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खलील जिब्रान -एक विद्रोही व्यक्तित्व

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खलील जिब्रान की साहित्यिक कृतियों को मै पहले भी पढ चुका हूँ ,  विद्रोह की ऐसी आँधी  मैने किसी  लेखक मे पहले कभी न देखी। खलील के विद्रोही तेवर इनकी कथाओं मे साफ़ दिखाई पडते हैं . खलील के समग्र साहित्य मे गहरी जीवन अनूभूति , संवेदन शीलता , भावात्मकता , व्यग्यं एवं पाखडं के प्रति गहरा विद्रोह साफ़ दिखता है । हाल ही मे डां महेन्द्र मित्तल द्वारा संपादित और संकलित खलील की श्रेष्ठ कहानियों को दोबारा पढने का मौका मिला । इसमे कोई अतिशयोक्ति नही कि खलील की लेखनी मे आग है । अपनी कथाओं के माधयम से उन्होंने समाज , व्यक्ति , धार्मिक पाखण्ड , वर्ग संघर्ष , प्रेम और कला पर अपनी सारगर्भित लेखनी चलाई है।

खलील के कहानी संग्रह ’स्पिरिटस रिबेलियस ’ ( विद्रोही आत्मायें ) मे उनके विद्रोही स्वर मुखरित हुये थे । सर्वप्रथम यह पुस्तक अरबी भाषा मे छपी थी । बाद मे विशव की अनेक भाषा मे इसका अनुवाद हुआ । उनकी अन्य रचनाओं मे अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित ’ दि मैड मैन ’ , ’ दि फ़ोर रनर’ , ’दि प्राफ़िट’ आदि प्रमुख हैं । खलील की ’स्पिरिटस रिबेलियस ’ ( विद्रोही आत्मायें ) मे जो कथायें संगृहीत थी , उसमे समाज के जीर्ण-शीर्ण और जड हुये स्वरुप पर तीखे प्रहार किये गये थे । चर्च के पुरहोतों ने इस पुस्तक को खतरनाक , क्रान्तिकारी ,और देश के युवको को जहर भरने वाला मानते हुये बेरुत के बाजारों मे सरे आम जलया था ।

kjran  डा महेन्द्र मित्तल द्वारा संग्रहीत इस पुस्तक मे ’स्पिरिटस रिबेलियस ’ ( विद्रोही आत्मायें )  से १४ कहानियाँ ली गयीं है , जैसे ’ आत्मा का उपहार ’ , नई दुलहिन , ’ दोस्त की वापसी ’ , ’ सवेरे की रोशनी ’ , ’ विद्रोही आत्मायें ’ , ’ तूफ़ान ’ , ’ पागल जान ’ , ’ शैतान ’ , ’ गुलामी ’ , कंब्रों का विलाप ’ , ’महाकवि ’ , इन्साफ़ ’ ,  ’ तीन चीटियाँ ’  और ’ पवित्र नगर ’ । ”

 ’ विद्रोही आत्मायें ’ मे कहानी रशीद बेग और गुलबदन की शादी और बाद मे गुलबदन  की बेवफ़ाई पर जाकर टिकती है । रशीद बेग जो बेरुत का समृद्द और धनवान व्यक्ति था , अपने से काफ़ी कम उभ्र की लडकी गुलबदन से निकाह रचाता है , लेकिन नियति को कुछ और ही मन्जूर था , गुलबदन का प्रेम अपने हम उभ्र लडके से हो जाता है जो बहुत ही गरीब था । और तब तक उसे यह सच्चाई समझ आ जाती है कि रशीद बेग उसे सिर्फ़ अपनी भूख मिटाने के लिये इस्तेमाल कर रहा है । लेकिन धर्मशास्त्र उसके आगे राह रोके खडे थे , लेकिन इसके बावजूद भी उसने एक साहसिक निर्णय लिया । आगे एक बानगी देखें , खलील की कलम से ’,

” मै चलता जा रहा था और गुलबदन की आवाज मेरे कानो मे गूंज रही थी ।……….मैने अपने आप से कहा , ’ आजादी के स्वर्ग के सामने से पेड सुंगधित हवा का आंनद ले रहे हैं और सूरज और चांद की किरणों से आनंदित हो रहे हैं । … इस धरती पर जो चीज है , वह अपनी इच्छा के अनुसार जिंदगी बसर करती है और अपनी आजादी पर फ़ख्र करती है । लेकिन इन्सान अब वैभव से वंचित है , क्योंकि उनकी पाक रुहें दुनिया के तंग विधानों की गुलाम हैं । उनकी रुहों और जिस्मों के लिये एक ही ढाँचे मे ढला कानून बनाया गया है और उनकी इच्छाओं तथा ख्वाहिशों को एक छिपे हुये और तंग कैदखाने मे बंद कर दिया गया है । उनके दिमाग के लिये एक गहरी और अंधेरी कब्र खोदी गई है । अगर कोई उसमे से उठे और उनके समाज और कारनामो से अलग हो जाये तो कहते है कि कि यह आदमी विद्रोही और बदमाश है । यह आदमी बिरादरी से खारिज है और मार डालने लायक है ! लेकिन क्या इंसान को कयामत तक इस सडियल समाज की गुलामी मे जिंदगी बिताते रहना चाहिये या उसे अपनी आत्मा को इन बंधनॊ से मुक्त कर लेना चाहिये ? क्या आदमी को मिट्टी मे पडे रहना चाहिये या अपनी आंखों को सूर्य बना लेना चाहिये , ताकि उसके शरीर की छाया कूडे-करकट पर पडती हुई नजर न आये ? “

’पागल जाँन ’- यह कहानी जाँन  नामक एक सीधे-साधे और भोले ग्रामीण युवक की है जो प्रभु ईशू से बेपनाह प्यार करता है । एक दिन जब वह अपनी बैलों को घास चराने खेतों की तरफ़ ले गया था तो उनमे से एक बैल संत एलिजा मठ के खेतों मे प्रवेश कर गया, प्रभु ईशू की भक्ति मे तल्लीन जान को जरा सा भी इस बात का बोध न हुआ । लेकिन शाम  होते-२ जब वह अपनी बैलों को ढूँढने मे नाकाम रहा तो उसकी नजर संत एलिजा मठ के खेतों मे जाने वाले रास्ते पर पडी । वहाँ खडे एक पादरी से डरते-२ उसने अपनी खोये हुये बैल के बारे मे पूछा , वह पादरी उसे अपने मठ के अन्दर ले गया जहाँ अन्य छोटे बडे कई चोगा धारी पहले से मौजूद थे और बडे गुस्से और हिकारत से उसकी तरफ़ देख रहे थे ।

 उनमे से लाट पादरी ने गुस्से से कहा ,

 “….. तू गरीब है या अमीर , इससे मठ को कुछ  लेना देना नही है । …अगर तू अपने बैलों को छुडाना चाहता है तो तुझे मठ को तीन दीनार देने होगें । “

जान ने पैसे देने से इन्कार किया और कहा कि एक गरीब चरवाहे पर रहम खाइये ।

लेकिन इस पर लाट पादरी ने कडक कर कहा ,

 ” तो फ़िर तुझे अपनी जायदाद का कुछ हिस्सा बेच कर तीन दीनार लाने होगें , क्योंकि संत एलिजा के गुस्से का शिकार बनकर नरक मे जाने की बनिस्बत जमीन जायदाद से महरुम होकर स्वर्ग मे जाना अच्छा है ।”

यहाँ खलील की आग को उसके लेख मे आप स्वत: महसूस कर सकते है । जान के रूप मे खलील जिब्रान तथाकथित धर्मगुरुओं पर जोरदार  निशाना लगाते हैं । चर्च की जगह पर मन्दिर या मस्जिद , पादरी की जगह पर अपने-२ धर्मगुरुओं  को आप रखकर देखें तो यह कहानी आप के अपने-२ समाज के तंग गलियारों मे घूमती हुयी दिखेगी ।

यह सब सुनते ही जान आपे से बाहर हो गया और ललकार कर कहा ,

 ” ऐ पाखंडियों ! भगवान ईसा की सिखावन को तुम लोग इसी तरह तोड मरोडते हो ; और इसी तरह अपनी बुराइयों को फ़ैलाने के लिये तुम लोग जिंदगी की पाक परंपराओं को खराब करते हो … । लानत है तुम पर ! ….धिक्कार है तुम पर , ऐ ईसा के दुशमनों ! तुम अपने  ओंठ प्रार्थना के लिये हिलाते हो लेकिन उसी समय तुम्हारे दिल लालसाओं से भरे होते हैं ।…..”

” गर्दिश के मारे हमारे घरों को देखो , जहां बीमार लोग सख्त बिस्तरों पर करहाते रहते हैं …अपने गुलाम अनुयायियों के बारे मे सोचो तो सही कि उधर वह भूख से तडप रहे हैं और इधर तुम ऐशो-इशरत की जिंदगी बसर कर रहे हो … उनके बागों के फ़ल खाकर और अंगूरों की शराब पीकर तुम मौज उडा रहे हो ! …..जहरीले नाग के फ़न की तरह तुम अपने हाथ फ़ैलाते हो और नरक का डर दिखा उस बेवा का बचाया हुआ थोडा सा पैसा छीन लेते हो ।…..”

जाँन ने गहरी साँस ली और शांति से बोला ,

 ” तुम लोग बहुत हो और मै अकेला हूँ । जो भी चाहो , तुम मेरे साथ कर सकते हो । रत के अंधेरे मे भेडिये मेमने को फ़ाडकर खा जाते हैं , मगर उसके खून के धब्बे घाटी के पत्थरों पर दिन निकलने तक बाकी रहते हैं और सूरज सबको उस गुनाह की खबर कर देता है ।”

 ’शैतान ’ कहानी का सार बहुत ही सार्गर्भित और ईशवर और शैतान की परिकल्पना पर रोशनी डालने  वाला है । यह कहानी उत्तरी लेबनान के एक पुरोहित ’पिता इस्मान ’ की है जो गाँव-२ मे घूमते हुये जनसाधारण को धार्मिक उपदेश देने का काम करते थे । एक दिन जब वह चर्च की तरफ़ जा रहे थे तो उन्हें जंगल मे खाई में एक आदमी पडा हुआ दिखा जिसके घावों से खून रिस रहा था । उसकी चीत्कार की आवाज को सुनकर जब पास जा कर पिता इस्मान ने गौर से देखा तो उसकी शक्ल जानी -पहचानी सी मालूम हुयी । इस्मान ने उस आदमी से कहा , ’ लगता है कि मैने कहीं तुमको देखा है ? ’

और उस मरणासन आदमी ने कहा ,

” जरुर देखा होगा । मै शैतान हूँ और पादरियों से मेरा पुराना नाता है ।”

 तब इस्मान को ख्याल आया कि वह तो शैतान है और चर्च मे उसकी तस्वीर लटकी हुई है । उसने अपने हाथ अलग कर लिये और कहा कि वह मर ही जाये ।

वह शैतान जोर से हँसा और उसने कहा ,

” क्या तुम्हें यह पता नहीं है कि अगर मेरा अन्त हो गया तो तुम भी भूखे मर जाओगे ?. … अगर मेरा नाम ही दुनिया से उठ गया तो तुम्हारी जीवका का क्या होगा ?”

“एक पुजारी होकर क्या तुम नही सोचते कि केवल शैतान के अस्तित्व ने ही उसके शत्रु ’ मंदिर ’का निर्माण किया है ? वह पुरातन विरोध ही एक ऐसा रहस्मय हाथ है , जो कि निष्कपट लोगों की जेब से सोना – चांदी निकाल कर उपदेशकों और मंहतों की तिजोरियों में संचित करता है । “

” तुम गर्व मे चूर हो लेकिन नासमझ हो । मै तुम्हें ’ विशवास ’ का इतिहास सुनाऊगाँ और तुम उसमे सत्य को पाओगे जो हम दोनो के अस्तित्व को संयुक्त करता है और मेरे अस्तित्व को तुम्हारे अन्तकरण से बाँध देता है ।”

” समय के आरम्भ के पहले  प्रहर मे आदमी सूर्य के चेहरे के सामने खडा हो गया और चिल्लाया , ’ आकाश के पीछे एक महान , स्नेहमय और उदार ईशवर वास करता है ।”

” जब आदमी ने उस बडे वृत की की ओर पीठ फ़ेर ली तो उसे अपनी परछाईं पृथ्वी पर दिखाई दी । वह चिल्ला उठा , ’ पृथ्वी की गहराईयों में एक शैतान रहता है जो दृष्टता को प्यार करता है । ’

’ और वह आदमी अपने -आपसे कानाफ़ूसी करते हुये अपनी गुफ़ा की ओर चल दिया , ’ मै दो बलशाली शक्तियों के बीच मे हूँ । एक वह , जिसकी मुझे शरण लेनी चाहिये और दूसरी वह , जिसके विरुद्द मुझे युद्द करना होगा । ’

” और सदियां  जुलूस बना कर निकल गयीं , लेकिन मनुष्य दो शक्तियों के बीच मे डटा रहा – एक वह जिसकी वह अर्चना करता था , क्योंकि इसमे उसकी उन्नति थी और दूसरी वह , जिसकी वह निन्दा करता था , क्योंकि वह उसे भयभीत करती थी । “………….

 

थोडी देर बाद शैतान चुप हो गया और फ़िर बोला ,

” पृथ्वी पर भविष्यवाणी का जन्म भी मेरे कारण हुआ । ला-विस प्रथम मनुष्य था जिसने मेरी पैशाचिकता को एक व्यवासाय बनाया  । ला-विस की मृत्यु के बाद  यह वृति एक पूर्ण धन्धा बन गया और उन लोगों ने अपनाया जिनके मस्तिष्क मे ज्ञान का भण्डार है तथा जिनकी आत्मायें श्रेष्ठ , ह्र्दय स्वच्छ एवं कल्पनाशक्ति अनन्त है । “

“बेबीलोन ( बाबुल ) मे लोग एक पुजारी की पूजा सात बार झुक कर करते हैं जो मेरे साथ अपने भजनों द्वारा युद्द ठाने हुये हैं ।”

” नाइनेवेह ( नेनवा ) मे वे एक मनुष्य को , जिसका कहना है कि उसने मेरे आन्तरिक रहस्यों को जान लिया है , ईशवर और मेरे बीच एक सुनहरी कडी मानते हैं । “

” तिब्बत में वे एक मनुष्य को , जो मेरे साथ एक बार अपनी श्क्ति आजमा चुका है , सूर्य और चन्द्र्मा के पुत्र के नाम से पुकारते हैं । “

” बाइबल्स में ईफ़ेसस औइर एंटियोक ने अपने बच्चों का जीवन मेरे विरोधी पर बलिदान कर दिया । “

” और यरुशलम तथा रोम मे लोगों ने अपने जीवन को उनके हाथों सौंप दिया , जो मुझसे घृणा करते हैं और अपनी सम्पूर्ण शक्ति द्वारा मुझसे युद्द मे लगे हुये हैं । “

” यदि मै न होता तो मन्दिर न बनाये जाते , मीनारों और विशाल धार्मिक भवनों का निर्माण न हुआ होता । “

” मै वह साहस हूँ , जो मनुष्य मे दृढ निष्ठा पैदा करता है “

” मै वह स्त्रोत हूँ , जो भावनाओं की अपूर्वता को उकसाता है । “

” मै शैतान हूँ , अजर-अमर ! मै शैतान हूँ , जिसके साथ लोग युद्द इसलिये करते हैं कि जीवित रह सकें । यदि वह मुझसे युद्द करना बंद कर दें तो आलस्य उनके मस्तिष्क , ह्र्दय और आत्मा के स्पन्दन को बन्द कर देगा …।”

” मै एक मूक और क्रुद्द तूफ़ान हूँ , जो पुरुष के मस्तिष्क और नारी के ह्र्दय को झकझोर डालता है । मुझसे भयभीत होकर वे मुझे दण्ड दिलाने मन्दिरों एवं धर्म-मठों को भाग जाते हैं अथवा मेरी प्रसन्नता के लिये, बुरे स्थान पर जाकर मेरी इच्छा के सम्मुख आत्म -समर्पण कर देते हैं ।”

” मै शैतान हूँ अजर-अमर  ! “

” भय की नींव पर खडे धर्म – मठॊ का मै ही निर्माता हूँ । …..यदि मै न रहूँ तो विशव मे भय और आनन्द का अन्त हो जायेगा और इनके लोप हो जाने से मनुष्य के ह्र्दय मे आशाएं एंव आकाक्षाएं भी न रहेगीं । “

” मै अमर शैतान हूँ ! “

” झूठ , अपयश , विशवासघात , एवं विडम्बना के लिये मै प्रोत्साहन हूँ  और यदि इन तत्वों का बहिष्कार कर दिया जाए तो मानव- समाज एक निर्जन क्षेत्र-मात्र रह जायेगा , जिसमें धर्म के कांटॊं के अतिरिक्त कुछ भी न पनप पायेगा । “

” मै अमर शैतान हूँ ! “

 ” मैं पाप का ह्र्दय हूँ । क्या तुम यह इच्छा कर सकोगे कि मेरे ह्र्दय के स्पन्दन को थामकर तुम मनुष्य गति को रोक दो ?”

” क्या तुम मूल को नष्ट करके उसके परिणाम को स्वीकार कर पाओगे ? मै ही तो मूल हूँ ।”

” क्या तुम अब भी मुझे इस निर्जन वन मे इसी तरह मरता छोडकर चले जाओगे?”

” क्या तुम आज उसी बन्धन को तोड फ़ेंकना चाहते हो , जो मेरे और तुम्हारे बीच दृढ है ? जबाब दो , ऐ पुजारी ! “

 

पिता इसमान व्याकुल हो उठे और कांपते हुये बोले ,

” मुझे विशवास हो गया है कि यदि तुम्हारी मृत्यु हो गयी तो प्रलोभन का भी अन्त हो जायेगा और इसके अन्त से मृत्यु उस आदर्श शक्ति को नष्ट कर देगी , जो मनुष्य को उन्नत और चौकस बनाती है ! “

“तुम्हें जीवित रहना होगा । यदि तुम मर गये तो लोगों के मन से भय का अन्त हो जायेगा और वे पूजा – अर्चना करना छोड देगें , क्योंकि पाप का अस्तित्व न रहेगा ! “

और अन्त मे  पिता इस्मान ने अपने कुरते की बाहें चढाते हुये शैतान को अपने कंधें पर लादा और अपने घर को चल दिये ।

 

 ’खलील जिब्रान ’ से संबधित साहित्य को आप  यहाँ , यहाँ, और यहाँ से आन लाइन पढ सकते हैं।


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