आज से २० वर्ष पूर्व होम्योपैथिक दवाओं का निर्माण कार्य आसान और कम खर्चीला था और इसी दौर मे कलकत्ता की अधिकाशं कम्पनियों का सिक्का होम्योपैथिक दवा इन्डस्ट्री मे चलता रहा । सन् १९९० के आस पास बदलाव की हवा चली , बाहरी कम्पनियों का आना एक के बाद एक शुरु हुआ , इसी दौर मे फ़्रान्स की बोरोन ( Boiron ) ने अपने देश से अनुबंध किया। हाल के दिनों मे जर्मनी की विल्मर शवाबे ( इन्डिया ), बैकसन , रालसन , आर.एस. भारगव और बायो फ़ोर्स ने भी दवा इन्डस्ट्री मे अपनी जगह बनायी । आज कलकत्ता की अधिकाशं होम्योपैथिक कम्पनियाँ उत्तर भारत मे तो कम से कम नजर नही आती । एक समय होम्योपैथिक को मजबूत और सस्ता आधार देने वाली कम्पनियों का सफ़ाया कम से कम कलकत्ता के अलावा शेष भारत मे तो हो ही चुका है । C.C.R.H. ( सेन्ट्र्ल काउन्सिल आफ़ होम्योपैथी ) और केन्द्र सरकार के नये नियमों के चलते अब होम्योपैथिक दवाओं पर मूल्य नियंत्रण आसान नही रहा ।
होम्योपैथिक दवा इन्डस्ट्री मे नये बदलाव और गुणवत्ता नियंत्रण क्या हैं इसको समझने के लिये यहाँ , यहाँ और यहाँ देखें । बोरोन इन्डिया की यूनिट पर एक नजर के लिये इस वीडियो को अवशय देखें :
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