूत्र २१३ – रोग के इलाज के लिये मानसिक दशा का ज्ञान अविवार्य

इस तरह , यह बात स्पष्ट है कि हम किसी भी रोग का प्राकृतिक ढंग से सफ़ल इलाज उस समय तक नही कर सकते जब तक कि हम प्रत्येक रोग , यहां तक नये रोगों मे भी  , अन्य लक्षणॊं कॆ अलावा रोगी के स्वभाव और मानसिक दशा मे होने वाले परिवर्तन पर पूरी नजर नही रखते । यादि हम रोगी को आराम पहुंचाने के लिये ऐसी दवा नही चुनते जो रोग के सभी लक्षण  के साथ उसकी मानसिक अवस्था या स्वभाव पैदा करनेच मे समर्थ है तो रोग को नष्ट करने मे सफ़ल नही हो सकते ।

सूत्र २१३ का नोट कहता है :

ऐसा रोगी जो धीर और शांत स्वभाव का है उसमे ऐकोनाईट और नक्स कामयाब नही हो सकती , इसी तरह एक खुशमिजाज नारी मे पल्साटिला या धैर्यवान नारी मे इग्नेशिया  का रोल नगणय ही  रहता है क्योंकि यह रोग और औषधि की स्वभाव से मेल नही खाते ।

pkt 2

Blog Author ( ब्लाग रचयिता ) : डा. प्रभात टन्डन
जन्म भूंमि और कर्म भूमि लखनऊ !! वर्ष १९८६ में नेशनल होम्योपैथिक कालेज , लखनऊ से G.H.M.S. किया , और सन १९८६ से ही इन्टर्नशिप के दौरान से ही प्रैक्टिस मे संलग्न .. वर्ष १९९४ मे P.H.M.S. join करते-२ मन बदला और तब से प्राइवेट प्रैक्टिस मे ………. आगे देखें

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सेन्टिसमल स्केल से LM स्केल तक का सफ़र

lm

पिछ्ले ३ महीनों मे जो महत्वपूर्ण परिवर्तन क्लीनिकल प्रैक्टिस  मे किये उसमे आर्गेनान के ६वें संस्करण का अनुकरण करते  हुये LM पोटेन्सी को अपनाना था । हाँलाकि इसका मन तो पिछ्ले साल ही बना लिया था  लेकिन लखनऊ मे LM दवाओं की उपलब्धता न के बराबर है , इस साल २ आर्डर SBL Limited  को भेजे लेकिन उनमे से एक काफ़ी लम्बे अर्से बाद प्राप्त हुआ । गत एक महीने में LM पोटेन्सी से मिल रहे परिणाम मुझे आशचर्यचकित करते रहे हैं । बिल्कुल साफ़ शब्दों मे कहना चाहूगाँ कि यह परिणाम सेन्टिसमल स्केल से अलग , त्वरित और बगैर किसी रोग मे बढोतरी ( Homeopathic aggravation ) किये थे । हाँलाकि शुरुआत इतनी सहज न थी , इतने लम्बे समय से सेन्टिसमल का साथ छोड्ना भी आसान न था । रोगियों के डेटाबेस को एक बार फ़िर से खंगालना पडा और  आर्गेनान आफ़ मेडिसन के छ्वाँ संस्करण को भी एक बार फ़िर से पढने की आवशयकता  पड गई  । हाँलाकि आज से २५ साल पहले तो आर्गेनान सिर्फ़ पास होने के लिये ही  पढी थी Smile। उन जटिल रोगियों मे जहाँ सेन्टिसमल पोटेन्सी की दवायें सही चुनाव होने के बावजूद काम नही कर रही थी या काम करने के बाद उनका action रुक सा गया था , उनमे बगैर दवा बदले LM को प्रयोग  किया , और  आजकल  जब इन महीनों मे वाइरल इन्फ़ेकशन आदि एक्यूट रोग बढ जाते हैं उनमें भी  आरम्भ मे करीब ३०% रोगियों और अब इधर ३ सप्ताह के बाद लगभग ६०% रोगियों में    LM   का प्रयोग कर रहा हूँ  और परिणाम आशचर्य़ चकित करने वाले रहे । जटिल रोगों ( chronic cases ) मे रुकी हुई progress को दोबारा और बगैर लक्षणॊं मे बढोतरी हुये देखा और वहीं एक्यूट रोगों मे इतनी त्वरित  प्रक्रिया  पहले कभी न देखी ।   फ़िलहाल मै ०/३ से ०/५ तक की पोटेन्सी प्रयोग कर रहा हूँ । आगे आने वाली कई पोस्ट LM  से मिल रहे परिणामों से संबधित रहेगीं ।

आखिर LM पोटेन्सी ही क्यूँ :

इसके लिये आर्गेनान के ५ वें  और ६ वे संस्करण को देखना पडेगा । हैनिमैन ने अपने जीवन काल मे होम्योपैथी चिकित्सा पद्दित मे निरंतर बदलाव किये , उनमे से एक महत्वपूर्ण बदलाव उनके जीवन के अंतिम दस वर्षॊं  मे था जिसमे उन्होंने होम्योपैथिक दवाऒं की मात्रा को और अधिक तनु और डायनामायिज किया और उसके परिणाम उनको बिल्कुल अलग दिखे । हैनिमैन इस बात से अनभिज्ञ नही थे कि अनेक संवेदनशील  रोगियों मे होम्योपैथिक औषधियाँ रोग के लक्षणॊं को बढा देती है । और उसके बाद शुरु होती है एक अंतहीन इंतजार की प्रक्रिया । भले ही होम्योपैथिक aggravation को होम्योपैथ दवा की क्रिया का एक हिस्सा मानें लेकिन कष्ट मे घिरा रोगी चिकित्सक के कहे अनुसार कम बल्कि  अधिकतर केस मे वह ऐलोपैथिक दवा लेकर होम्योपैथी मे वापस न आने की कसम खा लेता है ।

४ और ५ वें संस्करण  को अपनाने का सबसे अधिक नुकसान होम्योपैथिक प्रैक्टिस मे आये नौसिखियों और शौकिया लोगों ने किया और इन शैकिया होम्योपैथिक करने वालों को मुझे याद है कि नेशनल होम्योपैथिक कालेज ,  लखनऊ  के भूतपूर्व प्राचार्य प्रो. डां जी. चौधरी ने  बौक्सोपैथ ’ Boxopath ‘ की संज्ञा दे डाली   Secret telling smile  । अंधाधुन पोटेन्सी के साथ खिलवाड एक आम बात सी हो गई है ।   केन्ट “ Lesser Writings “ मे लिखते हैं

“ I should rather be in a room with a dozen people slashing with razors than in the hands of an ignorant prescriber of high potencies . They are means of tremendous harm , as well as of tremendous good . “ Kent -Lesser writings

सेन्टिसमल स्केल मे जहाँ दवा का अनुपात १:१०० का रहता है वहीं LM मे १: ५०००० का और हर step  पर succussions   १०० । ( सेन्टीसमल मे १० succussions ) नीचे दिये चार्ट से समझें ) औषधि को इस लेवल तक तनु किये जाने से जहाँ औषधि की पावर कई गुना बढ जाती है वहीं succussions की वजह से दवा से रोग की बढॊतरी की संभावना न के बराबर रह जाती है ।

LM पोटॆन्सी की उपलब्धता ०/१ से ०/३० तक  रहती है वहीं सेन्टीसमल मे पोटेन्सी  की  उपलब्धता  ३०-२००-१०००-१००००-५०००००-CM मे रहती है ।

Homeopathic Pharmacy Terminology

Courtesy : Valerie Sadovsky

Mother tincture

Alcohol extract of a soluble substance not potentized. Usually stored in 87% to 100% alcohol

Liquid stock bottle

Potentized remedy in solution (i.e. Sulphur 12c) preserved with 87% – 100% alcohol

Remedy solution bottle

1 pellet (#10) poppy seed size, of a lm potency or c potency is put in 4oz. of water + 2 to 3 teaspoons of 90-95% ethyl alcohol (Everclear). Succuss this bottle 8-10 times before taking out each dose (1-3 teaspoons) to put in the dosage cup

Dosage cup

A 4oz. cup of distilled water with 1-3 teaspoons from the remedy solution bottle. Stir vigorously, take 1 teaspoon as 1 dose

Succussion

To hit against a resilient object such as a leather bound book or the palm of your hand

Triturate

Grind in a mortar and pestle

Potency Symbols

LM
1:50,000 (50 millesimal scale); also written as LM/1, LM/2, 0/1, 0/2, or Q1, Q2, etc.
X
1:10 (decimal scale); also written as D in Europe
C
1:100 (centesimal scale); also written as CH in Europe
1M
1,000 C (centesimal scale)
10M
10,000 C (centesimal scale)
50M
50,000 C (centesimal scale)
CM
100,000 C (centesimal scale)
How to Make a 3C Trituration

1. 1 grain of plant, mineral, metal, etc., + 100 grains of milk sugar and triturated for 1 hour = 1C potency (trituration is done in three stages of twenty minutes each; see The Organon, paragraph 270 and footnote #150)

2. 1 grain of 1C + 100 grains of milk sugar + triturated for 1 hour = 2C potency

3. 1 grain of 2C + 100 grains of milk sugar + triturated for 1 hour = 3C potency

How to Make an LM Potency from a 3C Trituration

1. 1 grain of 3C potency diluted in 500 drops (100 drops alcohol and 400 drops water) = LM/0 (see The Organon, paragraph 270)

2. 1 drop of LM/0 + 100 drops of alcohol + 100 succussions = LM/1 potency

1 drop of LM/1 is put on 500 granules of milk sugar (#10 pellets)

3. 1 granule of LM/1 dissoved in one drop of water + 100 drops of alcohol + 100 succussions = LM/2 potency

  1 drop of LM/2 is put on 500 granules of milk sugar (#10 pellets)

4. 1 granule of LM/2 dissolved in one drop of water + 100 drops of alcohol + 100 succussions = LM/3 potency (continue this process up to the LM/30 potency)

“Mass Production” Method

Supplies:
Poppy seed size pellets of sac lac.
Distilled water.
Everclear.
“Wet” measurement vial (W-MV) : 1 dram vial with 1 drop of water and 100 drops of Everclear.
“Dry” measurement vial (D-MV): 1 dram vial with 500 poppy seed size pellets of sac lac.
Unbleached coffee filter.
Pipette.
Empty clear 1 dram vial.
Empty amber 1 dram vial.
Sticky labels.
Method:
1. Put 1 pellet of LMn in a clear 1 dram vial. Using the pipette, add 1 drop of water and let it dissolve.
2. Place this vial side to side to the W-MV and fill it in with Everclear to the level of W-MV.
3. Succuss 100 times.
4. Place an empty clear 1 dram vial side to side to the D-MV, fill it in with sac lac pellets to the level of D-MV.
5. Spread the pellets on the coffee filter and pour the prepared solution over them. Let dry for 1 day.
Put into an amber vial, cork and label as LMn+1
To Dispense to a Patient:
Mix 4 oz of distilled water with 3 tea spoons of Everclear. Fill 2/3 of 6 oz amber bottle with this mixture. Add 1 pellet of LM.
Before each dose, the patient should succuss the bottle, put 1 tea spoon in
4 oz. of pure water, stir and take one tea spoon out of it.

फ़िर क्या कारण हैं  कि LM के प्रयोगकर्ता कम दिखाई पडते हैं :

LM पोटेन्सी आर्गेनान के ६ वें संस्करण मे आई जिसको हैनिमैन ने १८४२ मे अपनी मृत्यु से पहले के  दस वर्ष के दौरान  पूरा किया । कई होम्योपैथ मानते हैं कि आर्गेनान के ५ और ६ वें संस्करण मे कुछ खास फ़र्क नही है , लेकिन वह गलत हैं । आर्गेनान का यह अन्तिम संस्करण हैनिमैन की बदलती और उच्च सोच का माध्यम रहा । इस संस्करण मे ६० नये aphorisms डाले गये,  ४९ आंशिक एडीशंस किये गये और ५ वें संस्करण के ४० aphorisms को हटा दिया गया । लेकिन अफ़सोस हैनिमैन प्रकाशक से मनमुटाव के कारण   उसको उस वर्ष प्रकाशित न कर सके और  अगले ही वर्ष उनका देहांत हो गया । हैनिमैन के दूसरी पत्नी मैलेनी ने तमाम वादों के बाद भी इस छ वे संस्करण को प्रकाशित होने न दिया । विस्तृत मे देखें यहाँ । वह एक मोटी रकम चाहती थी और कोई प्रकाशक उनको देने को तैयार न हुआ और आर्गेनान का यह संस्करण उनके जीते जी भी प्रकाशित न हो पाया । औरॊ की तरह  हैनिमैन के पौत्र सुस हैनिमैन ने भी “ छ  वें संस्करण “ को प्रकाशित करवाना चाहा लेकिन मेलेनी ने उनको ऐसा न करने के लिये आगाह किया ।

“I beg to inform you that the exclusive rights to publish the 6th edition belongs solely to me and I possess th 6th edition of the Organon written by my late husband’s hand .Dr Suss’swork can have no claim whatever to be genunine . “

सन १८७८ मे मेलेनी की मृत्यु के बाद  यह हस्तलिपि जर्मनी मे सुरक्षित रही और सन १९२० मे यह पहली बार  डां विलियम बोरिक के अथक प्रयास से प्रकाशित हुई । सन १९२१ मे डा विलियम बोरिक ने ही  इसका अंग्रेजी अनुवाद भी  प्रकाशित किया । लेकिन तब तक होम्योपैथी चिकित्सा पद्दित कई देशॊं मे अपनी अच्छी पैठ बना चुकी थी और इस दौरान के चिकित्सक   ४  संस्करण के “ wait and watch “ तरीकों पर चलना शुरु हो चुके थे ।

छ्वे संस्करण के दिशानिर्देश को पूरी तरह से १९५० मे फ़्रांस के डां चार्लस फ़ौहद ने जारी किया | सन १९५७ में जेनेवा के  डा पियेर शिडिमिड ने एक पुस्तक प्रकाशित की , ’ Hidden Treasures of the 6th Edition of the Organon ’ । भारत मे LM को लाने का श्रेय सन १९५७ मे डां चौधरी के परिवार को रहा और आज भी विशव मे सबसे अधिक LM प्रयोगकर्ता भारत मे ही हैं । लेकिन इसके बावजूद  केन्ट के तरीकॊं पर चलने वालों की संख्या अपने देश मे कही अधिक है क्योंकि अधिकतर होम्योपैथी चिकित्सा संस्थानों  की ओ.पी.डी. मे आज भी पुराने संस्करण के तरीकों को ही  अपनाया जाता है ।

दूसरा एक और सबसे बडा कारण होम्योपैथिक दवा निर्माताओं का  होम्योपैथिक के मूल स्वरुप को बढावा न देना रहा । व्यवासायिक दौर मे प्रवेश कर  रही  होम्योपैथी  मे सबसे बडी  दिक्कत पेटेन्ट और काम्बीनेशन को बढावा देना भी है । बेतुके काम्बीनेशन से लैस अधिकतर निर्माता अपने पेटेन्ट प्रोडक्ट पर तो ध्यान देते हैं लेकिन मूल स्वरुप को नही । आखिर उनकी कमाई तो पेटेन्ट से ही होती है Angry smile

लक्षणॊं मे बढोतरी ( Aggravations ) और आर्गेनान के छ वें संस्करण मे  हैनिमैन का  नजरिया  :

लेकिन छ वाँ संस्करण कई मायने मे अलग था ।  ५ वें संस्करण को अतीत मानते हुये  हैनिमैन ने aphorism 246 के foot note मे लिखा :

footnote 132 of § 246 Sixth Edition

HAHNEMANN

What I said in the fifth edition of the organon, in a long note to this paragraph in order to prevent these undesirable reactions of the vital energy, was all the experience I then had justified. But during the last four or five years, however, all these difficulties are wholly solved by my new altered but perfected method. The same carefully selected medicine may now be given daily and for months, if necessary in this way, namely, after the lower degree of potency has been used for one or two weeks in the treatment of chronic disease, advance is made in the same way to higher degrees, (beginning according to the new dynamization method, taught herewith with the use of the lowest degrees).

footnote 156 § 270 Sixth Edition

HAHNEMANN

…..by means of this method of dynamization (the preparations thus produced, I have found after many laborious experiments and counter-experiments, to be the most powerful and at the same time mildest in action, i.e., as the most perfected) the material part of the medicine is lessened with each degree of dynamization 50,000 times yet incredibly increased in power…..

डेसीमल और सेन्टिसमल पोटेन्सी के साथ LM पोटेन्सी  किसी भी होम्योपैथिक चिकित्सक की प्रैक्टिस का उपयोगी हिस्सा हो सकती  है । आवशयकता है समयानुसार उनको विभिन्न रोगों मे प्रयोग करने का और परिणाम निकालने का ….

संबधित पोस्ट :

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जन्म भूंमि और कर्म भूमि लखनऊ !! वर्ष १९८६ में नेशनल होम्योपैथिक कालेज , लखनऊ से G.H.M.S. किया , और सन १९८६ से ही इन्टर्नशिप के दौरान से ही प्रैक्टिस मे संलग्न .. वर्ष १९९४ मे P.H.M.S. join करते-२ मन बदला और तब से प्राइवेट प्रैक्टिस मे ………. आगे देखें

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डॉ. क्रिश्चियन फ्राइडरिक सैमुअल हैनिमेन- जन्म दिवस पर विशेष ( A Tribute to Dr Samuel Hahnemann )

इतिहास के चन्द पन्नों को समटेने की कोशिश करते हुये आँखे नम सी हो जाती हैं । मेरे सामने ब्रैडफ़ोर्ड की ” लाइफ़ एन्ड लेटर आफ़ हैनिमैन ” और हैल की ” लाइफ़ एन्ड वर्कस आफ़ हैनिमैन ” के उडते हुये पन्ने मानों वक्त को एक बार फ़िर समेट सा  रहे हैं । यह पुस्तकें मैने शौकिया अपने कालेज के दिनों मे ली थी लेकिन कभी भी पढने की फ़ुर्सत न मिली  । पिछ्ले साल जब hpathy.com के डा. मनीष भाटिया की भावपूर्ण जर्मनी  यात्रा को पढने का अवसर मिला तब इस लेख को लिखने की सोची थी लेकिन फ़िर आलसवश टल गया । १० अप्रेल हैनिमैन की जन्म तिथि के रुप मे जाना जाता है । मुझे नही लगता कि किसी भी अन्य पद्दति मे चिकित्सक अपने सिस्टम के संस्थापकों से इतना नही जुडॆ  हैं जितना कि एक होम्योपैथ । बहुत से कारण हैं लेकिन सबसे बडा कारण है होम्योपैथी का विषम परिस्थियों मे उद्‌भव । हैनिमैन अपनी जिंदगी मे वह सब कुछ बहुत आसानी से पा सकते थे अगर वह वक्त के साथ समझौता कर लेते लेकिन उन्होने नही किया । किसी ने सही कहा है , “कीर्तियस्य स जीवति “ – आज कौन कह सकता है कि हैनिमैन इस जगत मे नही हैं ।

डॉ. क्रिश्चियन फ्राइडरिक सैमुअल हैनिमेन  का जन्म सन्‌ १७५५ ई. की १० अप्रेल को जर्मनी मे सेक्सनी प्रदेश के  माइसेन नामक छॊटे से गाँव मे हुआ था  । एक बेहद गरीब परिवार मे जन्मे हैनिमैन का बचपन अभावों और गरीबी  मे बीता । आपके पिता एक पोर्सीलीन पेन्टर थे ,  सीमित संस्धानों  को देखते हुये  हुये वह चाहते थे कि उनका पुत्र भी इस व्यवसायाय मे रुचि दिखाये । लेकिन अनेक प्रतिभाओं के धनी हैनिमैन को यह मन्जूर नही था । अनेक भाषाओं के ज्ञाता हैनिमैन ने जीवन संघर्ष की शुरुआत  रसायन और अन्य  ग्रन्थों के अंग्रेजी भाषा से जर्मन मे अनुवाद से प्रारम्म्भ  की । सन्‌ १७७५ मे हैनिमैन लिपिजिक मेडिकल की पढाई के लिये निकल पडे , लिपेजेक मेडिकल कालेज मे हैनिमैन को उनके प्रोफ़ेसर डा. बर्ग्रैथ का भरपूर साथ मिला जिसके कारण उनकी पढाई के कई साल पैसों की तंगी के बिना भी चलते रहे ।

हैनिमैन की जिदंगी का महत्वपूर्ण हिस्सा खानाबदोशों की जिदंगी की तरह से बीता । वियाना से हरमैन्स्ट्डट ( जो अब शीबू , रोमेनिया के नाम से जाना जाता है ) जहाँ डा. क्युंरीन ने हैनिमैन को मेडिकल की पढाई के बाद नौकरी  दिलाने मे मदद की । सन्‌ १७७९  मे   हैनिमैन ने मेडिकल की पढाई पूरी की और जर्मनी के कई छॊटे गाँवों मे प्रैक्टिस करनी आरम्भ की लेकिन पाँच साल की प्रैकिटस के बाद उन्होने उस समय के प्रचलित तरीकों से तंग आकर प्रैक्टिस छोड दी । उस समय की मेडिकल चिकित्सा पद्दति आज की तरह उन्नत  न थी । इसी दौरान १७८२ मे हैनिमैन का विवाह जोहाना लियोपोल्डाइन से हुआ जिससे बाद मे उनसे ११संताने हुयीं। सन्‌ १७८५ से १७८९ तक हैनिमैन की जीवका का मुख्य साधन अंग्रेजी से    जर्मनी मे अनुवाद और रसायन शास्त्र मे शोधकार्यों से रहा । इसी दौरान हैनीमैन ने आर्सेनिक पाइसिन्ग पर शोध पत्र  जारी किया  । सन्‌ १७८९ मे हैनिमैन एक बार फ़िर सपरिवार लिपिजिक की तरफ़ चल दिये । “मरकरी का  सिफ़लिस मे कार्य” हैनिमैन ने सालयूबल मरकरी के रोल को अपने नये शोध पत्र मे वर्णित किया ।

सन्‌ १७९१ , ४६ वर्षीय हैनिमैन के लिये महत्वपूर्ण रहा । उनके नये विचारों को नयॊ दिशा देने मे कलेन की मैटिया मेडिका का अनुवाद रहा । एक बार जब  डाक्‍टर कलेन की लिखी “कलेन्‍स मेटेरिया मेडिका” मे वर्णित कुनैन नाम की जडी के बारे मे अंगरेजी भाषा का अनुवाद जर्मन भाषा में कर रहे थे तब डा0 हैनिमेन का ध्‍यान डा0 कलेन के उस वर्णन की ओर गया, जहां कुनैन के बारे में कहा गया कि ‘’ यद्यपि कुनैन मलेरिया रोग को आरोग्य करती है, लेकिन यह स्वस्थ शरीर में मलेरिया जैसे लक्षण पैदा करती है।
हैनिमैन ने कलेन की यह बात पर तर्कपूर्वक विचार करके कुनैन जड़ी की थोड़ी थोड़ी मात्रा रोज खानीं शुरू कर दी। लगभग दो हफ्ते बाद इनके शरीर में मलेरिया जैसे लक्षण पैदा हुये। जड़ी खाना बन्द कर देनें के बाद मलेरिया रोग अपनें आप आरोग्य हो गया। इस प्रयोग को  हैनिमेन ने कई बार दोहराया और हर बार उनके शरीर में मलेरिया जैसे लक्षण पैदा हुये। क्विनीन जड़ी के इस प्रकार से किये गये प्रयोग का जिक्र डा0 हैनिमेन नें अपनें एक चिकित्‍सक मित्र से किया। इस मित्र चिकित्सक  नें भी  हैनिमेन के बताये अनुसार जड़ी का सेवन किया और उसे भी मलेरिया बुखार जैसे लक्षण पैदा हो गये।
हैनिमैन ने अपने प्रयोगों  को जारी रखा तथा  प्रत्येक जडी, खनिज , पशु उत्पादन, रासायनिक मिश्रण आदि का स्वयं पर प्रयोग किया। उन्होने  पाया कि दो तत्व समान लक्षण प्रदान नही करते हैं। प्रत्येक तत्व के अपने विशिष्ट लक्षण होते हैं। इसके अतिरिक्त लक्षणों को भौतिक अवस्था में परिष्कृत नही किया जा सकता है। प्रत्येक परीक्षित तत्व ने मस्तिष्क तथा शरीर की संवेदना को भी प्रभावित किया। उन्हे उस समय की चिकित्सा पद्घति ने विस्मित कर दिया तथा उन्होने रोग उपचार की एक पद्धति को विकसित किया जो सुरक्षित, सरल एवं प्रभावी थी। उनका विश्वास था कि मानव में रोगों से लडने की स्वतः क्षमता होती है तथा रोग मुक्त होने के लिए मानव के स्वयं के संघर्ष रोग लक्षणों को प्रतिबिम्बित करते हैं।

कुछ समय बाद उन्‍होंनें शरीर और मन में औषधियों द्वारा उत्‍पन्‍न किये गये लक्षणों, अनुभवो और प्रभावों को लिपिबद्ध करना शुरू किया। हैनिमेन की अति सूक्ष्म दृष्टि और ज्ञानेन्द्रियों नें यह निष्कर्ष निकाला कि और अधिक औषधियो को इसी तरह परीक्षण करके परखा जाय। हैनिमैन अब तक पहले की भाँति एलोपैथिक अर्थात स्थूल मात्रा मे ही दवाओं का प्रयोग करते थे । लेकिन उन्होने देखा कि रोग आरोग्य होने पर भी कुछ दिन बाद नये लक्षण उत्पन्न होते हैं । जैसे क्विनीन का सेवन करने पर ज्वर तो ठीक हो जाता है पर उसके बाद रोगी को रक्तहीनता , प्लीहा , यकृत , शोध , इत्यादि अनेक उपसर्ग प्रकट होकर रोगी को जर्जर बना डालते हैं । हैनिमैन ने दवा की मात्रा को घटाने का काम आरम्भ किया । इससे उन्होने निष्कर्ष निकाला कि दवा की परिमाण या मात्रा भले ही कम हो , आरोग्यदायिनी शक्ति पहले की तरह शरीर मे मौजूद रहती है और दवा के दुष्परिणाम भी पैदा नही  होते ।
इस प्रकार से किये गये परीक्षणों और अपने अनुभवों को डा0 हैनिमेन नें तत्कालीन मेडिकल पत्रिकाओं में ‘’ मेडिसिन आंफ एक्‍सपीरियन्‍सेस ’’ शीर्षक से लेख लिखकर प्रकाशित कराया । इसे होम्योपैथी के अवतरण का प्रारम्भिक स्वरुप कहा जा सकता है। होम्योपैथी शब्द यूनानी के दो शब्दों (Homois ) यानि सदृश (Similar ) और पैथोज ( pathos ) अर्थात रोग (suffering) से बना है । होम्योपैथी का अर्थ है सदृश रोग चिकित्सा । सदृश रोग चिकित्सा का सरल अर्थ है कि जो रोग लक्षण जिस औषध के सेवन से उत्पन्न होते हैं , उन्हीं लक्षणॊं की रोग मे सदृशता होने पर औषध द्वारा नष्ट किये जा सकते हैं । यह प्रकृति के सिद्दांत “ सम: समम शमयति ” यानि similia similbus curentur पर आधारित है । लेकिन हैनिमैन के शोध को तगडे विरोध का सामना करना पडा और हैनिमैन पर उनकॆ दवा बनाने के तरीको पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई ।

लेकिन सन्‌ १८०० मे हैनिमैन को अपने नये तरीको से सफ़लता मिलनी शुरु हुयी जब स्कारलैट फ़ीवर नाम के महामारी मे बेलोडोना का सफ़ल रोल पाया गया । एक बार फ़िर हैनिमैन अपने समकक्ष चिकित्सकों के तगडे विरोध का कारण बने ।

सन्‌  १८१० हैनिमैन ने आर्गेनान आफ़ मेडिसन का पहला संस्करण निकाला जो होम्योपैथी फ़िलोसफ़ी का महत्वपूर्ण स्तंभ था । १८१४ तक जाते-२ हैनिमैन ने अपने , अपने परिवार और कई मित्र चिकित्सकॊ जिनमे गौस , स्टैफ़, हर्ट्मैन और रुकर्ट प्रमुख थे ,  के ग्रुप पर दवाओं कॊ परीक्षण करना प्रारम्भ किया । इस समूह को हैनिमैन ने प्रूवर यूनियन का नाम दिया ।

सन्‌ १८१३ मे हैनिमैन को एक बार फ़िर सफ़लता हाथ लगी । जब नेपोलियन की सेना के जवानों के बीच टाइफ़स महामारी बन के उभरी । बहुत जल्द ही यह माहामारी जरमनी  मे भी आ गई , इस बार हैनिमैन को ब्रायोनिया और रस टाक्स से  सफ़लता हाथ लगी । सन्‌ १८२० मे  लिपिजक शहर की काउनसिल से हैनिमैन के कार्यों पर पूरी तरह से रोक लगा दी और सन १८२१ मे हैनिमैन को शहर से बाहर जाने का रास्ता दिखाया । हैनिमैन कोथन की तरफ़ चल दिये , यहाँ  के ड्यूक फ़रडनीनैन्ड जो हैनिमैन की दवा से लाभान्वित हो चुके थे , कोथन मे नये तरीको से प्रैकिटस और दवाओं को बनाने की इजाजत दी । कोथन मे हैनिमैन लगभग १२ साल तक रहे और यहाँ से होम्योपैथी को नया आधार मिला ।

इसी दौरान कोथन मे हैनिमैन  जटिल रोगों और मियाज्म पर किये कार्यों को सामने ले कर आये  । सन १८२८ मे हैनिमैन ने chronic diseases पर पहला संस्करण निकाला । हैनिमैन की विचारधारा के एक तरफ़ तो सहयोगी भी थे जिनमे बोनिगहसन , स्टाफ़ , हेरिग और गौस थे उधर दूसरी तरफ़ कुछ साथी चिकित्सक जिनमे डा. ट्रिन्क्स ने असहोयग का रास्ता अपनाते हुये उनके नये कार्यों को समय से प्रकाशन होने मे अडंगे लगाये ।

सन्‌ १८३१ मे होम्योपैथी को एक बार फ़िर से सफ़लता हाथ लगी , इस बार रुस के पशिचमी भाग से महामारी के रुप मे फ़ैलता  हुआ कालरा मे होम्योपैथिक औषधियों जिनमे कैम्फ़र , क्यूपरम और वेरटर्म ने न जाने कितने रोगियों की जान बचायी

कोथन मे हैनिमैन को डा. गोटफ़्रेट लेहमन का अभूतपूर्व सहयोग मिला ,। लेकिन लिपिजिक मे हैनिमैन नकली होम्योपैथों के रुप मे बढती भीड से काफ़ी खफ़ा हुये । सन्‌ १८३३ मे लिपिजिक मे पहला होम्योपैथिक अस्पताल डा. मोरिज मुलर के तत्वधान मे खुला ; सन्‌ १८३४ तक हैनिमैन बडे चाव से इस अस्पताल मे अपना सहयोग देते रहे । लेकिन सन्‌ १८३५ मे हैनिमैन के पैरिस के लिये रवाना होते ही जल्द ही अस्पताल पैसे की तंगी के कारण  १८४२ मे बन्द करना पडा ।

हैनिमैन  की जीवन के आखिरी क्षण कुछ रोमांन्टिक नावेल से कम नही थे । सन्‌ १८३४ मे ३२ वर्षीय  खूबसूरत मैरी मिलानी ८० साल के  हैनिमैन की जिंदगी मे आयी और  मात्र तीन महीने की मुलाकात के बाद उनकी जिंदगी के हमसफ़र हो गयी । मिलानी का रोल हैनिमैन की जिदगी मे बहुत ही विवादस्तमक रहा । उनका मूल  उद्देशय हैनिमैन के नयी चिकित्सा पद्दति मे था । इसके बाद की घटनाये इस बात का पुख्ता सबूत थी कि मिलानी किस उद्देशय से आयी थी ।

लेकिन यह भी सच था कि कई साल के संघर्ष, गरीबी और मुफ़लसफ़ी के बाद हैनिमैन ने अपनी खूबसूरत पत्नी के साथ फ़्रान्स की उच्च सोसयटिइयों मे जगह बनाई । जीवन के आखिरी सालों  मे मिलानी ने हैनिमैन को उनके पहली पत्नी से हुये  संतानों से दूर कर दिया और पैरिस मे हैनिमैन को अपने नये प्रयोगों को जारी रखने को कहा । फ़्रान्स मे हैनिमैन ने LM पोटेन्सी पर किये कार्यों को आखिरी जामा पहनाया । फ़्रान्स मे होम्योपैथी की शोहरत जर्मनी से अधिक फ़ैली , यहाँ‘ एक तो अंडगॆ कम थे और बाकी एलोपैथिक चिकित्सकॊ मे भी  नयी चिकित्सा पद्द्ति को अजमाने मे दिलचस्पी भी थी । आर्गेनान का छटा संस्करण फ़्रान्स मे ही हैनिमैन ने लिखा लेकिन मिलानी के रहते सन्‌ १८४३ मे हैनिमैन की मृत्यु के बाद भी उसका प्रकाशन न हो पाया । ८८ वर्षीय हैनिमैन सन्‌ १८४३ मे मृत्यु को प्राप्त हुये । लेकिन जाते-२ वह होम्योपैथिक जगत को आर्गेनान का छटा  बेशकीमती संस्करण देते गये । मिलानी के चलते यह महत्वपूर्ण संस्करण जिसमे हैनिमैन ने LM पोटेन्सी की जोरदार वकालत की , प्रकाशित न हो पाया । मिलानी इसके बदले मे प्रकाशक से मॊटी रकम चहती थी जिसका मोल भाव हैनिमैन के रहते न हो पाया । हैनिमैन की मृत्यु के कई साल के बाद सन्‌ १९२० मे इस संस्करण को विलियम बोरिक और सहयोगियों की मदद से प्रकाशित किया गया । लेकिन तब तक पूरे विश्व मे होम्योपैथिक चिकित्सकों के मध्य आर्गेनान का पाँचवा संस्करण लोकप्रिय हो चुका था और आज भी हम छटे संस्करण की और विशेष कर LM पोटेन्सी के लाभों से अन्जान ही रह गये ।

मिलानी का विवादों से भरा रोल हैनिमैन को दफ़नाने मे भी रहा । एक अनाम सी जगह मे हैनिमैन को उन्होने गोपनीय ढंग से दफ़नाया  । बाद मे विरोध के चलते हैनिमैन के पार्थिव शरीर को एक दूसरी कब्र मे दफ़नाया गया जिसके ऊपर वर्णित किया गया , ” Non inutilis vixi , ” I have not lived in a vain ” ” मेरी जिंदगी व्यर्थ  नही गयी ”

रसायन और मेडेसिन  मे ७० से ऊपर मौलिक कार्य, लगभग दो दर्जन से अधिक पुस्तकों का अंग्रेजी , फ़्रेन्च, लैटिन और ईटालियन से जर्मन भाषा मे अनुवाद , अपने दम और तमाम विरोधों के बीच पूरी पद्दति का बोझा उठाये हैनिमैन को कम कर के आँकना उनके साथ नाइन्साफ़ी होगी । और सब से से मुख्य बात वह मृदुभाषी थे , अपने मित्र स्टैफ़ को लिखे पत्र मे वह लिखते हैं , “ Be as sparing as possible with your praises . I do not like them . I feel that I am only an honest , straightforward man who does no more than his duty . ”

रात बहुत हो चुकी है , मुझे लगता है अब सो जाना चाहिये , कल फ़िर १० अप्रेल होगी , एक बार फ़िर हम किसी न किसी होम्योपैथिक कालेज के प्रांगण मे हैनिमैन को याद कर रहे होगें लेकिन होम्योपैथिक की शिक्षा प्रदान देने वाले संस्थान अपने आप से पूछ के देखें कि इतने सालों मे हम एक दूसरा हैनिमैन क्यूं नही बना पाये ? हमे इन्तजार है उस पल का , एक नये अवतरित होते हैनिमैन का और आर्गेनान के साँतवें संस्करण का भी …….
अलविदा …
शुभरात्रि ।

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