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मेरी डायरी–बैच फ़्लावर रेमेडी–“ गौर्स–Gorse ”

Gorse

३८ बैच फ़्लावर औषधियों मे से मै  १२-१५  दवाओं का अकसर प्रयोग करता हूँ । अधिकतर बैच फ़्लावर औषधियों  का प्रयोग अभी किया नही है । गौर्स को प्रयोग करने का पहला अनुभव बहुत अधिक संतोषजनक रहा । १५ दिन पहले मुझे जिस रोगी को देखने जाना पडा वह मेरे  एक  साथी चिकित्सक के पिता का केस था । आयु ५६ वर्ष , पिछ्ले कई  सालो से कुवैत मे किसी अच्छी सरकारी पोस्ट पर थे । डायबीटिज थी और उच्च रक्तचाप से पीडित भी  । पहला पक्षाघात का अटैक कुवैत मे ही पडा । कुछ दिन वही अस्पताल मे रहने पर जाँचॊ द्वारा मालूम पडा कि उनकॊ Tubercular meningitis भी है । इलाज शुरु हुआ लेकिन टी.बी . पर वहाँ के चिकित्सकॊ की एक राय न बन सकी । एक पक्ष Neurocysticercosis  और दूसरा चिकित्सकों का समूह टी.बी. की डाय्गोनिसस पर विभाजित रहा । टी.बी. पर कुछ दिन इलाज चलने के बाद दूसरे पक्ष के चिकित्सकों ने टी. बी. पर इलाज बन्द कर के सीसस्टीसर्कोसिस पर इलाज शुरु किया । हाँलाकि पहले इलाज के दौरान मरीज को कुछ फ़ायदा दिख रहा था ।  इस बीच  एक राय न बनने के कारण मरीज को वापस भारत जाने के लिये कहा गया ।

रोगी की पत्नी के अनुसार लखनऊ आने पर वह बेहतर हालात मे थे । उन्होने उस समय की एयर्पोर्ट की मुझे जो फ़ोटॊ दिखाई उसमे वह काफ़ी प्रसन्नचित्त और स्वस्थ दिख रहे थे ।  लखनऊ मे भी चिकित्सकों की एक राय Tubercular meningitis  की ही बनी। फ़लस्वरुप इलाज के दौरान कुछ माह के अन्दर स्वास्थ लाभ तेज हुआ और रिकवरी पूरी तरह से दिखने लगी । लेकिन साल भर के अन्दर दूसरा अटैक फ़ालिज का पडा । और फ़िर उसके बाद वह इलाज चलने के बावजूद भी रिकवर न कर पाये । टी.बी , ब्लड शुगर और  उच्च रक्तचाप   की दवाईयाँ पहले से ही चल रही थी । और वह अब पक्षाघात ( Hemiplegia )  के लिये होम्योपैथिक राय मुझसे लेना चाहते थे ।

अधिकतर फ़ालिज ग्रस्त रोगियों मे सबसे बडी  समस्या उनके अवसादों को लेकर होती है । और यहाँ भी समस्या डिप्रेशन को लेकर ही थी । DPR ( deep plantar reflexes – Babsinki sign ) पाजीटिव दिखने के बावजूद  भी रोगी मे movements काफ़ी हद तक सामान्य थे । इन हालात को देखकर मुझे लगा कि शायद कुछ उम्मीद बन सकती है लेकिन रोगी के साथ मुख्य समस्या मानसिक अवसाद की थी । रोगी की पत्नी के अनुसार न तो वह उनको सहयोग देना चाहते थे और न ही अपने फ़िजियोथिरेपिस्ट को । रोना ,  बात –२ पर क्रोधित होना । जीबन के प्रति निराशा के भाव उनकी बातचीत से ; जो हाँलाकि पक्षाघात के कारण स्पष्ट न थी , साफ़ नजर आ रही थी ।

पहले से ही कई अति आवशयक दवायें चल रही थी और उनको बन्द करके होम्योपैथिक दवाओं को चलाने की कोई वजह नही थी । लेकिन क्या होम्योपैथिक और बैच फ़्लावर कार्य करेगी , यह अवशय संशय था । constitutional/ pathological सेलेक्शन मे से पैथोलोजिकल सेलेक्शन को अधिक मह्त्व दिया जो कि वर्तमान लक्षणॊं मे से प्रमुख थे ।

Opium LM पोटेन्सी पहली चुनाव बना  और अब बारी थी रोगी के अवसादॊ की । बैच फ़्लावर को एक बार फ़िर से अवसादों के लिये मुख्य जगह दी गई । और दवा का सेलक्शन गौर्स पर टिका | लगभग २ सप्ताह के बाद  रोगी की पत्नी और उनके घर के अन्य सद्स्यों ने रोगी की स्वास्थ की प्रगति , ( विशेषकर उनके अवसादों ) को काफ़ी अधिक संतोषजनक बताया । उनके अनुसार रोगी बेहतर हालात में है ,  प्रसन्नचित्त रहते हैं और अपने कार्यों को स्वंय करने की कोशिश करते हैं ,  जो पहले कभी न देखी गई । यह तो आगे आने वाला समय बतायेगा कि अन्य मुख्य लक्षणॊ मे कहाँ तक प्रगति आती है लेकिन Mind – Body connections मे बैच फ़्लावर के महत्व की भूमिका को  नंजर अंदाज नही किया जा सकता ।

आखिर गौर्स ने क्या कियागौर्स का मुख्य लक्षण है – पूर्ण नाउम्मीदी ( Hopelessness ) . रोगी को यह विशवास होता है कि वह अब ठीक नही हो सकता । और या तो वह चिकित्सक को बेमन से मिलता है या फ़िर मजबूरी मे । ( ऋण पक्ष ) ऐसे रोगियों को गौर्स दोबारा जिन्दगी से लडने के लिये संबल प्रदान करता है । ( धन पक्ष )

बात जब गौर्स की है तो बैच फ़्लावर दवाओं मे नाउम्मीदी ( Hopelessness ) की अन्य दवाये भी है , जैसे :

१. Gentian ( जैन्सियन) : इसमे शक और मायूसी तो होती है लेकिन नाउम्मीदी बिल्कुल नही होती ।

२. Sweet chest Nut ( स्वीट चेस्ट नट ) : इसमे पूर्ण निराशा , जैसे सब कुछ खो गया हो और बाकी कुछ रह न गया हो ।

३. Wild Rose ( वाइल्ड रोज ) : अपनी बीमारी के लिये वह अपने पिछ्ले कर्मॊ का फ़ल समझता है ।

४. गौर्स ( Gorse ) : किसी लम्बी बीमारी मे कई ईलाज कराने के बाद वह मायूस हो जाता है और अपनी उम्मीद छोड बैठता है ।

बैच फ़्लावर की कुछ विशेष खूबियाँ मुझे इस पद्द्ति की तरफ़ आकृष्ट करती हैं । जहाँ होम्योपैथिक दवाओं मे अन्य दवाओं के साथ चलाने का झमेला रहता है वही बैच को किसी भी पद्द्ति के साथ समावेशित किया जा सकता है ।

Gorse

Gorse
Scientific name: Ulex
Family Fabaceae.
Rank: Genus
Higher classification: Faboideae

Keyword – Hope | Bach Group – Uncertainty

Gorse is the remedy for those who suffer great uncertainty in the process of life, causing them to experience feelings of hopelessness and despair. This is a state sometimes found in those with a long-term illness who have lost all hope of recovery or in those whose experiences have caused them to view life ‘as a lost cause’. When this state is very deep rooted a person may have dark rings under the eyes or be prone to sigh a lot. Taken over a period of time Gorse will help to dispel these dark feelings and promote new hope and vision for the future.

Dr Bachs description of Gorse:-

“Very great hopelessness, they have given up belief that more can be
done for them. Under persuasion or to please others they may try
different treatments, at the same time assuring those around that
there is so little hope of relief”

From the Twelve Healers & Other Remedies – By Dr Edward Bach ( 1936 edition)

यह भी देखें :