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COMBINING TWO OR MORE BACHFLOWER MEDICINE EFFECTIVELY IN A CASE OF EPLIEPSY WITH DETAILED EXPLANATION OF CENTAURY AND PINE (अपस्मार या मिर्गी के रोगी मे सम्मिश्रित बैचफ़्लावर दवाओं के सफ़ल प्रयोग )

अपस्मार या मिर्गी (वैकल्पिक वर्तनी: मिरगी, अंग्रेजी: Epilepsy) एक तंत्रिकातंत्रीय विकार (न्यूरोलॉजिकल डिसॉर्डर) है जिसमें रोगी को बार-बार दौरे पड़ते है। मस्तिष्क में किसी गड़बड़ी के कारण बार-बार दौरे पड़ने की समस्या हो जाती है। दौरे के समय व्यक्ति का दिमागी संतुलन पूरी तरह से गड़बड़ा जाता है और उसका शरीर लड़खड़ाने लगता है। इसका प्रभाव शरीर के किसी एक हिस्से पर देखने को मिल सकता है, जैसे चेहरे, हाथ या पैर पर। इन दौरों में तरह-तरह के लक्षण होते हैं, जैसे कि बेहोशी आना, गिर पड़ना, हाथ-पांव में झटके आना। मिर्गी किसी एक बीमारी का नाम नहीं है। अनेक बीमारियों में मिर्गी जैसे दौरे आ सकते हैं। मिर्गी के सभी मरीज एक जैसे भी नहीं होते। किसी की बीमारी मध्यम होती है, किसी की तेज। यह एक आम बीमारी है जो लगभग सौ लोगों में से एक को होती है। इनमें से आधों के दौरे रूके होते हैं और शेष आधों में दौरे आते हैं, उपचार जारी रहता है। अधिकतर लोगों में भ्रम होता है कि ये रोग आनुवांशिक होता है पर सिर्फ एक प्रतिशत लोगों में ही ये रोग आनुवांशिक होता है। विश्व में पाँच करोड़ लोग और भारत में लगभग एक करोड़ लोग मिर्गी के रोगी हैं। विश्व की कुल जनसँख्या के ८-१० प्रतिशत लोगों को अपने जीवनकाल में एक बार इसका दौरा पड़ने की संभावना रहती है।

बैच फ़्लावर पर मेरे अधिक प्रयोग सिगंल दवा पर ही केन्द्रित रहे और परिणाम बहुत ही उत्साह्वर्धक . लेकिन अगर रोगी का व्यक्तित्व को एक बैच फ़्लावर दवा कवर न कर रही हो तो उस हालात मे क्या करे ।

फ़ुरकान का केस कुछ ऐसा ही था । करीब ६ साल से वह epileptic convulsions से पीडित था । एलोपैथिक दवायें किसी योग्य न्यूरोफ़िजीशय्न से चल रही थी लेकिन आरम्भ मे आराम होने के बाद अगले साल से जो  पलटा खाया और फ़िर कई चिकित्सक बदलने के बावजूद भी कन्ट्रोल नही हुआ । दौरे हफ़्ते मे ३ से ४ तक पड जाते थे और इन दौरों की खास बात कि वह सिर्फ़ रात मे और गहरी नीदं मे ही पडते थे ।

स्वभाव से फ़ुरकान का व्यक्तित्व बेहद संकोची और दब्बू किस्म का था । उसकी मां के अनुसार उसमे किसी की भी गलत बात को प्रतिवाद करने की क्षमता बिलकुल न थी । वह अन्त्रमुखी था , उसके दोस्त बहुत कम और मिलना जुलना दूसरों से न के बराबर था । पिछले कुछ सालों से उसके घर की हालत भी कोई विशेष अच्छी न थी । पिता बीमार थे और इसका  जिम्मेदार वह स्वंय कॊ मानता था । वह अकसर मां से कहता कि उसके कारण ही उनके घर के हालात हुये ।

हमेशा की तरह दोनॊ विकल्पो का सहारा मैने लिया । constitutional  approach के लिये होम्योपैथिक और व्यक्तित्व के negativity के लिये बैच फ़्लावर ।

लक्षणॊ की प्रधानता ( चित्र के अनुसार ) को ध्यान मे रखते हुये उच्च क्रम मे silicea दी गई ।

FURKAN

अब बारी थी बैच फ़्लावर की । यहां दो लक्षण मुख्य थे ; १. दब्बू और संकॊची व्यक्तित्व , कमजोर इच्छाशक्ति , किसी का विरोध करने मे असमर्थ २. स्वदॊषी , हर काम मे अपने को दोष देना और उदास रहना ।

संकोची व्यक्तित्व और दब्बू स्बभाव के लिये सेन्चुरी और स्वंय को दोषी समझने के लिये पाइन का चुनाव किया । एलोपैथिक दवायें फ़िलहाल बन्द नही की , और वह पूर्वत: वैसे ही चलती रही । एलोपैथिक दवायें बन्द न करने का मुख्य कारण लम्बे समय से रोगी की दवा पर रोगी की निर्भता थी । एक बार परिणाम मिलने पर उनकी डोसेज कम करके बन्द करने का विचार था ।

पह्ले दो सप्ताह मे कोई विशेष फ़र्क नही दिखा । लेकिन तीसरे हफ़्ते से दौरॊं कि संख्या घटकर दो हफ़्ते मे एक पर रुक गयी । और सबसे प्रमुख बात उसके व्यक्तित्व मे परिवर्तन की धीमी शुरुआत । मुझे उसको देखे लगभग महीने भर से अधिक हो चुका था । दवा पूर्वत: वही चल रही थी । ईद के लगभग ५ दिन बाद उसकी अम्मी मुझसे मिलने आयी । बेहद खुश । उसके अनुसार पहली बार उसने ईद पर अपने बच्चे को इतना प्रसन्नचित देखा । अपने शौक से उसने कपडॆ बनवाये । और अपने दोस्तों के साथ वह घूमने निकल गया । अब तो अपने छॊटे भाई के साथ उसकी चुहलबाजी और नोंक-झॊक भी होने लगी । दौरॊ की संख्या नगण्य थी । और अब यह समय था एलोपैथिक दवा के हटाने का । और कहना नही होगा इन दवाओं के हटाने पर कॊई दिक्कत नही आई ।

व्यक्तित्व का यही बदलाव मै चाह्ता था । जो संभव हुआ बैच फ़्लावर और होम्योपैथिक दवा के काम्बीनेशन का ।

ईद के लगभग ४५ दिन के बाद epileptic convulsion का एक और एटैक पडा । साइलेशिया की पोटेन्सी को बढाया गया । और उसके बाद से अब तक कोई दौरा नही पडा । जो काम होम्योपैथिक की constitutional  दवाओं ने शुरु किया उसका रास्ता आसान बनाया बैच फ़्लावर औषधियों ने ।

डा. बैच के सिद्धान्त के अनुसार , “ मनुष्य का शारीरिक दुख मानसिक रोग का संकेत देता है । “

और यही बात हैनिमैन ने आर्गेनान के खन्ड २११ मे लिखा :

आर्गेनान आफ़ मेडिसन मे हैनिमैन लिखते हैं :
HAHNEMANN

Aphor .213

§ 213

    We shall, therefore, never be able to cure conformably to nature – that is to say, homoeopathically – if we do not, in every case of disease, even in such as are acute, observe, along with the other symptoms, those relating to the changes in the state of the mind and disposition, and if we do not select, for the patient’s relief, from among the medicines a disease-force which, in addition to the similarity of its other symptoms to those of the disease, is also capable of producing a similar state of the disposition and mind.1

    1 Thus aconite will seldom or never effect a rapid or permanent cure in a patient of a quiet, calm, equable disposition; and just as little will nux vomica be serviceable where the disposition is mild and phlegmatic, pulsatilla where it is happy, gay and obstinate, or ignatia where it is imperturbable and disposed neither to be frightened nor vexed.

सूत्र २१३ – रोग के इलाज के लिये मानसिक दशा का ज्ञान अविवार्य

इस तरह , यह बात स्पष्ट है कि हम किसी भी रोग का प्राकृतिक ढंग से सफ़ल इलाज उस समय तक नही कर सकते जब तक कि हम प्रत्येक रोग , यहां तक नये रोगों मे भी  , अन्य लक्षणॊं कॆ अलावा रोगी के स्वभाव और मानसिक दशा मे होने वाले परिवर्तन पर पूरी नजर नही रखते । यादि हम रोगी को आराम पहुंचाने के लिये ऐसी दवा नही चुनते जो रोग के सभी लक्षण  के साथ उसकी मानसिक अवस्था या स्वभाव पैदा करनेच मे समर्थ है तो रोग को नष्ट करने मे सफ़ल नही हो सकते ।

सूत्र २१३ का नोट कहता है :

ऐसा रोगी जो धीर और शांत स्वभाव का है उसमे ऐकोनाईट और नक्स कामयाब नही हो सकती , इसी तरह एक खुशमिजाज नारी मे पल्साटिला या धैर्यवान नारी मे इग्नेशिया  का रोल नगणय ही  रहता है क्योंकि यह रोग और औषधि की स्वभाव से मेल नही खाते ।

आज से लगभग २५०० वर्ष पूर्व गौतम बुद्ध ने ईशवरीय सत्ता को नकारते हुये मन की अवस्था को सम्पूर्ण प्राथमिकता दी । धम्मपद के पहले वग्ग , “ यमकवग्गॊ ” में बुद्ध कहते हैं :

मनोपुब्बङ्गमा धम्मा, मनोसेट्ठा मनोमया।

मनसा चे पदुट्ठेन, भासति वा करोति वा।

ततो नं दुक्खमन्वेति, चक्‍कंव वहतो पदं॥

मन सभी प्रवॄतियों का अगुआ है , मन ही प्रधान है , सभी धर्म मनोनय हैं । जब कोई व्यक्ति अपने मन को मैला करके कोई वाणी बोलता है , अथवा शरीर से कोई कर्म करता है तो दु:ख उसके पीछे ऐसे हो लेता है , जैसे गाडी के चक्के बैल के पीछे हो लेते हैं ।

Mind precedes all mental states. Mind is their chief; they are all mind-wrought. If with an impure mind one speaks or acts, suffering follows one like the wheel that follows the foot of the ox .

अब सवाल है बैचफ़्लावर दवाये सेन्चुरी और पाइन क्यों दी गई ।

सैन्चुरी :

mind map centaury

एडवर्ड बैच के अनुसार  सेन्चुरी व्यक्तित्व के लक्षण कुछ इस तरह से हैं

“weak willed , unable to oppose or refuse , yielding to other , easily influenced and utilized by others .

Kind , quite , gentle people who are anxious to serve others, They overtake their strength in their endevours . Edward Bach

कमजोर इच्छाशक्ति , किसी का विरोध करने मे असमर्थ , दूसरों के प्रति समपर्ण की भावना , आसानी से दूसरॊ से प्रभावित ।

सेन्चुरी की शख्सियत अपनी स्वयं की नही होती , दूसरॊ के व्यक्तित्व से यह आसानी से प्रभावित हो जाते है । स्वभावत: यह शांत और दयालु प्रवृति के होते हैं । किसी को न करना इनके बस की बात की बात नही होती । इसी का फ़ायदा उठाकर दूस्ररॆ इनसे अपना काम निकाल लेते हैं । अतयाधिक काम की वजह से  शारिरिक थकान भी रहती है । ऐसे लोगॊ मे स्वयं की लीडरशिप का अभाव रहता है , हां , यह अच्छे कार्यकर्ता अवशय बन जातें हैं ।

बचपन से लेकर आगे की अवस्थाये इनके बस की नही होती । बचपन माता –पिता के अधीन और बेहद आज्ञाकारी  , युवा होने पर अपने जीवनसाथी के चयन में , अगर पसन्द न भी हॊ तब भी यह न नही कर पाते । कैरियर के चुनाव मे जो माता पिता ने कहा , उसको सर पर रखकर   मानना इनकी  मजबूरी हो जाती है । सेन्चुरी के उदाहरण हमकॊ इसी समाज मे आसानी से मिल जातॆ है । एक नवयुवती  ने शादी इसलिये नही की क्योकि उसके सामने पहले अपने  भाई , बहन के कैरियर का सवाल था । एक इंन्जीयरिन्ग पास ग्रेजुएट अपने पिता की दुकान पर न मन होते हुये भी बैठ गया , क्योकि उसके पिता की यही इच्छा  थी ।

KEY NOTES OF CENTAURY

Lack of will, a weak willed slave doing other’s job who cannot refuse to be used as door-mat by others. Persons who appear to have no choice except to obey others.

KEYNOTES
: -Good natured, obedient, pleasant individuals, responsive to praise, who are guided by others and easily taken advantage of by their fellows.

-Easily influenced by stronger personalities.

-Easily persuaded.

-They simply can’t say ‘No’ to others or refuse them.

-Over-governed and exploited by others, they complain of tiredness and overwork.

-Sometimes a martyr (because of sacrifices).

-A slave, rather than a conscious helper.

-Easily led astray in the desire to please others.

-Desire for validation and recognition.

-Most sensitive of all the Bach Flower Remedies.

-Easily made unsure, upset and hurt.

-Avoids disputes, unable to stand up for own interests.

-Tends to give more than he has.

-‘Cinderella’ or doormat for others.

 

Pine (पाइन);

pine mindmap

एडवर्ड बैच के अनुसार :

“ For those who blames themselves . Even when succesful they think they could have done better and are never contended with their efforts or the results . They are hard working and suffer much from the faults working and suffer much from the faults attach to themselves . Sometimes if there is any mistake it is due to others , but they will claim resposibility even for that

पाइन पर पह्ले भी लिख चुका हूँ । यह एक बुजुर्ग मुस्लिम अनुयायी का केस था जो अपने ही अतंर्द्न्द के होते हुये मानसिक अवसाद तक जा पहुँचा । देखॆं : मेरी डायरी से -“बैच फ़्लावर औषधि–पाइन” : https://drprabhattandon.wordpress.com/2012/03/30/pine-bach-flower-remedy/

पाइन व्यक्तित्व का व्यक्ति छॊटी २ गलतियों केलिये अपने आप को दोषी समझते हैं । वैसे पाइन का व्यक्तित्व मेहनती , ईमानदार और दूसरॊ का दु:ख दर्द मे शरीक होने होते हैं । धर्म कर्म में इनकी आस्था और विशवास होता है । अत्यन्त उच्च आर्दश्वादी होने के कारण अगर उन आर्दशॊं के पालन करने मे कुछ भूल रह जाती है तो अपराध बोध की भावना से ग्रस्त हो जाते हैं ।

पाइन का व्यक्तित्व अपनी ही नजर में बौना सा रहता है । अपनी ही उपल्ब्धियों को वह कम कर के आँकते हैं और दूसरों से कम योग्य सम्झते हैं ।और यहि उनके अवसाद का कारण भी रहता है । पाइन ऐसे मनुष्यों मे नकरात्मक सोच को दूर करके अपराधबोध की भावना से मुक्त करती है ।

पाइन स्वभाव वाले व्यक्तित्व के कुछ  ऋण पक्ष :

  • हीन भावना (guilty complex )
  • स्वदोषी ( self reproach )
  • अन्तर्मुखी ( introvert )
  • बात-२ में क्षमा करने का उपयोग करना ।
  • दूसरों के दोषों के लिये भी अपने को दोषी ठहराना ।
  • संकोची व्यक्तित्व

PINE [Pine]

Self condemnation. ‘Guilt complex’. Blames himself even for the fault of others. Over conscientious, always tries to improve his work, and never satisfied with his own achievements. Even when trying his best to improve the lot of his fellow men, if he falls ill, he would still blame himself for not doing enough in his noble mission. He is, so to say, always on the look out for an excuse to blame himself. He can never be happy, as he allergic to happiness.

BOTANICAL NAME: Pinus sylvestris

KEYNOTES
: -Self-reproach, guilt feelings, despondency.

-Tired and worn out feeling.

-Never really satisfied with themselves.

-Blame themselves, asks more of himself than of others, and if the high standards applied to himself cannot be lived up to, he feels guilty and desperately blames himself in his heart.

-Will tend to be the scapegoat in the class and will uncomplainingly take the punishments for crimes they have not even committed.

-Always apologizing and using apologetic phrases in conversation.

-Feels guilty when need arises to speak firmly to others.

-Childish nervousness.

-Feels unworthy, inferior. Considers self a coward.

-Masochistic desire to sacrifice themselves and may punish themselves for life by choosing an inconsiderate partner.

-Religious beliefs strong, sees sexuality as sin.

-Negative narcissism.

-Personality shuts itself off from love, feels undeserving of love.

-Feeling he does not deserve anything.

-Introverted, little joy in life.

 

इसको भी देखॆ :

सदर्भित ग्रन्थसूची ( Bibliography )

  • बैच फ़्लावर रेमेडीज , लेखक : मोहन लाल जैन और सोहन लाल तावेड
  • बैच फ़्लावर रेमॆडीज , लेखक : दर्शन सिन्ह वोहरा
  • The Bach Flower Remedies by F.J. Wheeler and Edward Bach

  • Advanced Bach Flower Therapy by Gotz Blome , M.D.

 

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BLOG AUTHOR ( ब्लाग रचयिता ) : डा. प्रभात टन्डन
जन्म भूंमि और कर्म भूमि लखनऊ !! वर्ष १९८६ में नेशनल होम्योपैथिक कालेज , लखनऊ से G.H.M.S. किया , और सन १९८६ से ही  प्रैक्टिस मे संलग्न ..

Clinic :

1. Meo Lodge , Ramadhin Singh Road, Daligunj , Lucknow
2. Shop No 7 ,Ghazi Complex , Ghaila ,  Fazulagunj , Lucknow
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Mobile no : 8299484387 ( Dr Ayush Tandon )

 

 

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