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डॉ. क्रिश्चियन फ्राइडरिक सैमुअल हैनिमेन- जन्म दिवस पर विशेष ( A Tribute to Dr Samuel Hahnemann )

१० अप्रेल २००९ में लिखी हुई यह पोस्ट कल भी सामायिक थी ,आज भी है और कल भी रहेगी। विषम परिस्थितयॊं मॆ होम्योपैथी का उद्‌गम और उसकी यात्रा न सिर्फ़ गर्व का अनुभव कराती है बल्कि उस महान चिकित्सक के प्रति नतमस्तक होने के लिये प्रेरित करती है । देखॆ पुरानी पोस्ट डॉ. क्रिश्चियन फ्राइडरिक सैमुअल हैनिमेन- जन्म दिवस पर विशेष ( A Tribute to Dr Samuel Hahnemann )


इतिहास के चन्द पन्नों को समटेने की कोशिश करते हुये आँखे नम सी हो जाती हैं । मेरे सामने ब्रैडफ़ोर्ड की ” लाइफ़ एन्ड लेटर आफ़ हैनिमैन ” और हैल की ” लाइफ़ एन्ड वर्कस आफ़ हैनिमैन ” के उडते हुये पन्ने मानों वक्त को एक बार फ़िर समेट सा  रहे हैं । यह पुस्तकें मैने शौकिया अपने कालेज के दिनों मे ली थी लेकिन कभी भी पढने की फ़ुर्सत न मिली  । पिछ्ले साल जब hpathy.com के डा. मनीष भाटिया की भावपूर्ण जर्मनी  यात्रा को पढने का अवसर मिला तब इस लेख को लिखने की सोची थी लेकिन फ़िर आलसवश टल गया । १० अप्रेल हैनिमैन की जन्म तिथि के रुप मे जाना जाता है । मुझे नही लगता कि किसी भी अन्य पद्दति मे चिकित्सक अपने सिस्टम के संस्थापकों से इतना नही जुडॆ  हैं जितना कि एक होम्योपैथ । बहुत से कारण हैं लेकिन सबसे बडा कारण है होम्योपैथी का विषम परिस्थियों मे उद्‌भव । हैनिमैन अपनी जिंदगी मे वह सब कुछ बहुत आसानी से पा सकते थे अगर वह वक्त के साथ समझौता कर लेते लेकिन उन्होने नही किया । किसी ने सही कहा है , “कीर्तियस्य स जीवति “ – आज कौन कह सकता है कि हैनिमैन इस जगत मे नही हैं ।

डॉ. क्रिश्चियन फ्राइडरिक सैमुअल हैनिमेन  का जन्म सन्‌ १७५५ ई. की १० अप्रेल को जर्मनी मे सेक्सनी प्रदेश के  माइसेन नामक छॊटे से गाँव मे हुआ था  । एक बेहद गरीब परिवार मे जन्मे हैनिमैन का बचपन अभावों और गरीबी  मे बीता । आपके पिता एक पोर्सीलीन पेन्टर थे ,  सीमित संस्धानों  को देखते हुये  हुये वह चाहते थे कि उनका पुत्र भी इस व्यवसायाय मे रुचि दिखाये । लेकिन अनेक प्रतिभाओं के धनी हैनिमैन को यह मन्जूर नही था । अनेक भाषाओं के ज्ञाता हैनिमैन ने जीवन संघर्ष की शुरुआत  रसायन और अन्य  ग्रन्थों के अंग्रेजी भाषा से जर्मन मे अनुवाद से प्रारम्म्भ  की । सन्‌ १७७५ मे हैनिमैन लिपिजिक मेडिकल की पढाई के लिये निकल पडे , लिपेजेक मेडिकल कालेज मे हैनिमैन को उनके प्रोफ़ेसर डा. बर्ग्रैथ का भरपूर साथ मिला जिसके कारण उनकी पढाई के कई साल पैसों की तंगी के बिना भी चलते रहे ।

हैनिमैन की जिदंगी का महत्वपूर्ण हिस्सा खानाबदोशों की जिदंगी की तरह से बीता । वियाना से हरमैन्स्ट्डट ( जो अब शीबू , रोमेनिया के नाम से जाना जाता है ) जहाँ डा. क्युंरीन ने हैनिमैन को मेडिकल की पढाई के बाद नौकरी  दिलाने मे मदद की । सन्‌ १७७९  मे   हैनिमैन ने मेडिकल की पढाई पूरी की और जर्मनी के कई छॊटे गाँवों मे प्रैक्टिस करनी आरम्भ की लेकिन पाँच साल की प्रैकिटस के बाद उन्होने उस समय के प्रचलित तरीकों से तंग आकर प्रैक्टिस छोड दी । उस समय की मेडिकल चिकित्सा पद्दति आज की तरह उन्नत  न थी । इसी दौरान १७८२ मे हैनिमैन का विवाह जोहाना लियोपोल्डाइन से हुआ जिससे बाद मे उनसे ११संताने हुयीं। सन्‌ १७८५ से १७८९ तक हैनिमैन की जीवका का मुख्य साधन अंग्रेजी से    जर्मनी मे अनुवाद और रसायन शास्त्र मे शोधकार्यों से रहा । इसी दौरान हैनीमैन ने आर्सेनिक पाइसिन्ग पर शोध पत्र  जारी किया  । सन्‌ १७८९ मे हैनिमैन एक बार फ़िर सपरिवार लिपिजिक की तरफ़ चल दिये । “मरकरी का  सिफ़लिस मे कार्य” हैनिमैन ने सालयूबल मरकरी के रोल को अपने नये शोध पत्र मे वर्णित किया ।

सन्‌ १७९१ , ४६ वर्षीय हैनिमैन के लिये महत्वपूर्ण रहा । उनके नये विचारों को नयॊ दिशा देने मे कलेन की मैटिया मेडिका का अनुवाद रहा । एक बार जब  डाक्‍टर कलेन की लिखी “कलेन्‍स मेटेरिया मेडिका” मे वर्णित कुनैन नाम की जडी के बारे मे अंगरेजी भाषा का अनुवाद जर्मन भाषा में कर रहे थे तब डा0 हैनिमेन का ध्‍यान डा0 कलेन के उस वर्णन की ओर गया, जहां कुनैन के बारे में कहा गया कि ‘’ यद्यपि कुनैन मलेरिया रोग को आरोग्य करती है, लेकिन यह स्वस्थ शरीर में मलेरिया जैसे लक्षण पैदा करती है।
हैनिमैन ने कलेन की यह बात पर तर्कपूर्वक विचार करके कुनैन जड़ी की थोड़ी थोड़ी मात्रा रोज खानीं शुरू कर दी। लगभग दो हफ्ते बाद इनके शरीर में मलेरिया जैसे लक्षण पैदा हुये। जड़ी खाना बन्द कर देनें के बाद मलेरिया रोग अपनें आप आरोग्य हो गया। इस प्रयोग को  हैनिमेन ने कई बार दोहराया और हर बार उनके शरीर में मलेरिया जैसे लक्षण पैदा हुये। क्विनीन जड़ी के इस प्रकार से किये गये प्रयोग का जिक्र डा0 हैनिमेन नें अपनें एक चिकित्‍सक मित्र से किया। इस मित्र चिकित्सक  नें भी  हैनिमेन के बताये अनुसार जड़ी का सेवन किया और उसे भी मलेरिया बुखार जैसे लक्षण पैदा हो गये।
हैनिमैन ने अपने प्रयोगों  को जारी रखा तथा  प्रत्येक जडी, खनिज , पशु उत्पादन, रासायनिक मिश्रण आदि का स्वयं पर प्रयोग किया। उन्होने  पाया कि दो तत्व समान लक्षण प्रदान नही करते हैं। प्रत्येक तत्व के अपने विशिष्ट लक्षण होते हैं। इसके अतिरिक्त लक्षणों को भौतिक अवस्था में परिष्कृत नही किया जा सकता है। प्रत्येक परीक्षित तत्व ने मस्तिष्क तथा शरीर की संवेदना को भी प्रभावित किया। उन्हे उस समय की चिकित्सा पद्घति ने विस्मित कर दिया तथा उन्होने रोग उपचार की एक पद्धति को विकसित किया जो सुरक्षित, सरल एवं प्रभावी थी। उनका विश्वास था कि मानव में रोगों से लडने की स्वतः क्षमता होती है तथा रोग मुक्त होने के लिए मानव के स्वयं के संघर्ष रोग लक्षणों को प्रतिबिम्बित करते हैं।

कुछ समय बाद उन्‍होंनें शरीर और मन में औषधियों द्वारा उत्‍पन्‍न किये गये लक्षणों, अनुभवो और प्रभावों को लिपिबद्ध करना शुरू किया। हैनिमेन की अति सूक्ष्म दृष्टि और ज्ञानेन्द्रियों नें यह निष्कर्ष निकाला कि और अधिक औषधियो को इसी तरह परीक्षण करके परखा जाय। हैनिमैन अब तक पहले की भाँति एलोपैथिक अर्थात स्थूल मात्रा मे ही दवाओं का प्रयोग करते थे । लेकिन उन्होने देखा कि रोग आरोग्य होने पर भी कुछ दिन बाद नये लक्षण उत्पन्न होते हैं । जैसे क्विनीन का सेवन करने पर ज्वर तो ठीक हो जाता है पर उसके बाद रोगी को रक्तहीनता , प्लीहा , यकृत , शोध , इत्यादि अनेक उपसर्ग प्रकट होकर रोगी को जर्जर बना डालते हैं । हैनिमैन ने दवा की मात्रा को घटाने का काम आरम्भ किया । इससे उन्होने निष्कर्ष निकाला कि दवा की परिमाण या मात्रा भले ही कम हो , आरोग्यदायिनी शक्ति पहले की तरह शरीर मे मौजूद रहती है और दवा के दुष्परिणाम भी पैदा नही  होते ।
इस प्रकार से किये गये परीक्षणों और अपने अनुभवों को डा0 हैनिमेन नें तत्कालीन मेडिकल पत्रिकाओं में ‘’ मेडिसिन आंफ एक्‍सपीरियन्‍सेस ’’ शीर्षक से लेख लिखकर प्रकाशित कराया । इसे होम्योपैथी के अवतरण का प्रारम्भिक स्वरुप कहा जा सकता है। होम्योपैथी शब्द यूनानी के दो शब्दों (Homois ) यानि सदृश (Similar ) और पैथोज ( pathos ) अर्थात रोग (suffering) से बना है । होम्योपैथी का अर्थ है सदृश रोग चिकित्सा । सदृश रोग चिकित्सा का सरल अर्थ है कि जो रोग लक्षण जिस औषध के सेवन से उत्पन्न होते हैं , उन्हीं लक्षणॊं की रोग मे सदृशता होने पर औषध द्वारा नष्ट किये जा सकते हैं । यह प्रकृति के सिद्दांत “ सम: समम शमयति ” यानि similia similbus curentur पर आधारित है । लेकिन हैनिमैन के शोध को तगडे विरोध का सामना करना पडा और हैनिमैन पर उनकॆ दवा बनाने के तरीको पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई ।

लेकिन सन्‌ १८०० मे हैनिमैन को अपने नये तरीको से सफ़लता मिलनी शुरु हुयी जब स्कारलैट फ़ीवर नाम के महामारी मे बेलोडोना का सफ़ल रोल पाया गया । एक बार फ़िर हैनिमैन अपने समकक्ष चिकित्सकों के तगडे विरोध का कारण बने ।

सन्‌  १८१० हैनिमैन ने आर्गेनान आफ़ मेडिसन का पहला संस्करण निकाला जो होम्योपैथी फ़िलोसफ़ी का महत्वपूर्ण स्तंभ था । १८१४ तक जाते-२ हैनिमैन ने अपने , अपने परिवार और कई मित्र चिकित्सकॊ जिनमे गौस , स्टैफ़, हर्ट्मैन और रुकर्ट प्रमुख थे ,  के ग्रुप पर दवाओं कॊ परीक्षण करना प्रारम्भ किया । इस समूह को हैनिमैन ने प्रूवर यूनियन का नाम दिया ।

सन्‌ १८१३ मे हैनिमैन को एक बार फ़िर सफ़लता हाथ लगी । जब नेपोलियन की सेना के जवानों के बीच टाइफ़स महामारी बन के उभरी । बहुत जल्द ही यह माहामारी जरमनी  मे भी आ गई , इस बार हैनिमैन को ब्रायोनिया और रस टाक्स से  सफ़लता हाथ लगी । सन्‌ १८२० मे  लिपिजक शहर की काउनसिल से हैनिमैन के कार्यों पर पूरी तरह से रोक लगा दी और सन १८२१ मे हैनिमैन को शहर से बाहर जाने का रास्ता दिखाया । हैनिमैन कोथन की तरफ़ चल दिये , यहाँ  के ड्यूक फ़रडनीनैन्ड जो हैनिमैन की दवा से लाभान्वित हो चुके थे , कोथन मे नये तरीको से प्रैकिटस और दवाओं को बनाने की इजाजत दी । कोथन मे हैनिमैन लगभग १२ साल तक रहे और यहाँ से होम्योपैथी को नया आधार मिला ।

इसी दौरान कोथन मे हैनिमैन  जटिल रोगों और मियाज्म पर किये कार्यों को सामने ले कर आये  । सन १८२८ मे हैनिमैन ने chronic diseases पर पहला संस्करण निकाला । हैनिमैन की विचारधारा के एक तरफ़ तो सहयोगी भी थे जिनमे बोनिगहसन , स्टाफ़ , हेरिग और गौस थे उधर दूसरी तरफ़ कुछ साथी चिकित्सक जिनमे डा. ट्रिन्क्स ने असहोयग का रास्ता अपनाते हुये उनके नये कार्यों को समय से प्रकाशन होने मे अडंगे लगाये ।

सन्‌ १८३१ मे होम्योपैथी को एक बार फ़िर से सफ़लता हाथ लगी , इस बार रुस के पशिचमी भाग से महामारी के रुप मे फ़ैलता  हुआ कालरा मे होम्योपैथिक औषधियों जिनमे कैम्फ़र , क्यूपरम और वेरटर्म ने न जाने कितने रोगियों की जान बचायी

कोथन मे हैनिमैन को डा. गोटफ़्रेट लेहमन का अभूतपूर्व सहयोग मिला ,। लेकिन लिपिजिक मे हैनिमैन नकली होम्योपैथों के रुप मे बढती भीड से काफ़ी खफ़ा हुये । सन्‌ १८३३ मे लिपिजिक मे पहला होम्योपैथिक अस्पताल डा. मोरिज मुलर के तत्वधान मे खुला ; सन्‌ १८३४ तक हैनिमैन बडे चाव से इस अस्पताल मे अपना सहयोग देते रहे । लेकिन सन्‌ १८३५ मे हैनिमैन के पैरिस के लिये रवाना होते ही जल्द ही अस्पताल पैसे की तंगी के कारण  १८४२ मे बन्द करना पडा ।

हैनिमैन  की जीवन के आखिरी क्षण कुछ रोमांन्टिक नावेल से कम नही थे । सन्‌ १८३४ मे ३२ वर्षीय  खूबसूरत मैरी मिलानी ८० साल के  हैनिमैन की जिंदगी मे आयी और  मात्र तीन महीने की मुलाकात के बाद उनकी जिंदगी के हमसफ़र हो गयी । मिलानी का रोल हैनिमैन की जिदगी मे बहुत ही विवादस्तमक रहा । उनका मूल  उद्देशय हैनिमैन के नयी चिकित्सा पद्दति मे था । इसके बाद की घटनाये इस बात का पुख्ता सबूत थी कि मिलानी किस उद्देशय से आयी थी ।

लेकिन यह भी सच था कि कई साल के संघर्ष, गरीबी और मुफ़लसफ़ी के बाद हैनिमैन ने अपनी खूबसूरत पत्नी के साथ फ़्रान्स की उच्च सोसयटिइयों मे जगह बनाई । जीवन के आखिरी सालों  मे मिलानी ने हैनिमैन को उनके पहली पत्नी से हुये  संतानों से दूर कर दिया और पैरिस मे हैनिमैन को अपने नये प्रयोगों को जारी रखने को कहा । फ़्रान्स मे हैनिमैन ने LM पोटेन्सी पर किये कार्यों को आखिरी जामा पहनाया । फ़्रान्स मे होम्योपैथी की शोहरत जर्मनी से अधिक फ़ैली , यहाँ‘ एक तो अंडगॆ कम थे और बाकी एलोपैथिक चिकित्सकॊ मे भी  नयी चिकित्सा पद्द्ति को अजमाने मे दिलचस्पी भी थी । आर्गेनान का छटा संस्करण फ़्रान्स मे ही हैनिमैन ने लिखा लेकिन मिलानी के रहते सन्‌ १८४३ मे हैनिमैन की मृत्यु के बाद भी उसका प्रकाशन न हो पाया । ८८ वर्षीय हैनिमैन सन्‌ १८४३ मे मृत्यु को प्राप्त हुये । लेकिन जाते-२ वह होम्योपैथिक जगत को आर्गेनान का छटा  बेशकीमती संस्करण देते गये । मिलानी के चलते यह महत्वपूर्ण संस्करण जिसमे हैनिमैन ने LM पोटेन्सी की जोरदार वकालत की , प्रकाशित न हो पाया । मिलानी इसके बदले मे प्रकाशक से मॊटी रकम चहती थी जिसका मोल भाव हैनिमैन के रहते न हो पाया । हैनिमैन की मृत्यु के कई साल के बाद सन्‌ १९२० मे इस संस्करण को विलियम बोरिक और सहयोगियों की मदद से प्रकाशित किया गया । लेकिन तब तक पूरे विश्व मे होम्योपैथिक चिकित्सकों के मध्य आर्गेनान का पाँचवा संस्करण लोकप्रिय हो चुका था और आज भी हम छटे संस्करण की और विशेष कर LM पोटेन्सी के लाभों से अन्जान ही रह गये ।

मिलानी का विवादों से भरा रोल हैनिमैन को दफ़नाने मे भी रहा । एक अनाम सी जगह मे हैनिमैन को उन्होने गोपनीय ढंग से दफ़नाया  । बाद मे विरोध के चलते हैनिमैन के पार्थिव शरीर को एक दूसरी कब्र मे दफ़नाया गया जिसके ऊपर वर्णित किया गया , ” Non inutilis vixi , ” I have not lived in a vain ” ” मेरी जिंदगी व्यर्थ  नही गयी ”

रसायन और मेडेसिन  मे ७० से ऊपर मौलिक कार्य, लगभग दो दर्जन से अधिक पुस्तकों का अंग्रेजी , फ़्रेन्च, लैटिन और ईटालियन से जर्मन भाषा मे अनुवाद , अपने दम और तमाम विरोधों के बीच पूरी पद्दति का बोझा उठाये हैनिमैन को कम कर के आँकना उनके साथ नाइन्साफ़ी होगी । और सब से से मुख्य बात वह मृदुभाषी थे , अपने मित्र स्टैफ़ को लिखे पत्र मे वह लिखते हैं , “ Be as sparing as possible with your praises . I do not like them . I feel that I am only an honest , straightforward man who does no more than his duty . ”

रात बहुत हो चुकी है , मुझे लगता है अब सो जाना चाहिये , कल फ़िर १० अप्रेल होगी , एक बार फ़िर हम किसी न किसी होम्योपैथिक कालेज के प्रांगण मे हैनिमैन को याद कर रहे होगें लेकिन होम्योपैथिक की शिक्षा प्रदान देने वाले संस्थान अपने आप से पूछ के देखें कि इतने सालों मे हम एक दूसरा हैनिमैन क्यूं नही बना पाये ? हमे इन्तजार है उस पल का , एक नये अवतरित होते हैनिमैन का और आर्गेनान के साँतवें संस्करण का भी …….
अलविदा …
शुभरात्रि ।

यह भी देखें :

डॉ. क्रिश्चियन फ्राइडरिक सैमुअल हैनिमेन- जन्म दिवस पर विशेष ( A Tribute to Dr Samuel Hahnemann )

इतिहास के चन्द पन्नों को समटेने की कोशिश करते हुये आँखे नम सी हो जाती हैं । मेरे सामने ब्रैडफ़ोर्ड की ” लाइफ़ एन्ड लेटर आफ़ हैनिमैन ” और हैल की ” लाइफ़ एन्ड वर्कस आफ़ हैनिमैन ” के उडते हुये पन्ने मानों वक्त को एक बार फ़िर समेट सा  रहे हैं । यह पुस्तकें मैने शौकिया अपने कालेज के दिनों मे ली थी लेकिन कभी भी पढने की फ़ुर्सत न मिली  । पिछ्ले साल जब hpathy.com के डा. मनीष भाटिया की भावपूर्ण जर्मनी  यात्रा को पढने का अवसर मिला तब इस लेख को लिखने की सोची थी लेकिन फ़िर आलसवश टल गया । १० अप्रेल हैनिमैन की जन्म तिथि के रुप मे जाना जाता है । मुझे नही लगता कि किसी भी अन्य पद्दति मे चिकित्सक अपने सिस्टम के संस्थापकों से इतना नही जुडॆ  हैं जितना कि एक होम्योपैथ । बहुत से कारण हैं लेकिन सबसे बडा कारण है होम्योपैथी का विषम परिस्थियों मे उद्‌भव । हैनिमैन अपनी जिंदगी मे वह सब कुछ बहुत आसानी से पा सकते थे अगर वह वक्त के साथ समझौता कर लेते लेकिन उन्होने नही किया । किसी ने सही कहा है , “कीर्तियस्य स जीवति “ – आज कौन कह सकता है कि हैनिमैन इस जगत मे नही हैं ।

डॉ. क्रिश्चियन फ्राइडरिक सैमुअल हैनिमेन  का जन्म सन्‌ १७५५ ई. की १० अप्रेल को जर्मनी मे सेक्सनी प्रदेश के  माइसेन नामक छॊटे से गाँव मे हुआ था  । एक बेहद गरीब परिवार मे जन्मे हैनिमैन का बचपन अभावों और गरीबी  मे बीता । आपके पिता एक पोर्सीलीन पेन्टर थे ,  सीमित संस्धानों  को देखते हुये  हुये वह चाहते थे कि उनका पुत्र भी इस व्यवसायाय मे रुचि दिखाये । लेकिन अनेक प्रतिभाओं के धनी हैनिमैन को यह मन्जूर नही था । अनेक भाषाओं के ज्ञाता हैनिमैन ने जीवन संघर्ष की शुरुआत  रसायन और अन्य  ग्रन्थों के अंग्रेजी भाषा से जर्मन मे अनुवाद से प्रारम्म्भ  की । सन्‌ १७७५ मे हैनिमैन लिपिजिक मेडिकल की पढाई के लिये निकल पडे , लिपेजेक मेडिकल कालेज मे हैनिमैन को उनके प्रोफ़ेसर डा. बर्ग्रैथ का भरपूर साथ मिला जिसके कारण उनकी पढाई के कई साल पैसों की तंगी के बिना भी चलते रहे ।

हैनिमैन की जिदंगी का महत्वपूर्ण हिस्सा खानाबदोशों की जिदंगी की तरह से बीता । वियाना से हरमैन्स्ट्डट ( जो अब शीबू , रोमेनिया के नाम से जाना जाता है ) जहाँ डा. क्युंरीन ने हैनिमैन को मेडिकल की पढाई के बाद नौकरी  दिलाने मे मदद की । सन्‌ १७७९  मे   हैनिमैन ने मेडिकल की पढाई पूरी की और जर्मनी के कई छॊटे गाँवों मे प्रैक्टिस करनी आरम्भ की लेकिन पाँच साल की प्रैकिटस के बाद उन्होने उस समय के प्रचलित तरीकों से तंग आकर प्रैक्टिस छोड दी । उस समय की मेडिकल चिकित्सा पद्दति आज की तरह उन्नत  न थी । इसी दौरान १७८२ मे हैनिमैन का विवाह जोहाना लियोपोल्डाइन से हुआ जिससे बाद मे उनसे ११संताने हुयीं। सन्‌ १७८५ से १७८९ तक हैनिमैन की जीवका का मुख्य साधन अंग्रेजी से    जर्मनी मे अनुवाद और रसायन शास्त्र मे शोधकार्यों से रहा । इसी दौरान हैनीमैन ने आर्सेनिक पाइसिन्ग पर शोध पत्र  जारी किया  । सन्‌ १७८९ मे हैनिमैन एक बार फ़िर सपरिवार लिपिजिक की तरफ़ चल दिये । “मरकरी का  सिफ़लिस मे कार्य” हैनिमैन ने सालयूबल मरकरी के रोल को अपने नये शोध पत्र मे वर्णित किया ।

सन्‌ १७९१ , ४६ वर्षीय हैनिमैन के लिये महत्वपूर्ण रहा । उनके नये विचारों को नयॊ दिशा देने मे कलेन की मैटिया मेडिका का अनुवाद रहा । एक बार जब  डाक्‍टर कलेन की लिखी “कलेन्‍स मेटेरिया मेडिका” मे वर्णित कुनैन नाम की जडी के बारे मे अंगरेजी भाषा का अनुवाद जर्मन भाषा में कर रहे थे तब डा0 हैनिमेन का ध्‍यान डा0 कलेन के उस वर्णन की ओर गया, जहां कुनैन के बारे में कहा गया कि ‘’ यद्यपि कुनैन मलेरिया रोग को आरोग्य करती है, लेकिन यह स्वस्थ शरीर में मलेरिया जैसे लक्षण पैदा करती है।
हैनिमैन ने कलेन की यह बात पर तर्कपूर्वक विचार करके कुनैन जड़ी की थोड़ी थोड़ी मात्रा रोज खानीं शुरू कर दी। लगभग दो हफ्ते बाद इनके शरीर में मलेरिया जैसे लक्षण पैदा हुये। जड़ी खाना बन्द कर देनें के बाद मलेरिया रोग अपनें आप आरोग्य हो गया। इस प्रयोग को  हैनिमेन ने कई बार दोहराया और हर बार उनके शरीर में मलेरिया जैसे लक्षण पैदा हुये। क्विनीन जड़ी के इस प्रकार से किये गये प्रयोग का जिक्र डा0 हैनिमेन नें अपनें एक चिकित्‍सक मित्र से किया। इस मित्र चिकित्सक  नें भी  हैनिमेन के बताये अनुसार जड़ी का सेवन किया और उसे भी मलेरिया बुखार जैसे लक्षण पैदा हो गये।
हैनिमैन ने अपने प्रयोगों  को जारी रखा तथा  प्रत्येक जडी, खनिज , पशु उत्पादन, रासायनिक मिश्रण आदि का स्वयं पर प्रयोग किया। उन्होने  पाया कि दो तत्व समान लक्षण प्रदान नही करते हैं। प्रत्येक तत्व के अपने विशिष्ट लक्षण होते हैं। इसके अतिरिक्त लक्षणों को भौतिक अवस्था में परिष्कृत नही किया जा सकता है। प्रत्येक परीक्षित तत्व ने मस्तिष्क तथा शरीर की संवेदना को भी प्रभावित किया। उन्हे उस समय की चिकित्सा पद्घति ने विस्मित कर दिया तथा उन्होने रोग उपचार की एक पद्धति को विकसित किया जो सुरक्षित, सरल एवं प्रभावी थी। उनका विश्वास था कि मानव में रोगों से लडने की स्वतः क्षमता होती है तथा रोग मुक्त होने के लिए मानव के स्वयं के संघर्ष रोग लक्षणों को प्रतिबिम्बित करते हैं।

कुछ समय बाद उन्‍होंनें शरीर और मन में औषधियों द्वारा उत्‍पन्‍न किये गये लक्षणों, अनुभवो और प्रभावों को लिपिबद्ध करना शुरू किया। हैनिमेन की अति सूक्ष्म दृष्टि और ज्ञानेन्द्रियों नें यह निष्कर्ष निकाला कि और अधिक औषधियो को इसी तरह परीक्षण करके परखा जाय। हैनिमैन अब तक पहले की भाँति एलोपैथिक अर्थात स्थूल मात्रा मे ही दवाओं का प्रयोग करते थे । लेकिन उन्होने देखा कि रोग आरोग्य होने पर भी कुछ दिन बाद नये लक्षण उत्पन्न होते हैं । जैसे क्विनीन का सेवन करने पर ज्वर तो ठीक हो जाता है पर उसके बाद रोगी को रक्तहीनता , प्लीहा , यकृत , शोध , इत्यादि अनेक उपसर्ग प्रकट होकर रोगी को जर्जर बना डालते हैं । हैनिमैन ने दवा की मात्रा को घटाने का काम आरम्भ किया । इससे उन्होने निष्कर्ष निकाला कि दवा की परिमाण या मात्रा भले ही कम हो , आरोग्यदायिनी शक्ति पहले की तरह शरीर मे मौजूद रहती है और दवा के दुष्परिणाम भी पैदा नही  होते ।
इस प्रकार से किये गये परीक्षणों और अपने अनुभवों को डा0 हैनिमेन नें तत्कालीन मेडिकल पत्रिकाओं में ‘’ मेडिसिन आंफ एक्‍सपीरियन्‍सेस ’’ शीर्षक से लेख लिखकर प्रकाशित कराया । इसे होम्योपैथी के अवतरण का प्रारम्भिक स्वरुप कहा जा सकता है। होम्योपैथी शब्द यूनानी के दो शब्दों (Homois ) यानि सदृश (Similar ) और पैथोज ( pathos ) अर्थात रोग (suffering) से बना है । होम्योपैथी का अर्थ है सदृश रोग चिकित्सा । सदृश रोग चिकित्सा का सरल अर्थ है कि जो रोग लक्षण जिस औषध के सेवन से उत्पन्न होते हैं , उन्हीं लक्षणॊं की रोग मे सदृशता होने पर औषध द्वारा नष्ट किये जा सकते हैं । यह प्रकृति के सिद्दांत “ सम: समम शमयति ” यानि similia similbus curentur पर आधारित है । लेकिन हैनिमैन के शोध को तगडे विरोध का सामना करना पडा और हैनिमैन पर उनकॆ दवा बनाने के तरीको पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई ।

लेकिन सन्‌ १८०० मे हैनिमैन को अपने नये तरीको से सफ़लता मिलनी शुरु हुयी जब स्कारलैट फ़ीवर नाम के महामारी मे बेलोडोना का सफ़ल रोल पाया गया । एक बार फ़िर हैनिमैन अपने समकक्ष चिकित्सकों के तगडे विरोध का कारण बने ।

सन्‌  १८१० हैनिमैन ने आर्गेनान आफ़ मेडिसन का पहला संस्करण निकाला जो होम्योपैथी फ़िलोसफ़ी का महत्वपूर्ण स्तंभ था । १८१४ तक जाते-२ हैनिमैन ने अपने , अपने परिवार और कई मित्र चिकित्सकॊ जिनमे गौस , स्टैफ़, हर्ट्मैन और रुकर्ट प्रमुख थे ,  के ग्रुप पर दवाओं कॊ परीक्षण करना प्रारम्भ किया । इस समूह को हैनिमैन ने प्रूवर यूनियन का नाम दिया ।

सन्‌ १८१३ मे हैनिमैन को एक बार फ़िर सफ़लता हाथ लगी । जब नेपोलियन की सेना के जवानों के बीच टाइफ़स महामारी बन के उभरी । बहुत जल्द ही यह माहामारी जरमनी  मे भी आ गई , इस बार हैनिमैन को ब्रायोनिया और रस टाक्स से  सफ़लता हाथ लगी । सन्‌ १८२० मे  लिपिजक शहर की काउनसिल से हैनिमैन के कार्यों पर पूरी तरह से रोक लगा दी और सन १८२१ मे हैनिमैन को शहर से बाहर जाने का रास्ता दिखाया । हैनिमैन कोथन की तरफ़ चल दिये , यहाँ  के ड्यूक फ़रडनीनैन्ड जो हैनिमैन की दवा से लाभान्वित हो चुके थे , कोथन मे नये तरीको से प्रैकिटस और दवाओं को बनाने की इजाजत दी । कोथन मे हैनिमैन लगभग १२ साल तक रहे और यहाँ से होम्योपैथी को नया आधार मिला ।

इसी दौरान कोथन मे हैनिमैन  जटिल रोगों और मियाज्म पर किये कार्यों को सामने ले कर आये  । सन १८२८ मे हैनिमैन ने chronic diseases पर पहला संस्करण निकाला । हैनिमैन की विचारधारा के एक तरफ़ तो सहयोगी भी थे जिनमे बोनिगहसन , स्टाफ़ , हेरिग और गौस थे उधर दूसरी तरफ़ कुछ साथी चिकित्सक जिनमे डा. ट्रिन्क्स ने असहोयग का रास्ता अपनाते हुये उनके नये कार्यों को समय से प्रकाशन होने मे अडंगे लगाये ।

सन्‌ १८३१ मे होम्योपैथी को एक बार फ़िर से सफ़लता हाथ लगी , इस बार रुस के पशिचमी भाग से महामारी के रुप मे फ़ैलता  हुआ कालरा मे होम्योपैथिक औषधियों जिनमे कैम्फ़र , क्यूपरम और वेरटर्म ने न जाने कितने रोगियों की जान बचायी

कोथन मे हैनिमैन को डा. गोटफ़्रेट लेहमन का अभूतपूर्व सहयोग मिला ,। लेकिन लिपिजिक मे हैनिमैन नकली होम्योपैथों के रुप मे बढती भीड से काफ़ी खफ़ा हुये । सन्‌ १८३३ मे लिपिजिक मे पहला होम्योपैथिक अस्पताल डा. मोरिज मुलर के तत्वधान मे खुला ; सन्‌ १८३४ तक हैनिमैन बडे चाव से इस अस्पताल मे अपना सहयोग देते रहे । लेकिन सन्‌ १८३५ मे हैनिमैन के पैरिस के लिये रवाना होते ही जल्द ही अस्पताल पैसे की तंगी के कारण  १८४२ मे बन्द करना पडा ।

हैनिमैन  की जीवन के आखिरी क्षण कुछ रोमांन्टिक नावेल से कम नही थे । सन्‌ १८३४ मे ३२ वर्षीय  खूबसूरत मैरी मिलानी ८० साल के  हैनिमैन की जिंदगी मे आयी और  मात्र तीन महीने की मुलाकात के बाद उनकी जिंदगी के हमसफ़र हो गयी । मिलानी का रोल हैनिमैन की जिदगी मे बहुत ही विवादस्तमक रहा । उनका मूल  उद्देशय हैनिमैन के नयी चिकित्सा पद्दति मे था । इसके बाद की घटनाये इस बात का पुख्ता सबूत थी कि मिलानी किस उद्देशय से आयी थी ।

लेकिन यह भी सच था कि कई साल के संघर्ष, गरीबी और मुफ़लसफ़ी के बाद हैनिमैन ने अपनी खूबसूरत पत्नी के साथ फ़्रान्स की उच्च सोसयटिइयों मे जगह बनाई । जीवन के आखिरी सालों  मे मिलानी ने हैनिमैन को उनके पहली पत्नी से हुये  संतानों से दूर कर दिया और पैरिस मे हैनिमैन को अपने नये प्रयोगों को जारी रखने को कहा । फ़्रान्स मे हैनिमैन ने LM पोटेन्सी पर किये कार्यों को आखिरी जामा पहनाया । फ़्रान्स मे होम्योपैथी की शोहरत जर्मनी से अधिक फ़ैली , यहाँ‘ एक तो अंडगॆ कम थे और बाकी एलोपैथिक चिकित्सकॊ मे भी  नयी चिकित्सा पद्द्ति को अजमाने मे दिलचस्पी भी थी । आर्गेनान का छटा संस्करण फ़्रान्स मे ही हैनिमैन ने लिखा लेकिन मिलानी के रहते सन्‌ १८४३ मे हैनिमैन की मृत्यु के बाद भी उसका प्रकाशन न हो पाया । ८८ वर्षीय हैनिमैन सन्‌ १८४३ मे मृत्यु को प्राप्त हुये । लेकिन जाते-२ वह होम्योपैथिक जगत को आर्गेनान का छटा  बेशकीमती संस्करण देते गये । मिलानी के चलते यह महत्वपूर्ण संस्करण जिसमे हैनिमैन ने LM पोटेन्सी की जोरदार वकालत की , प्रकाशित न हो पाया । मिलानी इसके बदले मे प्रकाशक से मॊटी रकम चहती थी जिसका मोल भाव हैनिमैन के रहते न हो पाया । हैनिमैन की मृत्यु के कई साल के बाद सन्‌ १९२० मे इस संस्करण को विलियम बोरिक और सहयोगियों की मदद से प्रकाशित किया गया । लेकिन तब तक पूरे विश्व मे होम्योपैथिक चिकित्सकों के मध्य आर्गेनान का पाँचवा संस्करण लोकप्रिय हो चुका था और आज भी हम छटे संस्करण की और विशेष कर LM पोटेन्सी के लाभों से अन्जान ही रह गये ।

मिलानी का विवादों से भरा रोल हैनिमैन को दफ़नाने मे भी रहा । एक अनाम सी जगह मे हैनिमैन को उन्होने गोपनीय ढंग से दफ़नाया  । बाद मे विरोध के चलते हैनिमैन के पार्थिव शरीर को एक दूसरी कब्र मे दफ़नाया गया जिसके ऊपर वर्णित किया गया , ” Non inutilis vixi , ” I have not lived in a vain ” ” मेरी जिंदगी व्यर्थ  नही गयी ”

रसायन और मेडेसिन  मे ७० से ऊपर मौलिक कार्य, लगभग दो दर्जन से अधिक पुस्तकों का अंग्रेजी , फ़्रेन्च, लैटिन और ईटालियन से जर्मन भाषा मे अनुवाद , अपने दम और तमाम विरोधों के बीच पूरी पद्दति का बोझा उठाये हैनिमैन को कम कर के आँकना उनके साथ नाइन्साफ़ी होगी । और सब से से मुख्य बात वह मृदुभाषी थे , अपने मित्र स्टैफ़ को लिखे पत्र मे वह लिखते हैं , “ Be as sparing as possible with your praises . I do not like them . I feel that I am only an honest , straightforward man who does no more than his duty . ”

रात बहुत हो चुकी है , मुझे लगता है अब सो जाना चाहिये , कल फ़िर १० अप्रेल होगी , एक बार फ़िर हम किसी न किसी होम्योपैथिक कालेज के प्रांगण मे हैनिमैन को याद कर रहे होगें लेकिन होम्योपैथिक की शिक्षा प्रदान देने वाले संस्थान अपने आप से पूछ के देखें कि इतने सालों मे हम एक दूसरा हैनिमैन क्यूं नही बना पाये ? हमे इन्तजार है उस पल का , एक नये अवतरित होते हैनिमैन का और आर्गेनान के साँतवें संस्करण का भी …….
अलविदा …
शुभरात्रि ।

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